कोरोना महामारी की दूसरी लहर मई के आखिर के बाद कम पड़ भी सकती है और नहीं भी। भारत में तीसरी लहर आ भी सकती है और नहीं भी, वैसे ही जैसे कुछ देशों में हफ्तों या महीनों के बाद हुआ। सिर्फ जो चीज निश्चित है वह यह कि कोरोना विषाणु को लेकर सब कुछ अनिश्चित है और इसके बारे में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। यह कई सरकारों को पूरी तरह से शिकस्त दे चुका है। कुछ ने साहस और दक्षता के साथ इसका मुकाबला किया, जबकि कुछ सरकारें, जैसे भारत सरकार, चित हो गईं।

नेतृत्व की जरूरत
छोटे से और थोड़ी-सी आबादी वाले द्वीप देश न्यूजीलैंड ने नौजवान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में दूरदृष्टि और पक्के इरादे के साथ काम किया। दूसरी ओर, तैंतीस करोड़ बीस लाख आबादी वाले अमेरिका जैसे बड़े देश, जिसमें पचास राज्य हैं और विशाल क्षेत्रफल है, ने उम्रदराज और बुद्धिमान राष्ट्रपति की अगुआई में भारी-भरकम संसाधन जुटाए, और सौ दिन में दस करोड़ लोगों को टीका लगाने का कठिन लक्ष्य रखा और बीस करोड़ लोगों का टीकाकरण कर डाला। हमारे पास ब्रिटेन और यूरोपीय देशों के उदाहरण भी हैं, जिन्होंने सफलतापूर्वक महामारी का मुकाबला किया। इन सभी उदाहरणों में जो सबसे बड़ी समानता देखने को मिलती है, वह नेतृत्त्व की है। बाकी दूसरी खूबियां भी हैं जैसे- नम्रता, पारदर्शिता, दक्षता और करुणा। भारत में ये पांचों नदारद हैं। कोविड के अलावा हम दूसरी त्रासदियां भी झेल रहे हैं।

सच, करुणा और साख
पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले इस साल ज्यादा लोग मर रहे हैं। सरकार का दावा है कि ऐसा कोरोना के कारण नहीं हो रहा है। यह राहत की बात तो है, लेकिन अगर ये मौतें कोरोना से नहीं हो रही हैं, तो फिर इतनी मौतों की वजह क्या है कि हमारे कब्रिस्तान और श्मशान लाशों के कभी खत्म न होने वाले बोझ से ढहे जा रहे हैं? यहां गुजरात से आई एक सच्ची कहानी पेश है। एक मार्च से दस मई, 2020 के बीच इकहत्तर दिनों में गुजरात ने अट्ठावन हजार अड़सठ मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए थे। वर्ष 2021 की इकहत्तर दिनों की इसी अवधि में सरकार ने एक लाख तेईस हजार आठ सौ तिहत्तर मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले पैंसठ हजार आठ सौ पांच ज्यादा हैं। इन आंकड़ों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि की जा चुकी है। निस्संदेह ये सामान्य मौतें तो नहीं हैं। गुजरात सरकार ने कोविड से जुड़े मामलों से चार हजार दो सौ अठारह मौतों की बात स्वीकार की है। तब बाकी मौतों के बारे में क्या माना जाए? सिर्फ कोई जवाब नहीं है, बल्कि राज्य सरकार आंकड़ों को खारिज करते हुए और झूठा प्रचार करार देते हुए यह भूल गई कि इस झूठे प्रचार का स्रोत सरकारी मृत्यु प्रमाणपत्र ही थे! यहां सच्चाई मारी गई।

हर मशहूर अर्थशास्त्री, गरीबों के बीच काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और व्यावहारिक रूप से दुनिया में हर सरकार ने गरीबों को आय हस्तांतरण के विचार का समर्थन किया था। बच्चे और अभिभावक मुफ्त भोजन, जो यहां-वहां मिल रहा है, लेने के लिए दौड़ रहे हैं। यह बहुत ही अपमानजनक है। भूख के मामले बहुत ज्यादा हैं। पिछले साल यानी 2020 में वैश्विक भुखमरी सूचकांक में एक सौ सात देशों में भारत का स्थान चौरानबेवां था। सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए अलग से रखे गए बीस हजार करोड़ रुपए से चार हजार करोड़ मुफ्त खाना दिया जा सकता है। इसका मतलब हुआ कि चालीस करोड़ बच्चों को रोजाना एक बार सौ दिनों तक मुफ्त भोजन। इसमें सबसे बड़ी बाधा मोदी सरकार की हठधर्मिता है। यह त्रासदी करुणा की है।

