नेक इरादे हैं ये, लेकिन इनको हासिल करने में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के कई भाषण प्रवचन जैसे सुनाई दिए हैं और राहुल गांधी ने अपना भेस बना लिया है संन्यासियों का। जब इस यात्रा के बारे में राहुल जी या कांग्रेस प्रवक्ताओं से पूछा जाता है, तो कहते हैं कि इस यात्रा का कोई रिश्ता नहीं है राजनीति से। तो, सोचना यह होगा हमें कि राहुल गांधी क्या राजनीति से संन्यास लेना चाहते हैं? उनकी कुछ बातों से ऐसा लगता तो है।

एक भाषण/ प्रवचन में उन्होंने अपने श्रोताओं को हैरान कर दिया यह कह कर कि ‘आपको राहुल गांधी दिखते हैं, लेकिन मुझे राहुल गांधी नहीं दिखते हैं’। मतलब? कई अन्य भाषणों में उन्होंने राजनीतिक मुद्दे उठाए हैं और शिकायत की है कि उनको इस यात्रा पर इसलिए निकलना पड़ा है, क्योंकि मीडिया कांग्रेस की बात नहीं रखता है और संसद में उनको खुद मौका नहीं दिया जाता है जनता के मुद्दों को उठाने का।

बेरोजगारी, महंगाई, किसान की समस्याओं का मुद्दा, मजदूरों के दुख-दर्द का मुद्दा। ये तो हुईं राजनीति की बातें। तो, अगर राहुल गांधी अब भी राजनीति में हैं, तो उन्होंने अपनी यात्रा के रास्ते से गुजरात और हिमाचल को दूर क्यों रखा?

दूसरी तरफ हैं प्रधानमंत्री, जो इन राज्यों के चुनावों में ऐसे छाए रहे जैसे कि हर जनपद में चुनाव वे खुद लड़ रहे हों। हिमाचल में एक भाषण में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वोट करते समय मतदाताओं को ध्यान में रखना चाहिए कि वे अपना वोट दे रहे हैं मोदी के नाम पर। रही बात गुजरात की, तो प्रधानमंत्री ने देश के काम को ताक पर रख कर इतना समय गुजरात में चुनाव प्रचार करने में बिताया कि जैसे चुनाव नहीं, मोदी पर रायशुमारी हो रही हो।

परिणाम जब आए पिछले सप्ताह, तो साबित हो गया कि गुजरात के लोगों ने स्थानीय मुद्दों को अनदेखा करके सिर्फ मोदी को वोट दिया। ऐसा न होता तो कम से कम मोरबी में तो भारतीय जनता पार्टी हार जाती।

अभी तक मेरे जैसे लोग भुला नहीं सकते हैं उस पुल के गिरने के दृश्य, औरतों और छोटे बच्चों की लाशों के दृश्य। लेकिन मोरबी के लोग इस चीज को भी अनदेखा कर चुके हैं कि अभी तक उस कंपनी का मालिक पकड़ा नहीं गया है, जिसकी आपराधिक लापरवाही के कारण एक सौ इकतालीस लोग बेमौत मरे थे 30 अक्तूबर के दिन।

इस दर्दनाक हादसे ने मोदी के तथाकथित ‘गुजरात माडल’ का यथार्थ दिखाया था, बिल्कुल वैसे जैसे किसी प्रतिमा के उद्घाटन में पर्दा उतारा जाता है। लेकिन मोदी का ऐसा जादू है गुजरातियों की नजरों में कि उनके लिए इस हादसे से कोई फर्क नहीं पड़ा।

इस हादसे में उनको नहीं दिखा भ्रष्टाचार, कुशासन या भाई-भतीजावाद। या शायद दिखा भी तो उनको स्वीकार है ये सब मोदी के नाम पर। ऊपर से था भारतीय जनता पार्टी के प्रचार में हिंदुत्व का वह डरावना चेहरा, जिसके होते हार पहनाए गए थे बिलकिस बानो के बलात्कारियों को, उसकी बेटी के हत्यारों को।

मोदी का जादू इतना नहीं दिखा हिमाचल में, जहां कांग्रेस ने ऐसी टक्कर दी भारतीय जनता पार्टी को कि अगर इस दल के मुख्य नेता ने अपनी यात्रा से थोड़ा समय निकाल कर हिमाचल जाने की तकलीफ की होती, तो मुमकिन है कि कांग्रेस की जीत शायद और शानदार होती। मोदी का जादू नहीं चला दिल्ली के नगर पालिका के चुनावों में भी, जहां आम आदमी पार्टी ने भाजपा के पंद्रह साल लंबे राज को समाप्त कर दिया है।

बात जब आई है आम आदमी पार्टी की, तो यह कहना जरूरी है कि विपक्ष में आज अगर कोई ऐसा राजनीतिक दल दिख रहा है, जो मोदी को हरा सकता है, तो वह यही दल है। पंजाब में सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपनी नजरें गुजरात पर टिकार्इं और साबित करके दिखाया है कि कांग्रेस अब एक पुरानी, थकी-हारी पार्टी है, जिसकी जगह आम आदमी पार्टी लेने को तैयार हो गई है।

सवाल है कि राहुल गांधी चाहते क्या हैं? क्या वास्तव में चाहते हैं कि राजनीति से दूर हट कर एक नए रास्ते पर चलने लगें, जिसमें आध्यात्मिक सुगंध हो? क्या उनको वास्तव में कांग्रेस पार्टी की मृत्यु से कोई तकलीफ नहीं होगी? ऐसा अगर है तो जितनी जल्दी वे अपना नया रास्ता नापने का काम करते हैं, उतना भला होगा देश का।

आम आदमी पार्टी चाहे जितनी छलांगें मार कर आगे बढ़ती है राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनने के लिए, उसको अभी काफी समय लगेगा। अगले आम चुनावों में विपक्ष में अब भी कांग्रेस का बल या उसकी कमजोरियां मतदाताओं के सामने होंगी विकल्प के तौर पर। इसलिए बहुत जरूरी है कि कांग्रेस को ऐसा नेतृव मिले 2024 से पहले, जो मोदी की भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने के काबिल हो।

मोदी ने भाजपा को एक ऐसी चुनावी मशीन में तब्दील कर दिया है, जिसके पहिए कभी रुकते नहीं हैं, जिसके अंदर का र्इंधन कभी खत्म नहीं होता है। इस चुनावी मशीन का वैसे भी मुकाबला करना मुश्किल है, लेकिन अभी तक पूरी तरह नामुमकिन नहीं।

गांधी परिवार के वारिस अगर आध्यात्मिक रास्ता चुनने वाले हैं, तो उनको किसी और को नेतृत्व सौंपना चाहिए, वर्ना कांग्रेस में दोबारा जान फूंकना कठिन होता जाएगा। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ नेक इरादों से की जा रही है, लेकिन राहुल गांधी को याद दिलाना जरूरी है कि राजनीति में चुनाव जीतना सबसे जरूरी है।