संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर, 2021 को शुरू हुआ। उसके बाद लोकसभा में हर दिन विधेयकों, प्रस्तावों आदि पर बहस हो रही है। कई विषयों पर चर्चा हो चुकी है। मगर राज्यसभा में उथल-पुथल मची हुई है। राज्यसभा पर काले बादल के रूप में जो मुद्दा लटका हुआ है, वह सत्र के पहले दिन से 24 दिसंबर तक शेष सत्र के लिए सदन से विभिन्न विपक्षी दलों के बारह सदस्यों का निलंबन है।

पूरा विपक्ष आंदोलित है, कोई ज्यादा तो कोई कम। सभी विपक्षी दलों ने एक साथ विरोध किया, एक साथ मार्च किया और एक साथ मीडिया को संबोधित किया। हालांकि, राज्यसभा के अंदर कुछ ने किसी भी रूप में भाग लेने से इनकार कर दिया, कुछ ने प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न पूछे या विशेष उल्लेख किए। लाबी और सेंट्रल हाल में परस्पर विरोधी विचार हैं। बारह नाराज निलंबित सदस्य सदन के बाहर महात्मा गांधी की प्रतिमा के नीचे धरने पर बैठे हैं। यह एक अभूतपूर्व स्थिति है।

विवाद और हैरानी
विवाद पैदा हुआ पिछले सत्र के अंतिम दिन- 11 अगस्त, 2021 को। उस दिन के संसदीय बुलेटिन भाग (एक) के अनुसार, कुछ सदस्यों ने ‘‘सदन की ‘वेल’ में प्रवेश किया, तख्तियां लहराईं और नारेबाजी की। और लगातार और जानबूझ कर सदन की कार्यवाही में बाधा डाली।’’ बुलेटिन में तैंतीस सदस्यों के नाम सूचीबद्ध हैं। मगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई या संकेत नहीं दिया गया था।

जो हुआ- अगर सच है तो- दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन अभूतपूर्व नहीं था। तत्कालीन राज्यसभा में विपक्ष के नेता (भाजपा) अरुण जेटली ने घोषणा की थी कि सदन के कामकाज में बाधा डालना एक वैध संसदीय रणनीति है। जो भी हो, घटना पिछले सत्र के अंतिम दिन हुई थी और 11 अगस्त को शाम 7.46 बजे बिना कोई कार्रवाई किए सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था।

29 नवंबर को जो शुरू हुआ, वह एक नया सत्र था। सुबह ग्यारह बजे कार्यवाही शुरू हुई। श्रद्धांजलि के बाद, सदन को सम्मान के रूप में एक घंटे के लिए स्थगित कर दिया गया, इसे दोपहर 12.20 बजे फिर से बुलाया गया और सामान्य कामकाज फिर से शुरू किया गया। दोपहर के भोजनावकाश के बाद, दोपहर 2 बजे, कृषि कानून निरसन विधेयक को लिया गया और दोपहर 2.06 बजे बिना चर्चा के पारित कर दिया गया (उस पर, मैं टिप्पणी अभी नहीं करूंगा)। फिर सदन को स्थगित कर दिया गया और अपराह्न 3.08 बजे पुन: शुरू किया गया। अचानक, एक मंत्री ने सत्र के शेष भाग के लिए बारह सदस्यों को निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया, प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, सदस्यों ने विरोध किया, लेकिन सदन को अपराह्न 3.21 बजे (संसदीय बुलेटिन भाग (एक) दिनांक 29 नवंबर के अनुसार) स्थगित कर दिया गया।

विवादास्पद नियम
अगले दिन निलंबित सदस्यों ने धरना शुरू कर दिया। यह तीन हफ्ते से जारी है। सरकार झुकने को तैयार नहीं है। सभापति सरकार को झुकाने के लिए तैयार नहीं हैं।

किसी सदस्य के निलंबन पर लागू होने वाला नियम 256 है। नियम स्पष्ट है। राज्यसभा का रिकार्ड यह नहीं दर्शाता कि किसी सदस्य का नाम 11 अगस्त को रखा गया था। 29 नवंबर को अपराह्न 3.08 बजे राज्यसभा के पुन: शुरू होने पर ही संसदीय कार्यमंत्री ने बारह सदस्यों को निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया, और बुलेटिन का कहना है कि प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया था। प्रस्ताव को सदन में रखने या उस पर मतविभाजन कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया था। विपक्ष के सदस्य इस बात पर एकमत हैं कि वोट नहीं कराया गया। ट्रेजरी बेंच उस स्थिति का खंडन नहीं करती है।

सदन में कई सवाल उठाए गए। क्या पिछले सत्र में कथित रूप से उच्छृंखल आचरण के लिए नए सत्र में सदस्यों को निलंबित किया जा सकता है? क्या सदस्यों को निलंबित किया जा सकता है, जबकि 11 अगस्त को उनमें से किसी का भी ‘नाम’ नहीं लिया गया था? क्या सदस्यों को उस प्रस्ताव पर निलंबित किया जा सकता है, जिस पर सदन ने मतदान नहीं किया था?

जब तैंतीस सदस्यों पर अभद्र आचरण का आरोप लगाया गया था, तो केवल बारह को ही क्यों निलंबित किया गया? तैंतीस लोगों की सूची में एलमारन करीम का नाम नहीं है, फिर भी उन्हें निलंबित क्यों किया गया? इन प्रश्नों को सदन में उठाने की अनुमति नहीं थी, इसलिए इन्हें सार्वजनिक करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

लोकतंत्र का क्षरण
16 दिसंबर को, विपक्ष ने नियम 256(2) के परंतुक के तहत एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें सदस्यों के निलंबन को समाप्त करने के लिए ‘किसी भी समय’ प्रस्ताव पेश करने की अनुमति है। पीठासीन अधिकारी ने तकनीकी और संदिग्ध आधार पर प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
जिन लोगों को (विपक्ष) बोलने का अधिकार है, उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है और जिन लोगों को (सरकार) सुनने का कर्तव्य है, अगर उनके कान बंद कर दिए जाएं, तो लोकतंत्र कुछ कम हो जाता है।

नियम 256 : सदस्य का निलंबन
1. सभापति, अगर वह आवश्यक समझे, किसी ऐसे सदस्य का नाम बता सकता है, जो सभापति का निरादर या परिषद के नियमों की लगातार अवहेलना करता या जानबूझ कर उसके कार्य में बाधा डालता है।

2.अगर किसी सदस्य का नाम सभापति द्वारा इस प्रकार रखा जाता है, तो वह किसी भी संशोधन, स्थगन या वाद-विवाद की अनुमति न दिए जाने के प्रस्ताव पर तत्काल प्रश्न रखेगा कि सदस्य (उसका नाम बताते हुए) को एक तय अवधि के लिए सदन की सेवा से निलंबित कर दिया जाए। मगर शेष सत्र से अधिक नहीं:
बशर्ते कि परिषद, किसी भी समय, प्रस्ताव किए जाने पर, इस तरह के निलंबन को समाप्त करने का संकल्प ले सकती है।

3. इस नियम के अधीन कोई निलंबित सदस्य सदन के परिसर को तुरंत छोड़ देगा।