हिंदुत्व का पहला पाठ : हिंदुत्व बोकोहराम और आइसिस जैसा है!
दूसरा पाठ : हिंदुत्व को बोकोहराम आइसिस के बराबर बताना एकदम गलत है!
तीसरा पाठ : हिंदूवाद अलग हिंदुत्व अलग। हिंदूवाद जोड़ता है, हिंदुत्व तोड़ता है!
चौथा पाठ : हिंदुत्व माने कालनेमि! कालनेमि था राक्षस! हिंदुत्ववाद यानी राक्षसत्व! ‘उघरे अंत न होइ निबाहू कालनेमि जिमि रावन राहू’।
पांचवा पाठ : इस्लाम ने छह सौ छियासठ बरस यहां राज किया। 187ध में जनगणना के मुताबिक यहां मुसलमान चौबीस फीसद थे और हिंदू बहत्तर फीसद थे। अगर इस्लामी बादशाहों ने सबको मुसलमान बनाया होता तो मुसलमान सिर्फ चौबीस फीसदी न होते, बल्कि बहत्तर फीसद होते। हम अकबर के अकबर हमारे!
छठा पाठ : हिंदुत्व ब्रिटिश फुटबाल टीम की तरह हुड़दंगी है! अगर टीम के खिलाफ बोलता है तो उसका सिर तोड़ देते हैं।
ऐसे-ऐसे इतिहास विशेषज्ञों के दर्शन हुए कि तबियत खुश हो गई! जितने हिंदुत्व विरोधी पाठ हुए उतने ही हिंदुत्ववादी पाठ भी सामने आए। एक समर्थक पाठ : ये ‘हिंदू हेट’ योजनाबद्ध है! दूसरा समर्थक पाठ : इसके तार पाक से जुड़े हैं! तीसरा समर्थक पाठ : सुप्रीम कोर्ट ने हिंदूवाद और हिंदुत्व को एक जीवनशैली माना है। चौथा समर्थक पाठ : अगर हिंदुत्व बोकोहराम या आइसिस जैसा होता तो आप इतने गाल न बजा रहे होते, कहीं जान बचाकर भाग रहे होते!
ऐसी धांय-धांय हुई कि एक किताब जम के बिकती दिखी और लेखक चैनलों में सफाई देता दिखा। उसके एक घर पर हमला भी होता दिखा। लेकिन भैये! इन हिंदुत्व के अंध-विरोधियों को कौन समझाए कि हिंदुत्व को जितना ठोंकोगे, वह उतना ही ध्यान खींचेंगा!
एक दिन मां अन्नपूर्णा की मूर्ति कनाडा से वापस आती है तो पूरे सांस्कृतिक कर्मकांड के साथ उसकी उसी जगह प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है, जहां से उसे एक शताब्दी पहले चुराया गया था। सार चैनल इसे जम के दिखाते हैं। यूपी के सीएम समूचे कार्यक्रम में मौजूद रहते हैं।
फिर एक दिन त्रिपुरा में एक मसजिद जलाने की ‘फेक न्यूज’ गजब ढाती है! मसजिद तो न जली, लेकिन उसकी ‘फेक न्यूज’ में महाराष्ट्र के कई नगर जलते-जलते रह गए! ये दिन ऐसे ही ‘तीखे’ और ‘प्रतिक्रियात्मक’ हैं कि आग कहीं लगती है, मुद्दा कहीं पकता है और खून कहीं गिरता है!
लेकिन शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक रहा। जैसे ही गुरु प्रकाश परब (शुक्रवार) के अवसर पर पीएम ने ‘तीनों कृषि कानूनों’ को वापस लेने की बात कहते हुए किसानों से माफी मांगी और कहा कि हम किसानों का समझाने में नाकाम रहे, वैसे ही राजनीतिक पनियाढार हो गया। नीति का ऐसा ‘एंटीक्लाइमेक्स’ कब देखा? ऐसा झटकेदार परावर्तन इतिहास में नहीं दिखता। कहां तो ‘कानून वापस नहीं होंगे’ का स्थायी भाव और कहां एक झटके में सब वापस!
एक चैनल के रिपोर्टर ने जब किसान नेता टिकैत से पूछा कि क्या अब आप किसान आंदोलन को खत्म करेंगे तो टिकैत ने दो टूक जबाव दिया : आंदोलन तत्काल खत्म नहीं होगा। आंदोलन किसी के रहमोकरम पर नहीं चल रहा। हमारी कमेटी तय करेगी कि आगे क्या करना है!
कांग्रेस ने ठोंका : अंहकार गिरा, किसान जीते! बहुत दिन बाद कांग्रेस ‘वन अप’ नजर आई!
अखिलेश ने चोट मारी : यूपी की जनता और किसान इनको माफ नहीं, साफ करेंगे! जनता चुनाव में जबाव देगी। भाजपा नेताओं-प्रवक्ताओं के लिए यह ‘यू टर्न’ एक बड़े भूकम्प की तरह आया। शायद इसीलिए कोई प्रवक्ता देर तक किसी चैनल पर नजर न आया! शुक्रवार के इस ‘यू टर्न’ से संबंधित खबरें बिना किसी बहस के अपने को खोल रही थीं, जैसे आपके कान में कोई चुपके से कहे जाता हो कि सर जी! क्या-क्या वापस लोगे?
सीएए को भी लोगे कि तीन तलाक कानून को भी लोगे और क्या तीन सौ सत्तर को हटाने वाले कानून को भी वापस लोगे? और लोगे तो आप कहां रहोगे? आपके रुतबे का क्या होगा? कौन मानेगा आपकी बात? किस-किस बात पर किस-किस से माफी मांगोगे महाराज! इन दिनों कौन किसी को देता है माफी! सिर्फ अमरिंदंर सिंह ने दिया पीएम को धन्यवाद और अन्ना हजारे हुए खुश! लेकिन ओवैसी ने तो दोपहर में ही एक चैनल पर कह दिया कि सीएए का मुद्दा भी है।
कानूनों की यह वापसी कुछ को ‘रण छोड़ने’ जैसा लगेगा। लेकिन ‘रण छोड़ना’ एक बात है और ‘रणछोड़’ होना दूसरी बात। और ‘रणछोड़ लीला’ करना तीसरी बात! या कि यह भी आपकी ‘एक कदम आगे दो कदम पीछे’ वाली कोई नई रणछोड़ लीला है महाराज?