Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव प्रचार अब जोर पकड़ रहा है और पिछले हफ्ते समस्तीपुर में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “फिर एक बार, एनडीए सरकार; फिर एक बार सुशासन सरकार; जंगलराज वालों को दूर रखेगा बिहार।” आरजेडी के आलोचक अक्सर जंगलराज शब्द का इस्तेमाल करते हुए पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी की सरकार पर हमला करते हैं।
आरोप यह लगाया जाता है कि उस दौरान राज्य में अपराध दर बहुत ज्यादा थी, और कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लालू-राबड़ी की सरकार ने कोई प्रयास किया ही नहीं। अब सवाल यह है कि आखिर जंगलराज जैसा टर्म बिहार के लिए चर्चा में कैसे आया, और सवाल यह भी है कि आरजेडी ने इससे कैसे निपटा?
बिहार के लिए ‘जंगलराज’ कैसे बना चर्चित शब्द?
दरअसल, अगस्त 1997 में पटना हाईकोर्ट ने नागरिक मुद्दों के संबंध में ‘जंगलराज’ शब्द का प्रयोग किया था। इससे ठीक एक महीने पहले ही चारा घोटाले में फंसे लालू यादव ने सीएम पद से इस्तीफा दिया था और उनकी कुर्सी राबड़ी देवी ने संभाली थी। राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शहरी शासन काफी पीछे धकेल दिया गया था।
हाईकोर्ट ने कही थी बदतर हालात की बात
जंगलराज के बारे में मौखिक टिप्पणी उस समय की गई जब न्यायमूर्ति वी.पी. सिंह और न्यायमूर्ति धर्मपाल सिन्हा की खंडपीठ सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा सहाय द्वारा मानसून की बारिश के बाद पटना में जलभराव और खराब जल निकासी को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 6 अगस्त, 1997 की बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट कहती है कि पटना में नागरिक सुविधाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि यह जंगल राज से भी बदतर है और इसमें अदालती निर्देशों और जनहित का कोई सम्मान नहीं है।
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किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि कोर्ट द्वारा जंगलराज का जिक्र करने के बाद पूरी राजद सरकार के साथ यह शब्द जुड़ जाएगा और उसकी सरकार पर अराजकता और अपराधों में संलिप्तता का आरोप लगाया जाएगा। माना जाता है कि बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी उन लोगों में से हैं, जिन्होंने इस शब्द को बार-बार इस्तेमाल करके लोकप्रिय बनाया।
लालू ने खेला था जातीय कार्ड
इसके बाद साल 2000 के विधानसभा चुनावों से पहले लालू प्रसाद पर हमला करने के लिए ‘जंगल राज’ शब्द का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि हमेशा चतुर राजनेता रहे लालू ने इस शब्द का उल्टा इस्तेमाल विपक्ष पर किया और दावा किया कि उन्हें बिहार ‘जंगल’ जैसा लगता है क्योंकि निचली जातियां सत्ता में हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी किताब “द ब्रदर्स बिहारी” में लिखते हैं कि लालू प्रसाद यादव अपने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से कहा करते थे कि क्या आप जानते हैं कि इसे जंगल राज क्यों कहा जाता है? क्योंकि लालू यादव के राज में, आप गरीब, वंचित लोग पहली बार सिर ऊंचा करके जी पा रहे हैं और ऊंची जातियों को उनके प्रभुत्व से वंचित कर दिया गया है। जब वे कहते हैं कि वे जंगल राज खत्म करना चाहते हैं, तो असल में उनका मतलब होता है कि वे आपके राज बिहार के गरीबों के राज को खत्म करना चाहते हैं, ऊंची जातियां वापस आकर आप पर फिर से राज करना चाहती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 2000 के विधानसभा चुनाव में उनकी अपील काम कर गई और उस साल हुए चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राज्य के राज्यपाल ने पहले नीतीश कुमार को सरकार बनाने का न्योता दिया लेकिन अंततः राबड़ी देवी ने शपथ ली और 2005 तक अपना कार्यकाल पूरा किया।
तेजस्वी यादव के सामने हैं कई चुनौतियां
एक लोकप्रिय नेता के चतुर राजनीतिक संदेश को छोड़ दें तो ‘जंगलराज’ वाकई आरजेडी के गले की फांस बना हुआ है। आज आरजेडी के सीएम पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के लिए काफी मुश्किल खड़ी है। जब 2005 में उनके माता-पिता सत्ता से बाहर हुए थे, तब उनकी उम्र बमुश्किल 16 साल थी। फिर भी हर चुनाव से पहले उन्हें इस डर से जूझना पड़ता है कि आरजेडी के सत्ता में आने से जंगल राज वापस आ जाएगा।
25 साल पहले के बिहार में ऐसा क्या भयानक था? अपराध वाकई बहुत ज़्यादा थे, खासकर फिरौती के लिए अपहरण और जाति-आधारित झड़पों की बाढ़ थी। हालांकि इस दौर में ऐतिहासिक रूप से वंचित जातियों के बीच राजनीतिक दावेदारी भी देखी गई। कई लोगों का दावा है कि लालू द्वारा समर्थित सामाजिक न्याय के विरोधियों ने ‘जंगल राज’ के दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।
