तीर्थराज प्रयाग में मकर संक्रांति यानी 15 जनवरी को शुरू हुआ माघ मेला आगामी 52 दिनों यानी आठ मार्च तक चलेगा। ‘माघ मेले’ का सनातन धर्म में बड़ा महत्त्व है। इसलिए अनुमान है किसभी छह प्रमुख स्रान तिथियों पर देश-विदेश के करोड़ों लोग प्रयागराज में आस्था की डुबकी लगाएंगे। दरअसल, यह समय सनातनी भक्तों की धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक समागम का होता है, जिसमें साधु-संतों एवं गृहस्थों के अतिरिक्त अन्य सामान्य भक्तगण भी शामिल होते हैं। देखा जाए तो माघ मेले में डुबकी लगाने वालों में पारंपरिक रूप से सामान्यत: वृद्ध हो चुके स्त्री एवं पुरुष ही पहले भाग लेते थे, किंतु कुछ वर्षों के दौरान भक्तों की इस भीड़ में सभी आयु और वर्ग के लोग शामिल होने लगे हैं। एक अनुमान के मुताबिक इस वर्ष लगभग सात से नौ लाख तक विदेशी भक्त प्रयागराज में आस्था की डुबकी लगाएंगे।
लाखों लोग महीने भर गंगा-यमुना और सरस्वती के तट पर जुटते हैं
शास्त्रों में उल्लेख है कि मकर संक्रांति से लेकर महाशिवरात्रि तक यानी माघ मेले का संपूर्ण काल चार युगों- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के बराबर होेता है। तीर्थराज प्रयाग में होने वाले इस माघ मेले में शामिल होने के लिए दुनिया भर के कोने-कोने से हिंदू संस्कृति एवं सनातन धर्म में आस्था रखने वाले करोड़ों भक्तगण प्रत्येक वर्ष अपनी तरह-तरह की मनोकामनाओं के साथ यहां आते हैं। इनके अतिरिक्त विविध धर्मों और संस्कृतियों के हजारों अध्येता, जिनमें अनेक विदेशी नागरिक भी शामिल होते हैं।
हजारों वषों से लोगों के मन में पुण्यकर्म की बनी हुई है अटूट श्रद्धा
इस मेले में केवल यह देखने और समझने आते हैं कि कैसे हजारों वषों से इस धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा बनी हुई है तथा इस मेले का संचालन इतना सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित रूप से कैसे हो पाता है। माघ मेले के दौरान कुल छह विशिष्ट स्रान किए जाते हैं, जिनमें पहला विशिष्ट स्रान मकर संक्रांति को होता है, दूसरा विशिष्ट स्रान पौष पूर्णिमा को, तीसरा विशिष्ट स्नान मौनी अमावस्या को, चौथा वसंत पंचमी को, पांचवां माघ पूर्णिमा तथा छठा विशिष्ट स्रान महाशिवरात्रि को किया जाता है।
मकर संक्रांति से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक चलेगा पुण्य स्नान
इस वर्ष दो विशिष्ट स्रान क्रमश: 15 जनवरी यानी मकर संक्रांति को, 25 जनवरी यानी पौष पूर्णिमा को हो चुके हैं। अब नौ फरवरी यानी मौनी अमावस्या को, 14 फरवरी यानी वसंत पंचमी को, 24 फरवरी यानी माघ पूर्णिमा और आठ मार्च यानी महाशिवरात्रि को किए जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष मकर संक्रांति यानी माघ के प्रथम विशिष्ट स्रान के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व ही प्रयागराज में लाखों लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई।
मिनी कुंभ कहलाने वाले इस धार्मिक और सांस्कृतिक मेले के महत्त्व का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पूरे माघ मेले के दौरान लाखों साधक प्रयागराज में संगम के तट पर कुटिया बनाकर ‘कल्पवास’ करते हैं। कल्पवास के दौरान भक्त सुबह-शाम संगम में विशिष्ट स्रान कर अधिकतम समय भगवान की पूजा-साधना में लीन रहते हैं। शास्त्र बताते हैं कि माघ मेले में एक महीने तक कल्पवास करने से एक संपूर्ण ‘कल्प’ का पुण्यफल प्राप्त होता है। बताना आवश्यक है कि पृथ्वी पर का एक कल्प ब्रह्मदेव के एक दिन के बराबर और ब्रह्मा जी का एक दिन 1000 महायुगों के बराबर होता है।
शास्त्रीय मान्यता है कि माघ मेला ब्रह्मदेव के द्वारा इस संपूर्ण सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक उत्सव होता है। इस माघ मेले में कई तरह के यज्ञ किए जाते हैं। विविध प्रकार की प्रार्थनाएं की जाती हैं एवं अनगिन अनुष्ठान भी संपन्न होते हैं। माघ मेले के दौरान कल्पवास करने वाले साधकों को अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने की शक्ति प्राप्त होती है। कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है और इसके पीछे उद्देश्य इनसान की आत्म शुद्धि का रहा है। बताया जाता है कि संगम के तट पर एक महीने तक निवास करके वेदों का अध्ययन करने और ध्यान, योग आदि करने से व्यक्ति का मानस पूरी तरह से आध्यात्मिक हो जाता है।
मान्यता है कि एक कल्पवास तक प्रयागराज में रहकर तप और ध्यान करने वालों को हजारों अश्वमेध यज्ञों के बराबर पुण्यलाभ मिलता है। इसीलिए प्राय: प्रत्येक वर्ष माघ मेले में लाखों लोग कल्पवास करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कल्पवास के दौरान प्रयाग के संगम तट पर ब्रह्मांड की सारी विशिष्ट शक्तियों का चुंबकीय प्रभाव मौजूद रहता है, जिसके कारण व्यक्ति का तन और मन ऊर्जा से लबालब भर जाता है।