19 मई को इकॉनोमिक टाइम्स ने एक ग्राफ प्रकाशित किया, जो रोजाना होने वाले टीकाकरण में गिरावट को बता रहा था। दो अप्रैल को बयालीस लाख पैंसठ हजार एक सौ सत्तावन लोगों का रिकार्ड टीकाकरण हुआ था, तबसे इसमें गिरावट है। लगातार छह दिनों में यह गिर कर बीस लाख के नीचे आ गया। अखबार ने तीन टिप्पणियां कीं-
– टीकाकरण में लगातार आई गिरावट बताती है कि टीकों की आपूर्ति घटती गई।
– सरकार और टीका निर्माताओं ने क्षमता बढ़ने की बात कही।
– यह बढ़ी क्षमता अभी आपूर्ति के रूप में दिखनी बाकी है।

इसके अलावा क्षमता के दावे और कोविशील्ड तथा कोवैक्सीन के वास्तविक उत्पादन और आपूर्ति के प्रासंगिक आंकड़े भी थे। मंजूर टीकों में से सिर्फ स्पूतनिक की करीब एक लाख छप्पन हजार खुराक भारत ने अब तक आयात की है। मई में रोजाना औसत टीकाकरण का आंकड़ा (19 मई तक) सोलह लाख पचासी हजार का रहा। टीकाकरण की क्षमता तो कई गुनी है, लेकिन टीके नहीं हैं। फिर भी, स्वास्थ्य मंत्री तोते की तरह रट लगाए हुए हैं कि टीकों की कोई कमी नहीं है। टीकाकरण के लिए हजारों लोगों के इंतजार के साथ ही हर राज्य का स्वास्थ्य मंत्री टीकों के लिए चिल्ला-चिल्ला कर मांग कर रहा है। लेकिन अपने पर अडिग केंद्र सरकार का दावा है कि वह 31 दिसंबर, 2021 तक हर वयस्क भारतीय को टीका लगा देगी (बाकी बचे दो सौ दिनों में पैंतीस लाख को दो से गुणा कर दें, इस दर से)! यह त्रासदी साख की है।

कानून का शासन और संघवाद
दिल्ली पुलिस ने 15 मई को भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास से पूछताछ की कि कैसे उन्होंने आॅक्सीजन सांद्रक और दवाइयां जुटार्इं और जरूरतमंदों को दीं। उसी दिन दिल्ली पुलिस ने चौबीस लोगों को गिरफ्तार किया और उन पर प्रधानमंत्री से यह सवाल पूछने वाले पोस्टर चिपकाने का आरोप लगाया कि हमारे बच्चों के टीके आपने निर्यात क्यों कर दिए? गृहमंत्री और दिल्ली के उपराज्यपाल इससे बेफिक्र रहे। कोई यह बताने को तैयार नहीं था कि किस कानून का उल्लंघन हुआ है। यह कानून के शासन की त्रासदी है।

17 मई, 2021 को सीबीआइ ने 2014 के नारद स्टिंग मामले में आरोपपत्र के आधार पर पश्चिम बंगाल के दो राज्यमंत्रियों और एक विधायक को गिरफ्तार किया था। यह आरोपपत्र सात मई को तैयार कर लिया गया था, लेकिन दाखिल 17 मई को किया गया। उसी दिन सभी को जमानत मिल गई, उसी रात कलकत्ता हाई कोर्ट ने जमानत आदेश निलंबित कर दिए और निलंबन आदेश वापस लेने की याचिका पर अदालत सुनवाई कर रही है। कानून तो है, पर यह त्रासदी संघवाद की है। अगर किसी राज्य में अपराध के मामले में राज्य सरकार किसी केंद्रीय मंत्री को उस राज्य में गिरफ्तार करती है, तो मेरा मानना है कि कानून तब भी काम करेगा। तब भी त्रासदी संघवाद ही होगा। महामारी से मुकाबला करें और त्रासदियां झेलते रहें।