इन दिनों कोई भी, किसी को भी, कुछ भी आल फाल बोल सकता है और फिर भी रोता रह सकता है कि उसकी आजादी और जनतंत्र खतरे में है!पहले गाली दो और खुद को खबर में लाओ। बदतमीजी का कुछ देर मजा लो, फिर माफी मांग लो… फिर गाली दे दो, खबर बनाओ और फिर माफी मांग लो, फिर गाली फिर माफी…
नफरत का एक नया बाजार कई दिन तक खुला। एक दिन बिहार के एक नेता जी रामकथा को नफरत की जमीन कह कर अपनी ही नफरत व्यक्त करते रहे और अधिकांश खबर चैनलों में छाए रहे… रामकथा नफरत कथा है… कूड़ा करकट है…
फिर इस नफरती आख्यान से होते नुकसान की भरपाई करने के लिए सहयोगी नेता कहते रहे कि रामायण हम सबकी आस्था का केंद्र है। लेकिन नफरत का धारावाहिक इतनी आसानी से कहां खत्म होता है? सो, तुरंत एक और नेता मानस की कुछ चौपाइयां उद्धृत करने लगे कि यह नफरत फैलाता है, यह कहता है कि नीच लोग पढ़-लिख कर जहरीला हो जाते हैं, ऐसे छंद नहीं होने चाहिए… ‘मनुस्मृति’, ‘राम चरितमानस’ और ‘बंच आफ थाट्स’ नफरत की किताबें हैं…
बहरहाल, भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की खबर ने उक्त नफरती खबरों को पीछे कर दिया और चैनल पीएम के ‘रोड शो’ को ‘लाइव’ दिखाने लगे। ‘रोड शो’ को देख ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के एक व्याख्याता कहने लगे कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से घबरा कर ‘रोड शो’ करना पड़ रहा है…
अरे सर जी, इतना ही क्यों, हम तो यह तक मानते हैं कि इस यात्रा से घबरा कर ही दिल्ली में ‘शीतलहर’ आई होगी और सूरज ने भी देर से निकलना शुरू किया होगा! हाय आत्मरति तू भी कितनी प्यारी है कि जिधर देखता हूं, खुद को ही देखता हूं!
फिर एक चैनल पर एक नोबेलवादी लाइन बोली कि मैडम जी, संभालें कमान… हाय! ऐसे में हमारे यात्री जी क्या करेंगे? फिर एक शाम कई चैनल कालेजियम बरक्स सरकार की बहस में व्यस्त रहे। एक पक्ष कहिन कि कालेजियम प्रणाली व्यर्थ है, दूसरे कहिन कि कालेजियम में सरकारी प्रतिनिधि को घुसेड़ना खतरनाक है!
फिर एक सार्वजनिक प्रवक्ता गुस्से में बोला कि अपनी न्याय-व्यवस्था बर्बाद है… सत्तर हजार मुकदमे तो सुप्रीम कोर्ट में ही लंबित हैं, चार करोड़ निचली अदालतों में लंबित हैं… यानी ‘तारीख पे तारीख’ की संस्कृति है… फिर एक ज्ञानी बोलिन कि न्याय-व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन चाहिए (जो कभी होने का नहीं)!
फिर एक शाम पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने जो कुछ कहा, उसे सुन कर तो हमारा उदार दिल भी बिलबिलाने लगा। वे बोले कि हम हिंदुस्तान से तीन जंगें हार चुके हैं… हर बार नीचे गए हैं… हमने सबक लिए हैं… 2024 में मोदी ही जीतेंगे… हम शांति से जीना चाहते हैं…
इस मुद्दे पर जो चर्चाएं आईं, उनमें कुछ पाक प्रवक्ता भी रहे। कई शरीफ की लाइन से सहमत दिखते, लेकिन कई असहमत भी दिखते, लेकिन अपने प्रवक्ता पर्याप्त वाचाल न दिखे।
बहरहाल, एक दिन फिर राहुल भैया ने संघ पर कृपा की कि वे संघ के दफ्तर जा नहीं सकते… (इसके लिए) गला काटना पड़ेगा… एक समय वरुण ने उस विचारधरा को अपनाया… वे वरुण को गले लगा सकते हैं, लेकिन उनकी विचारधारा को नहीं… हाय! ‘मोहब्बत के बाजार’ में भी ‘नफरत की सेल’!
इसके बाद भाजपा की कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक ने बड़ी खबर बनाई। दूसरे दिन प्रवक्ता ने भाजपा का भावी मुद्दा दिया कि अगले चुनाव में चार सौ दिन बचे हैं, भाजपा के सदस्य हर रोज लोगों से मिलें, भाजपा वालों को मर्यादित भाषा बोलनी चाहिए। भाजपा अब राजनीतिक पार्टी ही नहीं, सामाजिक पार्टी भी है। यह अमृतकाल कर्तव्यकाल है, पसमांदा मुसलमान और वोहरा समाज के लोगों से मुलाकात करें…
लेकिन विपक्षी प्रवक्ता हमेशा की तरह महंगाई, बेरोजगारी को ही रोते दिखे। फिर एक उत्तरी नेताजी दक्षिण दिशा में कहते दिखे कि भाजपा के अब तीन सौ निन्यानबे दिन ही बचे हैं…
फिर गुरुवार की शाम कई चैनलों में बीबीसी के साथ उसकी वह डाक्यूमेंट्री भी ठुकी, जो गुजरात दंगों के लिए एक बार फिर उन पर ही आरोप लगाती है, जिनको सुप्रीम कोर्ट तक निर्दोष सिद्ध कर चुका है।
इसके आगे पहलवान संघ के अध्यक्ष के ‘यौन शोषण’ के खिलाफ कुछ इनामी महिला पहलवानों ने जंतर-मंतर पर अखाड़ा खोल दिया। इसके साथ-साथ कई चैनलों में धीरेंद्र बाबा के कथित ‘चमत्कार’ सीधे प्रसारित रहे। तर्कवादी बाबा पर धोखाधड़ी के आरोप लगाते रहे, जबकि बाबा कहते रहे कि ये सब सनातन विरोधी हैं…