Firozabad Loksabha Seat: उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीट हैं, लेकिन फिरोजाबाद की लोकसभा सीट बेहद चर्चा में रहती है, क्योंकि इसको समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। जिसकी सबसे बड़ी वजह थी चाचा शिवपाल की भतीजे अखिलेश से नाराजगी, लेकिन अब उम्मीद जताई जा रही है कि चाचा शिवपाल के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से 2024 के लोकसभा चुनाव में यह सीट एक बार फिर समाजवादी पार्टी के खाते में जा सकती है। वहीं अखिलेश को शिवपाल का साथ मिलने से सपाई भी खुश नजर आ रहे हैं।
2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने फिरोजाबाद लोकसभा सीट से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को मैदान में उतारा था। जिनको चुनौती प्रसपा प्रमुख चाचा शिवपाल सिंह यादव ने दी थी, लेकिन मोदी लहर ऐसी चली कि 2019 में समाजवादी पार्टी के वो किले भी दरक गए, जहां सपा ने पिछली बार जीत हासिल की थी। फिरोजाबाद लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी डॉ चंद्रसेन जादौन ने नजदीकी मुकाबले में सपा के अक्षय यादव को शिकस्त दी थी।
2019 में चाचा-भतीजे की लड़ाई में यह सीट भाजपा के खाते में चली गई
भाजपा प्रत्याशी चंद्रसेन जादौन को 485988 वोट मिले हैं, वहीं सपा के अक्षय यादव को 460028 वोट प्राप्त हुए थे। जादौन ने अक्षय को करीब 25 हजार वोटों से हराया था। इस हार की वजह और कोई नहीं अखिलेश के चाचा शिवपाल थे। प्रसपा प्रत्याशी शिवपाल सिंह यादव को सिर्फ 91,011 वोटों मिले थे, लेकिन ये इतने ज्यादा थे कि भाजपा की जीत और सपा की हार सुनिश्चित हो गई।
2014 में सपा के अक्षय यादव ने जीत दर्ज की
बता दें, साल 2014 में भी ऐसी मोदी लहर चली थी, जिसने सभी पार्टियों को धराशायी कर दिया था, लेकिन, फिरोजाबाद की सीट पर मोदी लहर का कोई असर नहीं दिखा था। यहां की जनता ने सबसे कम उम्र के अक्षय यादव को चुनकर संसद भेजा था, लेकिन 2019 की चाचा-भतीजे की लड़ाई में सपा को हार का सामना करना पड़ा।
1957 में हुआ इस सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव
फिरोजाबाद लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर अगर नजर डालें तो यह सीट कभी किसी एक पार्टी के लिए मुफीद नहीं रही और जनता ने लगातार अपना मिजाज बदला। इस सीट पर 1957 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए जिसमें निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराई थी। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी, 1971 में कांग्रेस ने जीत हासिल की। हालांकि इसके बाद 1977 से लेकर 1989 तक हुए कुल चार चुनाव में भी कांग्रेस को केवल एक बार ही जीत हासिल हुई।
1991 के बाद लगातार भाजपा ने तीन बार जीत हासिल की
90 के दशक में रामलहर के बाद 1991 के बाद लगातार तीन बार यहां भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की। भाजपा के प्रभु दयाल कठेरिया ने यहां से जीत की हैट्रिक लगाई। 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी के रामजी लाल सुमन ने बड़ी जीत हासिल की। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी 2009 से इस सीट पर चुनाव लड़ा और जीते भी, लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने इस सीट को छोड़ दिया था।
2009 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर जीते
2009 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने चुनाव जीता और 2014 में समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से बड़ी जीत हासिल की। इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में चाचा-भतीजे की लड़ाई और मोदी लहर में यह सीट भाजपा के खाते में चली गई।
फिरोजाबाद का मतदाताओं का जातीय समीकरण एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक कुछ इस प्रकार है। यहां यादव- 4 लाख, 40 हजार, दलित- 2 लाख, 20 हजार और ठाकुर- 1 लाख, 70 हजार के करीब है।