महाकुंभ का आखिरी दिन… महाशिवरात्रि का अवसर और इस दिन भी रेकार्डतोड़ स्नानार्थी। चैनलों के रिपोर्टर अपार भीड़ देख लोमहर्षित। अपने-अपने कंधे और सिर पर अपना-अपना सामान उठाए बच्चे, वृद्ध स्त्री-पुरुष, स्नान की अपनी बारी का इंतजार करते असंख्य साधारण जन। न शिकायत का एक स्वर, न तनाव, न दंगा-फसाद। एकाध दुर्घटना पर गहरा अफसोस अवश्य दिखा, लेकिन बाकी दिनों के बारे में जिससे पूछो वही गदगद। सभी कहें इंतजाम बढ़िया। अपने अंग-प्रत्यंग पर राख-भभूत रमाए, तरह-तरह के तिलक त्रिपुंड लगाए, केसरिया भगवा चोला पहने, त्रिशूल-तलवार चलाते, शंख बजाते और स्नानार्थियों के कौतूहल का केंद्र बने दर्जनों अखाड़े और तयशुदा समय पर सबके शाही स्नान…और सब तरफ हर हर महादेव का घोष!

नित्य आस्था की डुबकी लगाते सैकड़ों अति विशिष्ट लोग अपनी डुबकियों की रीलें और वीडियो बनवाते, अपनी डुबकियों की खबर बनाते और बालीवुड के हीरो-हीरोइनें, जैसे अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ, विक्की कौशल और प्रीति जिंटा आदि के डुबकी के दृश्य!

कोई कहिन कि महाकुंभ सनातन भाव की अभिव्यक्ति है, तो कोई कहिन यह एकता का संदेश देता है। जवाब में विपक्ष कहता दिखता कि यह सब महाकुंभ का ‘हाइप’ है, लेकिन महाकुंभ की अपनी ताकत कि कुछ ‘कुंभ निंदक’ भी डुबकी लगाते दिखे और डुबकी लगाने के बाद भी अपनी आलोचना के पुराने राग को अलापते रहे और कहते रहे कि कुंभ के बहाने हिंदुत्व का प्रचार किया जा रहा है।

अंतिम दिन आयोजक खुश होकर महाकुंभ के आयोजन की विराटता और सुचारुता के बारे में बताते रहे कि इतने हजार पुलिसकर्मी, सुरक्षाकर्मी और इतने लाख खोये और मिलाए। इस बार तो गिनीज बुक के कई रेकार्ड टूटे…। योगी का यह एलान कि क्रम के हिसाब से पुलिस वालों को एक सप्ताह की विशेष छुट्टी दी जाएगी।

फिर कुंभ के आयोजन को सफलता पूर्वक संपन्न करने के लिए मुख्यमंत्री योगी द्वारा प्रबंधकों और कुंभ कर्मियों तथा सहायकों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करना और फिर कर्मियों साथ भोजन करने के दृश्य ने बहुत से ‘भक्तों’ को मुग्ध कर दिया, लेकिन न निंदकों ने अपनी निंदा छोड़ी, न आयोजकों और उनके पक्षधरों ने महाकुंभ को एक बेहद सफल आयोजन बताना छोड़ा। इस तरह महाकुंभ पर भी जमकर राजनीति हुई, लेकिन महाकुंभ ने बहुत से रेकार्ड तोड़े।

टीवी के कैमरे ‘लौंग शाट’ में बेहिसाब भीड़ दिखाते, तो हम घर बैठे उनको देख थरथराते कि इतनी भीड़ में कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए। कहीं कोई शरारती कुछ गड़बड़ न कर-करा दे। बहुत से एंकर/रिपोर्टर भी सनातन के रंग में रंगे दिखे। ‘आस्था की डुबकी’ सबका ‘तकिया कलाम’ बनता दिखा। एक चैनल ने तो सीधी लाइन लगाई कि यह सनातन का उभार हैै। आबादी का एक बड़ा हिस्सा तो सनातन के रंग में रंगा है। एक चैनल ने कुंभ की व्याख्या की कि यह सनातन का पुनर्जागरण है, लेकिन उसमें कितना ‘वोट कनवर्जन’ है? यह भी देखना होगा कि ‘कमंडल’ में ‘मंडल’ समाया कि ‘मंडल’ में ‘कमंडल’ समाया..!

एक बार फिर सत्ता का विरोध करते-करते विपक्ष महाकुंभ के ‘महाभाव’ से ही लड़ता दिखा और इस तरह मुख्यधारा के विपरीत जाकर आम जनता से अलग-थलग होता दिखा। ‘यूएसएड’ को लेकर कई चैनलों ने फिर बहसें चलाईं, लेकिन कोई नई बात निकल कर नहीं आई, न ही ‘यूएसएड’ के ‘पेड एजंटों’ के नाम किसी ने उद्घाटित किए। सत्ता पक्ष और विपक्ष के तर्क सिर्फ दुहरते रहे। कोई कहता कि जिनकी सरकार है, वे ऐसे दलालों को पकड़ते क्यों नहीं?

फिर एक दिन कई चैनलों में तमिलनाडु में हिंदी विरोध की एक नई लीला दिखाई दी। तमिलनाडु के कुछ रेलवे स्टेशनों पर कुछ लोग, ‘त्रिभाषा फार्मूले’ के हिसाब से बनाए गए नामपट्टों पर हिंदी में लिखे नामों पर कालिख पोतते दिखते रहे। ‘हिंदी थोपने’ का विरोध करने वाले मुख्यमंत्री स्टालिन के बयान के पक्ष में सिर्फ डीएमके वाले ही बोलते रहे कि नई शिक्षा नीति हिंदी थोपने का रास्ता है और हम इसे होने नहीं दे सकते। लेकिन एक एंकर ने एक बहस में हिंदी विरोधी राजनीति को ‘एक्सपोज’ करते हुए कहा कि डीएमके भाषा के मामले में हमेशा ‘दोहरा रवैया’ अपनाती है। उत्तर भारत के राज्यों के लिए वे ‘त्रिभाषा फार्मूले’ की वकालत करते हैं, जबकि अपने राज्य में सिर्फ ‘दोभाषा फार्मूला’ लागू करते हैं।