देखते ही देखते 241 और 29 यानी कुल 270 जिंदगियां खत्म! मृतकों में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी हैं। हम थरथराते दिल से देखते हैं कि एक हवाई जहाज उड़ता है फिर कुछ ऊंचाई पर पहुंचकर गिरने लगता है। वह एक अस्पताल की इमारत से टकराता है और आग की ऊंची लपटें निकलती हैं।
जहाज का अगला हिस्सा इमारत में घुसा दिखता है। पहिए लटके दिखते हैं। सुरक्षाकर्मी सक्रिय हैं। प्रशासन सक्रिय है। हर चैनल में शोक बरपा है। हाहाकार मचा है। एंकर और संवाददाताओं के चेहरे उड़े हुए हैं। कहानी खुलती है कि उड़ते ही जहाज के इंजनों ने काम करना बंद कर दिया। पायलट ‘खतरा-खतरा’ यानी ‘मे-डे मे-डे’ चिल्लाए।
‘जिम्मेदार कौन’ जैसे सवाल में उलझी रही बहस
उसके बाद सब कुछ जलता, धूं-धूं करता नजर आया। 242 यात्रियों में से बचा एक व्यक्ति बोला कि उसका भाई नहीं बचा और वह बच गया, वह खुद पैदल चल कर अस्पताल की ओर जाता दिखा। खबर आते ही प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और नागरिक उड्डयन मंत्री से बात कर उन्हें तुरंत अहमदाबाद भेजते हैं। सब चिंतित और गंभीर दिखते हैं। अगले दिन प्रधानमंत्री अहमदाबाद पहुंचते हैं। अस्पताल में आहतों से बात करते हैं। शाम की बहसों का एक बड़ा हिस्सा ‘जिम्मेदार कौन’ जैसे सवाल से उलझता है।
कुछ के लिए ‘निजीकरण’ जिम्मेदार, तो कुछ के लिए ‘एअर इंडिया’ की खराब देखभाल जिम्मेदार। एक एंकर की नजर में एअर इंडिया के जहाजों की देखभाल कर रही तुर्किए की एक कंपनी जिम्मेदार है। उसे हैरत है कि एक शत्रु देश की कंपनी को क्यों लगाया हुआ है। कुछ विशेषज्ञ कहिन कि जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।
एक चर्चक कहिन कि इस दुर्घटना के बहाने एक एअरलाइन कंपनी को बदनाम करना ठीक नहीं है। टाटा ने हमेशा देश की सेवा की है। दुनिया की बहुत सी एअरलाइनें इसी तरह के ‘ड्रीमलाइनर’ उड़ाती हैं। यह बेहद मजबूत जहाज है और कि यह शायद दुनिया में किसी ‘ड्रीमलाइनर’ की पहली दुर्घटना है…। गनीमत कि यह दुर्घटना अगले दोपहर तक भी एक ‘दुर्घटना’ की तरह बताई जाती रही।
‘ड्रीमलाइनर’ के भयावह हादसे ने ‘राजा रघुवंशी हत्याकांड’ की ‘अपराध कथा’ को किनारे कर दिया। जबकि वह कहानी मेघालय पुलिस की शुरुआती जांच के बाद एक बेहद डरावनी कहानी की तरह खुलने लगी थी और यह दर्शकों को सोचने पर विवश करने लगी थी कि क्या कोई सद्य: विवाहिता अपने ही पति की हत्या की इतनी गहरी साजिश रच सकती है और शादी के सात दिन बाद हनीमून के बहाने भाड़े के हत्यारों की मदद से पति की निर्मम हत्या को अंजाम दे सकती है?
यह अपराध कथा इसलिए भी और भयानक लगती है कि इस हत्या की साजिश शादी से तीन महीने पहले ही रच दी गई थी। कहानी के अनुसार सोनम मंगली और राजा भी मंगली। सोनम ने सोचा कि राजा को निपटा दें, तो मंगल दोष खत्म। बाद में वह अपने प्रेमी राज कुशवाहा से शादी कर लेगी। सोनम राजा से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन कराई गई। सोनम ने साफ कहा कि इसका अंजाम अच्छा न होगा…फिर योजना बनाई कि मेघालय जाकर हनीमून के बहाने उसे निपटाएंगे। भाड़े के तीन हत्यारे पहले ही मेघालय भेज दिए गए।
प्रत्येक को पांच हजार अग्रिम दे दिए गए। फिर राजा से बीस हजार लेकर उन लोगों को दिए गए। जब भाड़े के हत्यारों ने राजा के अच्छे व्यवहार को देख मारने से मना किया, तो सोनम ने कहा कि बीस लाख दूंगी। एक ने राजा को चाकू मारा। उसने इस हमले का विरोध किया, तो पीछे खड़ी सोनम ने जोर से कहा ‘मार दो’ और आरोपियों ने कई बार चाकू के वार कर उसे खत्म कर दिया और गहरी खाई में फेंक दिया। उसके साथ ही खून से सनी बरसाती भी फेंक दी…, उसके बाद वह इंदौर आई। दो दिन तक राज कुशवाहा की सहायता से एक होटल में ठहरी। फिर गाजीपुर गई, जहां उसने अपने को ‘नशा कराया गया’ की तरह पेश किया। फिर एक ढाबे वाले से उसका मोबाइल लिया और अपने भाई को फोन किया। उसने यूपी पुलिस को बताया। तब उसको ढाबे से पकड़ा गया। राजा का शव भी पुलिस को कई दिन बाद मिला।
उधर, जैसे ही ‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद आतंकवाद के विरोध में भारत का पक्ष दूसरे देशों में स्पष्ट करने गए सांसदों का दल वापस लौटा और प्रधानमंत्री उनसे मिले, वैसे ही कई विपक्षी सांसद विपक्ष के ही निशाने पर आ गए। एक चैनल के सर्वे ने बताया कि 88 फीसद लोगों ने माना कि सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भेजना प्रधानमंत्री का ‘मास्टर स्ट्रोक’ था।
फिर एक दिन जैसे ही भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजग के शासन के ग्यारह वर्ष की उपलब्धियों को एक प्रेस कांफ्रेंस के जरिए गिनाया तो विपक्ष को यह एकदम नहीं भाया। बहसों में सत्तापक्ष कहे कि सरकार हर मोर्चे पर सफल, तो विपक्ष कहे कि यह सरकार हर मोर्चे पर असफल!