यह साल का वह समय है, जब माना जाता है कि सांता क्लाज घरों में उपहार लेकर आता है। वह कइयों को निराश कर सकता है, लेकिन यह विश्वास चला आ रहा है। यह बच्चों का मनोरंजन करने वाली कहानी है। एक आकृति, जिसके बारे में मुझे यकीन है कि वह सांता क्लाज से मेल नहीं खाती, लेकिन कोई नहीं जानता कि कौन, जो भारत में अब खत्म हो रहे पूरे साल के दौरान मंडराती रही। उसका आना अवांछित था। वह अनचाहे तोहफे लेकर आया। गिनिए-

नई ऊंचाइयां ………………….
परिवारों के लिए: खुदरा महंगाई 4.91 फीसद है। जिसमें ईंधन और बिजली की महंगाई 13.4 फीसद है। सांता का सुझाव है कि ऐसी नौकरी खोजें, जिसमें महंगाई भत्ता और मकान किराया मिलता हो और नियोक्ता बिजली और पानी का बिल भर दे।
किसानों के लिए: उद्योगपतियों को जमीन पट्टे पर देने की आजादी, उद्योगपतियों से उधार लेने की आजादी, कहीं भी उद्योगपतियों को अपनी फसल बेचने की आजादी और भूमिहीन कृषि मजदूर बन जाने की आजादी। यह अलग कहानी है कि किसानों ने ऐसे शानदार प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

सभी उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए: थोक मुद्रास्फीति 14.23 फीसद है। इसका मतलब यह है कि लगभग सभी चीजों के दाम चढ़े हुए हैं। अगर एक चीज या सेवा के दाम गिरते हैं तो अपने को भाग्यशाली मानें, क्योंकि थोक महंगाई बारह सालों में सबसे ज्यादा है।

नौजवान पुरुषों और महिलाओं के लिए: बेरोजगारी दर 7.48 फीसद है। जिसमें शहरी बेरोजगारी दर 9.09 फीसद है। (सीएमआइई के अनुसार)
स्नातकोत्तर और पीएचडी करने वालों के लिए: केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आइआइटी और आइआइएम में शिक्षकों के दस हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। उनका मकसद पढ़ाना है और जो नतीजों के अनुसार वे शिक्षण का शानदार काम कर रहे हैं। यह सौभाग्य की बात है कि उन्होंने बिना शिक्षकों के पढ़ाने का रास्ता निकाल लिया है।

नया आरक्षण ………………….
एससी, एसटी और ओबीसी के लिए: शिक्षकों के दस हजार से ज्यादा पद हैं, जो खाली पड़े हैं। इनमें से चार हजार एक सौ छब्बीस एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित हैं। परेशान न हों, आरक्षण बना रहेगा। उनके फायदे के लिए आरक्षण नीति को दुरुस्त कर दिया गया है। पदों में अब और आरक्षण नहीं होगा, खाली पदों में आरक्षण रहेगा। सरकार और खाली पद सृजित करेगी और उन्हें एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कर देगी। आरक्षण नीति का सम्मान उसके सही अर्थों में बना रहेगा। उम्मीदवार अपने सीवी में बता सकते हैं कि वे इस समय एक खाली पद के साथ जुड़े हुए हैं।

मासिक किस्त देने वालों के लिए: मासिक किस्तों पर ब्याज दर ऊंची हैं। बैंक 2020-21 में दो लाख दो हजार सात सौ तिरासी करोड़ रुपए के डूबते कर्जों को बट्टे खाते में डाल चुके हैं। उधार लेने वालों को शुक्रिया अदा करना चाहिए कि बैंक उन्हें कर्ज देने की पेशकश कर रहे हैं।

