मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और प्रयागराज जैसे शहरों ने अपने औपनिवेशिक और मुगल-युग के नामों को छोड़ दिया है, लेकिन इन स्थानों के उच्च न्यायालयों को आधिकारिक तौर पर अब भी उनके पिछले नामों से जाना जाता है। इसलिए जब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बहस करने वाले एक वरिष्ठ वकील ने “चेन्नई उच्च न्यायालय” के आदेशों का हवाला दिया, तो न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने उन्हें तुरंत टोका और कहा कि “मिस्टर काउंसेल, इसे अभी भी मद्रास उच्च न्यायालय कहा जाता है।” वरिष्ठ वकील ने अपनी चूक को महसूस किया और खुद को करेक्ट किया।
देश के कई शहरों के नाम उनके औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों या फिर मुगल शासकों के द्वारा रखे गए थे। उनमें से कई को देश की संघीय और राज्य सरकारों ने बदल दिए हैं, हालांकि संवैधानिक संस्थाओं के साथ उनके पुराने नाम ही अब भी प्रचलन और रिकॉर्ड में हैं। इनमें से कुछ हैं बंबई, कलकत्ता, मद्रास, इलाहाबाद, बंगलोर, त्रिवेंद्रम, गोहाटी आदि।
इन नामों को अब उनके ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भों के पुराने नामों से बदल दिए गए हैं। जैसे बंबई को मुंबई, कलकत्ता को कोलकाता, मद्रास को चेन्नई, इलाहाबाद को प्रयागराज, बंगलोर को बेंगलुरु, त्रिवेंद्रम को तिरुवनंतपुरम और गोहाटी को गुवाहाटी नाम से बदल दिया गया।
इन शहरों में विश्वविद्यालय, उच्च न्यायालय तथा अन्य संवैधानिक संस्थाओं के साथ उनके पुराने नाम ही लिखे जा रहे हैं। इन संस्थाओं के साथ भी नए नाम रखने की आवाजें उठाई जा रही हैं, लेकिन अभी इस पर कोई फैसला नहीं हो सका है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपनी कड़ी टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। पिछले साल उन्होंने UAPA कानून के दुरुपयोग पर अहम टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि नागरिकों की असहमति को दबाने के लिए किसी भी कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच कानूनी संबंधों पर एक कार्यक्रम के दौरान सामने आई। उन्होंने कहा कि आपराधिक कानून जिसमें आतंकवाद विरोधी कानून भी शामिल है, का इस्तेमाल नागरिकों के असंतोष या उत्पीड़न को दबाने में नहीं किया जाना चाहिए।