Rajasthan Politics: राजस्थान कांग्रेस में सियासी संकट कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई बार कांग्रेस में गुटबाजी सामने आई है। दोनों बार कांग्रेस हाईकमान को पार्टी में गुटबाजी की वजह से झुकना पड़ा था। वह चाह कर भी अपने पसंद के नेता को सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठा पाए थे आज के सियासी हालात भी कुछ उसी तरह बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। आज से 73 साल पहले भी कांग्रेस को कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरना पड़ा था, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल को अपने पसंदीदा नेता को सीएम पद से हटाना पड़ा था। आइए आपको बताते हैं कि राजस्थान की सियासत में कैसे विधायकों ने अब से 73 साल पहले भी खेल को बदल दिया था तब प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी पीछे हटना पड़ा था।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, जब राजस्थान की 22 रियासतों का एकीकरण किया था। उसके बाद राज्य की पहली सरकार के 7 अप्रैल 1949 को कांग्रेस हाईकमान ने हीरालाल शास्त्री को मुख्यमंत्री बनाया था। सरकार बने कुछ ही कुछ ही महीना का वक्त बीता था कि कांग्रेस में गुटबाजी हो गई। कांग्रेस दो भाग में बंट गई थी। उस वक्त कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोकुलभाई और सीएम हीरालाल शास्त्री था। वहीं, कांग्रेस का दूसरा गुट मेवाड़ क्षेत्र के किसान नेता माणिक्यलाल वर्मा और जोधपुर के जयनारायण व्यास का था।

1951 में गुटबाजी के चलते हीरालाल को देना पड़ा था इस्तीफा

राजस्थान में दोनों गुटों में मची खींचतान की वजह से 5 जनवरी 1951 को सीएम हीरालाल शास्त्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हीरालाल शास्त्री की सरकार महज 21 महीनों तक ही चल पाई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल से समर्थन का हीरालाल शास्त्री गुट ने काफी प्रयास किया था। वहीं, दूसरा गुट जो जयनारायण व्यास और माणिक्यलाल वर्मा का था। उस गुट ने कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र की दुहाई देकर बहुमत का सम्मान करने की बात कही। पार्टी हाईकमान के पसंदीदा होने के बावजूद हीरालाल शास्त्री को इस्तीफा देना पड़ा और जयनारायण व्यास को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था।

जयनारायण व्यास दो सीटों से चुनाव लड़े और हार गए

राजस्थान में साल 1952 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर गुटबाजी सामने आई। जब 26 अप्रैल 1951 को हीरालाल शास्त्री के इस्तीफा देने के बाद जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने और वह फरवरी 1952 में विधानसभा चुनाव में दो सीटों से चुनाव लड़े, लेकिन दोनों सीटों से चुनाव हार गए। कांग्रेस आलाकमान के सामने फिर समस्या सामने खड़ी हो गई। आखिर किसे सीएम बनाया जाए। ऐसे हालात में टीकाराम पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। उसके बाद जयनारायण व्यास किशनगढ़ से विधानसभा का उप चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। जिसके बाद टीकाराम पालीवाल को इस्तीफा देना पड़ा।

जयनारायण व्यास नहीं जुटा पाए थे बहुमत

राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी कम नहीं हो रही थी। मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास पंडित नेहरू के सबसे करीबियों में से एक थे उसके बावजूद राजस्थान कांग्रेस में व्यास के लिए सियासी हालात प्रतिकूल हो गए थे। माणिक्यलाल वर्मा के नेतृत्व में मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत किया। जब बगावत की खबर कांग्रेस हाईकमान तक पहुंची थी तो जयनारायण व्यास को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया लेकिन नेहरू चाहते थे कि जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने रहे। वहीं, दूसरे गुट ने पंडित नेहरू से लोकतंत्र की दुहाई थी, जिसके बाद न चाहते हुए भी कांग्रेस हाईकमान को विधायक दल की बैठक बुलाने के लिए कहा गया था। इस विधायक दल की बैठक में जयनारायण व्यास बहुमत नहीं जुटा पाए और उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।

राजस्थान में बन रहे 73 साल पुराने सियासी हालात

राजस्थान की सियासत में एक बार फिर 73 साल पुराने सियासी हालात बनते दिखाई दे रहे हैं। आलाकमान तो सचिन पायलट को सीएम बनाना चाहता है लेकिन कांग्रेस गुटबाजी की वजह से उनकी राह मुश्किल होती जा रही है। राजस्थान के मौजूदा सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमें में जमकर खींचतान चल रही है। जिसका नतीजा हुआ कि करीब कांग्रेस के 92 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि विधायक दल की बैठक में गहलोत का उत्तराधिकारी चुनने की संभावना थी। ऐसे हालात में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष गहराने का संकेत मिल रहा है। अगर गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे, इसलिए उनका उत्तराधिकारी चुने जाने की संभावना है।

पायलट ने दिखाए थे बगावती तेवर

बता दें कि साल 2020 में सचिन पायलट गुट ने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बागवत कर दिया था। जिसके बाद दोनों खेमे में जमकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था। कांग्रेस आलाकमान ने किसी तरह से तब सचिन पायलट गुट को मना लिया था, लेकिन अब सचिन पायलट के गुट का मानना है, उन्हें भरोसा है कि कांग्रेस का आलाकमान ने जो आश्वासन दिया है। उसे पूरा करेगा। जिसकी वजह से पायलट खेमा माना था। दरअसल, उस वक्त सचिन पायलट राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के मनाने पर बागी तेवर छोड़कर सरकार में शामिल हो गए थे।