चांद खां रहमानी

अपूर्वानंद ने ‘ओबामा का गांधी-स्मरण’ (8 फरवरी) में बहुत साहसिक ढंग से सारगर्भित बात कही है। ‘घृणा और असहिष्णुता का अभ्यास किया जाता है और समाज को धीरे-धीरे उसकी आदत पड़ जाती है। जो घृणा का लक्ष्य है, वह निरंतर उसे सहते हुए मानने लगता है कि उसी में कुछ कमी है, इस घृणा को उकसाने वाले तत्त्व उसी में हैं। इसलिए चिकित्सा उसे अपनी करनी है, ताकि वह घृण्य न रह जाए। वह दब कर, आक्रांता की निगाहों से दूर छिप जाने की कोशिश करता है। इसे फिर उसी की कमजोरी का प्रमाण माना जाता है। जो घृणा करता है वह उस पर हमला करने के साथ-साथ हमेशा उसे खुद में सुधार लाने की सलाह भी देता रहता है।’ इस वाक्य में मुसलमानों की पूरी स्थिति और अतिवादी संगठनों की पूरी प्रकृति सामने आ जाती है।

क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि देश के मुसलमानों की अस्सी फीसद ऊर्जा खुद को देशभक्त साबित करने में खर्च होती रहती है। इस बात से तथाकथित देशभक्त भी इनकार नहीं कर सकते कि मुसलमानों को उलझा कर तरक्की के रास्ते से भटकाया जाता रहा है। अब तो केंद्र में भाजपा की सरकार है, जिसे अघोषित रूप से संघ चला रहा है, कांग्रेस की सरकार थी तब भी संघ और उसके दूसरे संगठनों के निशाने पर मुसलमान होते थे। आजकल संघ के लोगों को खुली छूट मिली हुई है।

संघ स्वतंत्रता और देशभक्ति की बात करता है, लेकिन वास्तव में उसका विश्वास साम्राज्यवाद में है। उसने हमेशा ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ का सिद्धांत लागू रखा है। हमेशा अपनी बात को लठ के जोर से मनवाने की कोशिश की है, यह कोशिश आज भी जारी है। जो इस देश में रहेगा उसे हिंदू बन कर रहना होगा, देश की हर मस्जिद से हर हर महादेव की आवाज आनी चाहिए, नहीं तो देश छोड़ना होगा। सात साल में भारत को हिंदू राष्ट्र बना कर रहेंगे। अकबर के किले को रैन बसेरा बनाओ। ताजमहल पहले एक मंदिर था। दिल्ली की जामा मस्जिद शिवजी का मंदिर थी और इस्लाम का दूसरा नाम आतंक है। मुसलमान आतंकी है। इस तरह का प्रचार और बातें करना संघ और उसके दूसरे साथी संगठनों के हर आदमी का पहला कर्तव्य है।

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, दिल्ली के त्रिलोकपुरी और बवाना के दंगे किसकी देन थे। यह बात सामने आई कि बाकायदा नियोजित ढंग से दंगे कराए गए थे। बयानबाजी और सांप्रदायिकता फैलाना और दंगों की भूमिका तैयार करना संघ और भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा रही है। कई बार यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि इस देश में अल्पसंख्यक नहीं होते तो संघ और अतिवादी हिंदू संगठनों का क्या होता। शायद इनका जन्म ही नहीं होता, क्योंकि इनका वजूद और राजनीति ही अल्पसंख्यक विरोध पर टिकी है। इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता कि जब-जब दंगे हुए हैं, जान-माल का सबसे ज्यादा नुकसान मुसलमानों का ही हुआ।

संघ, भाजपा, विहिप, हिंदू महासभा, हिंदू वाहिनी मंच, हिंदू जागरण मंच, बजरंग दल जैसे अतिवादी संगठन अपने लिए तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहते हैं, मगर दूसरे को यह स्वतंत्रता मिले, यह बर्दाश्त नहीं। फिल्मकार दीपा मेहता की ‘फायर’ आई तो यही संगठन लाठी-डंडे लेकर मैदान में आ गए थे। लड़के-लड़कियां वैलेंटाइन डे पर मिलते हैं, तो प्रमोद मुथालिक जैसे वीर उन्हें मार-मार कर ‘सीधा’ करने पर पिल पड़ते हैं, लेकिन जब दिल्ली में चर्च पर हमले होते हैं तो इन अतिवादी वीरों को खुशी होती है।

भाजपा, संघ, विहिप, हिंदू महासभा जैसे अनेक संगठनों के पदाधिकारी बात कहीं से भी शुरू करें, मुसलमानों पर आकर रुक जाती है। लोगों को शायद पता न हो कि 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से मुसलमानों में इतनी असुरक्षा घर कर गई है कि वे गांवों से पलायन कर शहरों, कस्बों में जाकर बस रहे हैं। कुछ लोग तो अपनी पहचान छिपाने के लिए बच्चों के ऐसे नाम रखने शुरू कर दिए हैं, जो किसी एक समुदाय के न लगें। यह कोई कम पीड़ा नहीं है। इसकी कसक कहीं न कहीं लोगों में है, लेकिन वे असहाय हैं, क्या करें? यही कुंठा मुसलिम युवकों को कई बार रास्ते से भटका देती है। मुसलमानों के प्रति इतने सुनियोजित ढंग से संघ परिवार ने दुष्प्रचार कराया है कि पड़ोसी, पड़ोसी को शक की नजर से देखने लगा।

संघ के दुष्प्रचार की चपेट में सबसे ज्यादा वह मध्यवर्गीय तबका आया, जो पढ़ा-लिखा होने के साथ कुतर्क ज्यादा कर सकता है। इससे सांप्रदायिकता का एक ऐसा नया दौर शुरू हो रहा है, जो देश के लिए घातक है। लेकिन संतोष की बात कि इस देश का अधिसंख्य तबका आज भी धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे में विश्वास रखता है। यही तबका मिलीजुली संस्कृति का वाहक है। इसी वजह से मिलाजुला व्यापार, काम-धंधे चल रहे हैं और भाईचारा बना हुआ है। जिस दिन यह बड़ा तबका भी अतिवादी ताकतों के चक्र में फंस जाएगा, उस दिन भारत की अस्मिता, अस्तित्व, संस्कृति सब कुछ खत्म हो जाएगा।

संघ की रणनीति इस तबके की कोशिशों के बाद भी चल रही है। वह मुसलमानों को सीधे दलितों से भिड़वाता है। आगरा का धर्म परिर्वतन हो या गुजरात के दंगे, सब जगह उसने दलितों को इस्तेमाल किया। सरकार का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन इस सरकार का धर्म हिंदुत्व है। यही कारण है कि मोदीजी ने किसी भी आग उगलने वाले नेता को पद से न तो बर्खास्त किया और न ही पार्टी से निकाला। इस सरकार को यह कौन बताए कि जुल्म से मोहब्बत नहीं, नफरत बढ़ती है। घृणा समाज को विषाक्त बनाती है।

 

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