आज चौबीस: शत्रुघ्न सिन्हा की धांय धांय! एनडीटीवी: शाहरुख खान की धांय धांय!
एबीपी: यूपी के स्थानीय चुनावों में बसपा की धांय धांय और सपा, भाजपा का सूपड़ा साफ!
इंडिया टुडे: अरुण शौरी ने फिर मोदी पर धांय धांय।
और हर चैनल पर सोनिया का बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन देने जाने का लाइव प्रसारण!
‘असहिष्णुता’ चिपक गई है। उसे छुड़ाने की कवायद शुरू है। टाइम्स नाउ के एंकर अर्णव बड़े जोशोखरोश से सीधे असहिष्णुता विरोधियों की असहिष्णुता पर चर्चा कराने लगते हैं और आश्चर्य कि जो मुकदमा भाजपा को लड़ना था उसे वे अपना बना कर तर्क देने लगते हैं कि पिछले अड़सठ साल की ‘सहिष्णुता’ के बाद पिछले बारह महीने में ही अचानक ‘असहिष्णुता’ क्यों नजर आने लगी? तथाकथित बुद्धिजीवी कांग्रेस के विरोध में इस तरह से तो कभी नहीं उतरे! बासठ लोग मुजफ्फरनगर के दंगे में मरे तब ये क्यों नहीं बोले कि असहिष्णुता बढ़ रही है?
कांग्रेस की खुशबू को जब अर्णव ने बीच में टोका तो वे बोलीं: आप मेरे जवाब के प्रति असहिष्णु हो रहे हैं। तिस पर अर्णव ने कहा कि आप मेरे सवाल के प्रति असहिष्णु हो रही हैं। देखते-देखते असहिष्णुता पर स्ट्रीट फाइट होने लगी। अनुपम खेर ने दिबाकर बनर्जी के सम्मान लौटाने को फ्रॉड कहा कि जो उनको नहीं मिला था उसे लौटा रहा है। सब हंसने लगे। खेर ने कहा कि जो असहिष्णुता की शिकायत कर रहे हैं उनमें खुद सहिष्णुता नहीं है। वे मेरी बात सुनने की जगह मुझे हूट करने लगे!
करण थापर ने असहिष्णुता को लेकर एक गंभीर चर्चा पेश की। उन्होंने संघ और भाजपा प्रवक्ता तक को बहस के इधर-उधर नहीं जाने दिया। विनोद शर्मा ने कहा कि इस आंदोलन को गलत ढंग से टेकल किया गया। अगर मोदीजी पहले ही सम्मान लौटाने वालों को फोन करके चाय पर बुला लेते तो ये विरोध खत्म हो जाता। इससे क्यू लेकर करण ने भाजपा प्रवक्ता से कहा कि क्या आप मोदीजी को यह संदेश देंगे, तो प्रवक्ता इसका सटीक जवाब न दे सका। संघ के प्रवक्ता ने कहा कि ये कम्युनिस्ट हैं, यानी बातचीत से फायदा क्या? करण ने आशीष नंदी से पूछा कि आपने मोदी को फासिस्ट कहा था, क्या आप पुनर्विचार के लिए तैयार हैं, तो वे बोले कि मैंने फासिस्ट शब्द को एक ‘क्लिनिकल’ (विशेषण) की तरह कहा था!
लेकिन कांग्रेस में जान पड़ गई है। आप उनको एक जत्थे के साथ राष्ट्रपति से मिलने जाते देखते हैं। क्या फुर्ती है, जैसे मनमांगी मुराद मिल गई हो। एनडीटीवी इसे लाइव दिखा रहा है। स्क्रीन के नीचे लाइनें पूछी जा रही हैं: अटलजी के वक्त सम्मान क्यों नहीं लौटाए गए? मोदी के जमाने में क्यों लौटाए जा रहे हैं? एनडीटीवी लाइन लगाता है: ‘इनकी असहिष्णुता बरक्स उनकी असहिष्णुता’!
