शुरू में स्पष्ट कर दूं कि अली खान महमूदाबाद को मैं बरसों से अच्छी तरह जानती हूं। उनके पिता, राजा साहब महमूदाबाद थे, जिनका असली नाम लंबा था, लेकिन हम सब उनको सुलेमान बुलाते थे। मैं उनको तबसे जानती थी जब उनकी न शादी हुई थी न बच्चे और वह इतने सभ्य और शरीफ इंसान थे कि मैं जब भी उनसे मिलती थी, तो कुछ सीखती थी। कोई नया शेर, कोई नई नज्म, नए तरह से किसी राजनीतिक मामले को देखना।

शादी होने के बाद वे ज्यादातर लखनऊ या महमूदाबाद में रहते थे, सो उनसे मिलना कम हो गया था। उनकी शादी हुई पूर्व विदेश सचिव, जगत मेहता की बेटी के साथ। विजया मेरे साथ स्कूल में थी। फिर इस परिवार का रिश्ता मुझसे कम और मेरे बेटे से ज्यादा रहा, इसलिए कि अली मेरे बेटे के साथ अमेरिका के एमहर्स्ट कालेज में पढ़े थे।

अली अपने पिता की तरह शायरी, साहित्य और विचारों की दुनिया में रहे हैं, सो जब उनको पिछले सप्ताह गिरफ्तार किया गया, तो मुझे बहुत बुरा लगा। इसलिए भी कि उन पर जो आरोप लगाए हैं हरियाणा सरकार के कुछ अधिकारियों ने, वे सरासर झूठे और बेबुनियाद हैं। एक ऐसे शख्स की देशभक्ति पर शक पैदा किया है इन आरोपों ने, जिसका परिवार चाहता तो पाकिस्तान में बस सकता था विभाजन के बाद।

अली के दादा जिन्ना के करीबी थे और पाकिस्तान में बस गए थे कुछ समय के लिए। फिर लंदन चले गए थे। लेकिन न उनकी पत्नी और न ही उनके इकलौते बेटे ने कभी पाकिस्तान में रहने की कोशिश की। उनकी जड़ें, उनका घर हिंदुस्तान में ही रहा है, बावजूद इसके कि उनकी काफी संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली थी 1947 के बाद, उस कानून के तहत, जो शत्रु संपत्ति जब्त करने के लिए बनाया गया है। इसका नाम है शत्रु संपत्ति अधिनियम (1968)।

इस कानून के तहत राजा साहब महमूदाबाद की इतनी संपत्ति जब्त हुई है कि मुश्किल से अपने पुराने किले, महल और इमारतों को कायम रख पाए हैं उनके वारिस। लेकिन जिन शिया परंपराओं की ये इमारतें यादगार हैं, उनको जिंदा रखने के लिए सुलेमान ने अपना पूरा जीवन खपाया था। दो साल पहले उनके देहांत के बाद इस काम को अली ने संभाला है। अली प्रतीक हैं भारत की मिली-जुली संस्कृति के, सो ऐसे व्यक्ति पर जिन लोगों ने देशद्रोही होने का आरोप लगाया है उनको शर्म आनी चाहिए।

अली का, उनकी तंग नजरों में, दोष यह है कि उन्होंने याद दिलाया कि हिंदुत्व के वही सिपाही जो सोफिया कुरैशी की प्रशंसा कर रहे थे उनको उन आम, बेबस मुसलमानों की भी चिंता होनी चाहिए जिनके घर बुलडोजरों से गिराए जाते हैं बिना उनका आरोप किसी अदालत में साबित किए। क्या ऐसा कहने से देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा है? क्या सोशल मीडिया पर इस बात को कहने से हिंदुओं और मुसलमानों में द्वेष पैदा होता है?

समझना मुश्किल है कि अली ने गलत क्या कहा, लेकिन जब भारतीय जनता पार्टी के अधिकारी चाहते हैं किसी की गिरफ्तारी, तो अक्सर हो के रहती है। अली को फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय से अंतरिम जमानत मिल गई है, सो कम से कम वे अपनी पत्नी के साथ रह सकेंगे जब उनका पहला बच्चा पैदा होगा कुछ दिनों में।

एक गौरवान्वित भारतीय होने के नाते मुझे शर्म आती है कि इस देश को इतनी छोटी चीजों से खतरा होने लगा है। अली के परिवार को मैं न भी जानती, तो भी बुरा लगता कि अली जैसे सभ्य-शिक्षित इंसान के साथ ऐसा हो सकता है।

इस देश को जरूरत है अली जैसे लोगों की। जिनकी जरूरत नहीं है वे हैं ऐसे तंगनजरिया वाले लोग, जो देशभक्ति के नाम पर लोगों को जेल भेजने की कोशिश करते फिरते हैं। उनकी देशभक्ति खोखली है और अक्सर ऐसे लोग इस तरह के काम करते हैं, इस उम्मीद से कि भारतीय जनता पार्टी के आला नेता उनकी तरफ देखें और उनकी तरक्की हो जाए।

इस बात को इसलिए जानती हूं क्योंकि मेरे साथ भी कुछ ऐसा हुआ था कोई पांच साल पहले। हुआ यह कि कसौली में एक साहित्य सम्मेलन में हिस्सा ले रही थी और जिस चर्चा में शामिल हुई उसका विषय था कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर मोदी सरकार ने ठीक किया है कि नहीं। मेरी अपनी राय थी कि ठीक किया है। राधा कुमार भी इस चर्चा में शामिल हुई थीं और उनकी राय थी कि फैसला गलत था।
चर्चा में शामिल एक भारतीय जनता पार्टी का नुमाइंदा भी था और चर्चा समाप्त होने के बाद यह बंदा सीधा थाने पहुंचा और राधा कुमार और मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करके आया।

आरोप वही देशद्रोही का था। मुझे जब मालूम पड़ा, तो फैसला किया कि इस एफआइआर को अनदेखा करना ही बेहतर है। ऐसा ही किया मैंने और जानती नहीं हूं कि बाद में क्या हुआ और क्या भविष्य में कुछ होने वाला है। लेकिन इतना जानती हूं कि जिस व्यक्ति ने ऐसा किया था उसकी खूब तरक्की हुई है और इन दिनों भाजपा का प्रवक्ता बन कर टीवी पर दिखता है। तो क्या उसने ऐसा किया हमारे साथ सिर्फ इसलिए कि दिल्ली में किसी को उसकी वफादारी की खबर मिले और उसकी तरक्की हो?

मैं नहीं जानती हूं इस सवाल का जवाब, लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि छुटभैया भाजपाई नेता और पदाधिकारी घूमते फिरते हैं इन दिनों इस तरह की हरकतें करते फिरते और उनको नियंत्रण में लाने के बदले भाजपा के आला नेता ऐसे लोगों को कभी ना कभी पार्टी की सीढ़ियां चढ़ाने में मदद करते हैं। कई ऐसे हैं जो राज्यसभा पहुंच जाते हैं, तो कई ऐसे जिनको प्रवक्ता बनाया जाता है।