गरीबों के लिए: आप कतार में हैं। अपनी बारी आने का इंतजार करें। (हो सकता है जो कभी न आए)। सरकारी क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) गरीब उद्योगपतियों की मदद में व्यस्त हैं। 2020-21 में सिर्फ तेरह उद्योगपतियों पर सरकारी बैंकों के चार लाख छियासी हजार आठ सौ करोड़ रुपए की देनदारी बकाया थी। बैंकों ने इन देनदारियों को एक लाख इकसठ हजार आठ सौ बीस करोड़ रुपए में निपटा दिया। बैंक खुश थे कि उन्होंने भारत के लोगों (जो वाकई तेरह बड़े उद्योगपति हैं) के कल्याण के लिए कोशिश की और दो लाख चौरासी हजार नौ सौ अस्सी करोड़ रुपए छोड़ दिए। पीएसबी ऐसी ही सेवा करने को और इच्छुक है, बशर्ते आप कर्ज न चुकाने वाले उद्योगपति हों।

अर्थशास्त्रियों और अर्थशास्त्र के छात्रों के लिए: ‘वी’ आकार का सुधार है। कम से कम वह, जिसका सरकार ने दावा किया है। ऐसा मुख्य आर्थिक सलाहकार ने किया, जो संयोग से सरकार छोड़ रहे हैं। डा. कृष्णमूर्ति सुब्रमनियन इंडियन स्कूल आफ बिजनेस से काफी ज्ञान लाए थे भारत सरकार के लिए, और वे अपना काफी ज्ञान भारत सरकार के पास छोड़ कर इंडियन स्कूल आफ बिजनेस लौटेंगे।

दिलचस्प यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के उप-प्रबंध निदेशक (घोषित) डा. गीता गोपीनाथ पिछले हफ्ते दिल्ली में थीं और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार को ‘के’ आकार का बताया था। चिंतित न हों, इन दो अक्षरों के चुनाव के लिए कोई बाध्य नहीं है, क्योंकि अंग्रेजी वर्णमाला में चौबीस और अक्षर भी हैं। पिछले अनुभवों के आधार पर यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि शाश्वत आशावादी ‘आई’ अक्षर को चुनेंगे और नकार वादी ‘ओ’ को। आर्थिक मामलों के प्रतिभावान ‘एम’ अक्षर के पक्ष में तर्क देंगे।

आजादी के गवाह ………………….
स्वतंत्र प्रेस के लिए: प्रेस की स्वतंत्रता के वैश्विक सूचकांक में भारत बहुत ‘ऊंचे’ पायदान पर है। इस वक्त एक सौ अस्सी में एक सौ बयालीसवें स्थान पर, जो पिछले साल एक सौ चालीसवें पर था। भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री सही हो सकते हैं, जब वे यह कहते हैं कि वे ऐसे सूचकांक तैयार करने वाले ‘रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स’ के नतीजे से सहमत नहीं हैं। उन्हें प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में एक दो चीजें जान लेनी चाहिए।

भारत के आदेशों का पालन करने वाले पत्रकार जो प्रिंट के हों या टीवी के, जब यह चिल्लाते हैं कि ‘गोली मारो … को’ या ‘हरा विषाणु’, तो भारत में प्रेस की आजादी की हकीकत खुल कर सामने आ जाती है और हम जान जाते हैं कि यह जीवित है और असर दिखा रही है। मंत्री ने यह कारण भी दिया कि प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है।

सांता ने सुझाव दिया कि उन्हें और लोगों के साथ इन पत्रकारों को भी बुलाना चाहिए, जिन्होंने प्रेस की आजादी की परिभाषा तय करने की कोशिश की है। ये हैं- राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, करण थापर, सागरिका घोष, परंजयगुहा ठाकुरता, राघव बहल, बाबी घोष, पुण्य प्रसून वाजपेयी, कृष्णा प्रसाद, प्रणय राय और सुधीर अग्रवाल।

सभी लोगों के लिए: नीतियां जो कुपोषण, बच्चों में फेफड़ों की टीबी, बच्चों में बौनापन और बाल मृत्युदर को तय करेंगी। इन नीतियों से भारत वैश्विक भुखमरी सूचकांक में एक सौ सोलह देशों में से एक सौ एकवें स्थान पर आ गया है। स्वागत योग्य उप-उत्पाद के रूप में देशभक्त दपंतियों ने सुनिश्चित किया कि कुल प्रजनन दर घट कर 2.0 रह जाए, जो प्रतिस्थापन दर से नीचे है।
नए साल की शुभकामनाएं!