सोमवार की शाम टाइम्स नाउ के गोस्वामीजी साक्षात दुर्वासा की तरह शाप देते दिखते हैं: तीन साल बाद वह (निर्भया का किशोर बलात्कारी) आजाद किया जा रहा है। अब वह गलियों में आजाद घूमेगा। निर्भया के संग सर्वाधिक दरिंदगी करने वाला यह किशोर एक बार फिर रेप करने को आजाद हो रहा है? क्या हमारी बेटियां-बहनें सुरक्षित रह पाएंगी? कहां है वह फिल्मकार, जो इस बर्बर किशोर की पक्षधर बनी फिरती थी? वे सम्मान लौटाने वाले कहां हैं? कहां हैं लटयंस दिल्ली वाले? क्या वे इस दरिंदे के इस तरह आजाद होने के विरोध में अपने सम्मान लौटाएंगे?
इस ‘दरिंदे’ का चेहरा कपड़े से ढंका है। उसका एक स्टाक शॉट स्क्रीन के बीचोंबीच बार-बार दिखाया जाता है, ताकि हम समझ लें कि यह वही दरिंदा है, जिसने निर्भया के संग सबसे ज्यादा बर्बरता दिखाई थी! एक से एक खूंखार विशेषणों से सजाया जाकर वह हमारी घृणा की परिधि से परे निकलने और एक ‘मिथक’ बनने लगता है!
बहस बाल अपराधियों की दंडनीय उम्र तय करने के मुद्दे पर ठहर गई है। उधर ‘दरिंदे’ को संजय हेगड़े के रूप में एक वकील मिल गया है, जो उसके मानवाधिकार की हिफाजत करते हुए कह उठता है कि एक के अपराध के लिए बाकी बच्चों को दानव नहीं बनाया जा सकता। वकील साहब कह कर एंकरजी आप ही यह डर फैला रहे हैं कि अब वह आजाद है, अब कहीं भी रेप हो सकता है!
टाइम्स नाउ पर अमित शाह से इंटरव्यू। लंबा और एकदम दो टूक! गोस्वामीजी अमित के साथ एकदम शालीनता की प्रतिमूर्ति बने रहते हैं। वे एक बार भी टोकाटाकी नहीं करते। उनको एक बार गुस्सा नहीं आता। बेहद शांत तरीके से वे एक-एक सवाल पूछते जाते हैं और अमितजी जवाब दिए जाते हैं। इस इंटरव्यू को तीन-चार बार दिखाया जाता है!
एनडीटीवी के प्रणय राय बिहार का चुनाव कवर करते दिखते हैं। दरभंगा में वे अपने पुराने चुनाव विश्लेषक दोराब सोपारीवाला और शेखर गुप्ता को लिए तीन चारपाइयों पर बैठ कर बिहार के चुनाव परिणामों का अनुमान-सा देते हैं। उनके सात मानकों में कई मानक दिलचस्प हैं, मसलन कम वोट तो भाजपा का फायदा और ज्यादा वोट तो महागठबंधन को फायदा। इसी तरह शहरी वोट भाजपा के लिए ज्यादा, तो ग्रामीण वोट महागठबंधन के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं। इसी तरह युवा वोटों का अधिकतर भाजपा को मिल सकता है, बुजुर्गों का वोट महागठबंधन को जा सकता है। शेखर गुप्ता कहते हैं कि नई पीढ़ी आकांक्षी पीढ़ी है। वह आठवें-नौवें दशक के मंडलवादी बोझ से मुक्त है। लेकिन दोराब कहते हैं कि बिहार में इक्यावन फीसद ओबीसी हैं, इसका अपना असर है। प्रणय अपनी सारी थीसिस के बाद दिखाते हैं कि बिहार में कुल तेरह प्रतिशत शहरीकरण है, बाकी ग्राम्य समाज है। और ग्राम्यता गठबंधन के पक्ष में झुकी दिखती है। जब एक से प्रणय जंगलराज के आरोप पर सवाल करते हैं, तो उसका जवाब है: जंगलराज तो अच्छा है। जंगल से हमें लकड़ी मिलती है।
एनडीटीवी की तरह ही बिहार के गांवों-शहरों की खाक छान रहे इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई समस्तीपुर, दरभंगा और पता नहीं एक दिन में कहां-कहां जनता के बीच जा-जाकर बात करते हैं और वाह रे बिहार की जनता! क्या गजब की राजनीतिक समझ है कि उसके विश्लेषण के आगे राजदीप तक पानी भरते हैं। वे बात की बात में नतीजा बता देते हैं। धु्रवीकरण इस कदर है कि यादवों के बीच लालू ही लालू होता है और उच्च जाति के बीच भाजपा भाजपा!