संसद ठप्प है! संसद से सड़क तक हंगामा! धन्यभाग हमारे कि एक ही दिन में चैनलों ने ‘फेक न्यूज’, ‘आल्ट न्यूज’, ‘फाल्ट न्यूज’ और ‘पोस्ट न्यूज’ के दर्शन करा दिए! एक दिन भाजपा प्रवक्ता बोला : ‘न्यूजक्लिक’ है टूलकिट! विदेशों से पैसा लेकर देश का विरोध करने वाला टूलकिट! हाय हाय हाय हाय!
जवाब में कामरेड बोले : हम लेते हैं तो क्या, भाजपा भी लेती है विदेशों से फंड! कैसा अद्भुत ‘द्वंद्ववाद’: मैं लेता हूं तो क्या, तू भी तो लेता है! ये हैं आज के ‘कम्युनिस्ट आदर्श’!
एक दिन ‘गार्डियन’ हमारे चैनलों में आकर गरजा : ये सरकार है सर्वीलेंस सरकार! इजरायली साफ्टवेयर कंपनी ‘एनएसओ-पेगासस सरकार’! ‘पेगासस साफ्टवेयर’ बिना कनेक्ट किए ही हर फोन धारक की एकदम निजी जिदंगी में घुस सकता है। ‘बेडरूम’ तक में ताक-झांक कर सकता है! विपक्ष चीखा :1984 की ‘बिग ब्रदर’ की सरकार है। फासिस्ट सरकार है! बहसों में सरकार ने कहा कि हम गैरकानूनी तरीके से कुछ नहीं करते। विपक्ष ने कहा कि ‘पेगासस’ लिया कि नहीं? भाजपा प्रवक्ता कहिन कि जिनको शिकायत है वे अपना फोन पुलिस से जंचवा लें! एफआइआर करें। विपक्ष ने कहा कि स्वतंत्र जांच कराओ! चैनलों ने पहले बताया कि भारत में पांच सौ की ‘हैकिंग’ की जा रही है, फिर बताया कि सड़सठ की ‘हैकिंग’ की गई है, फिर बताया कि सैंतीस की हुई है और अंत में बताया कि सिर्फ दस की की गई है! इस पल-पल चोला बदलती ‘आल्ट न्यूज’ यानी ‘वैकल्पिक खबर’ कि ये पसंद नहीं तो ये ले लो!
हंगामे के बीच संसद में टीएमसी के एक सांसद ने गुस्से में आकर सूचना मंत्री से कागज छीन कर फाड़ कर फेंक दिए और इस तरह अवमानना की कार्रवाई निमंत्रित कर बैठे! यानी ‘मारे गए गुलफाम’ वो भी संसद के दंगल में!
अगले रोज सारी कहानी पर पानी फिरता नजर आया : एक एंकर एक इसरायली पत्रकार के हवाले से बताने लगा कि हैकिंग की सूची ‘एनएसओ’ की बनाई नहीं! दूसरा एंकर बोला ‘हैंकिंग’ की न्यूूज ‘फेक’ है। धोखापट्टी है! इजरायली एमनेस्टी बोली कि सूची हमारी नहीं। फिर बोली कि हमसे न पूछो, इंटरनेशनल एमनेस्टी से पूछो! यानी ‘हमरी न मानो सिपहिया से पूछो!’ इसी तरह एक दिन राहुल बोले कि मेरा फोन हैक किया है! जवाब में भाजपा बोली कि फोन की जांच करा लो, यानी वही कि ‘हमरी न मानो सिपहिया से पूछो!’ लेकिन सिपहिया जी से कौन पूछे?
फिर एक दिन चैनलों ने आयकर वालों द्वारा एक बड़े मीडिया घराने के बत्तीस दफ्तरों पर छापे की खबर तोड़ी! विपक्ष बोला कि यह कोविड की असलियत बताने की सजा है! छापों को कवर करने वाले एक एंकर ने संकेत किया है कि घराना सिर्फ अखबार नहीं निकालता, उसके और भी धंधे हैं! एक चैनल उसकी ‘कोविड कहानियों’ की सुर्खियां दिखाता रहा, लेकिन कोविड की मौतों की ऐसी सुर्खियां, गंगा में तैरती लाशों की ऐसी ही कहानियां तो बाकी मीडिया में रहीं! तब इसी पर छापे क्यों? यह सवाल अटका रहा!
फिर एक दिन सरकार ने ‘आ बैल मुझे मार’ किया! दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों को जंतर मंतर तक आने दिया। दो सौ आए। कुछ ने मीडिया से बात की, लेकिन टिकैत की भाषा एकदम पश्चिमी यूपी के किसानी मुहावरे की होती है। अपने रिपोर्टर उनके देसी मुहावरों को पकड़ नहीं पाते, जबकि वे एक लाइन में बहुत कुछ कह जाते हैं! अब जब तक संसद लगेगी किसान जंतर मंतर तक आते-जाते रहेंगे, अपनी समांतर संसद लगाते रहेंगे!
फिर एक दिन एक और मंत्री जी ने ‘आ बैल मुझे मार’ वाली बात कर दी और जम कर अपनी बेहुरमती कराई! मंत्री जी ने कह दिया कि कोविड में ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा!
इस अद्भुत ‘उत्तर-सत्य’ को सुनते ही दर्शक जनता अपना सिर पकड़ कर बैठ गई और सोचने लगी कि कुछ दिन पहले ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते मरीजों को सीधा प्रसारण में देखा, क्या वह सब झूठ था?
इस चतुर ‘उत्तर-सत्य’ पर सरकार धिक्कारी जाने लगी तो प्रवक्ता जी ने आकर साफ किया कि केंद्र आंकड़े बनाता नहीं, सिर्फ इकठ्ठा करता है। राज्यों ने जो आंकड़े दिए उसी को एकत्र कर सरकार ने बताया! राज्य बोले कि जब ‘ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई मौतों’ के बारे में पूछा ही नहीं गया, तो हम जवाब क्या देते!
कैसी निर्ल्लज्ज निष्ठुरता कि न केंद्र ने पूछा और न राज्य सरकारों ने बताना जरूरी समझा और इस तरह से चैनलों पर जो दुनिया ने सीधा देखा, वह सब झूठ था! सिर्फ राजद सांसद मनोज झा का वह क्षुब्ध वक्तव्य इस ‘उत्तर-सत्य’ की कलई खोलने वाला था!
यों एक दिन ममता ने ऑनलाइन दिल्ली हिलाने की कोशिश की और एक दिन सिद्ध्ू ने अध्यक्ष बन कर पंजाब को हिलाया!