Sujit Bisoyi

ओडिशा में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होंगे। चुनावों से बमुश्किल कुछ महीने पहले ही प्रदेश भाजपा ने वीएचपी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की सीबीआई जांच की मांग की है। उनके आश्रम में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। 23 अगस्त 2008 को कंधमाल जिले में ये घटना हुई थी।

मंगलवार को उड़ीसा हाई कोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजेडी सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद भाजपा ने इस मुद्दे को उठाया और पूछा कि इन हत्याओं की सीबीआई जांच का आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? अदालत वकील देबाशीष होता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसने मामले को 5 मार्च को सुनवाई के लिए पोस्ट किया है।

अदालत के आदेश के बाद, ओडिशा भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता (LoP) जया नारायण मिश्रा ने आरोप लगाया कि मामले के मुख्य अपराधी और साजिशकर्ता अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्होंने मांग की कि इसकी जांच करने वाले आयोगों की रिपोर्ट सरकार सार्वजनिक करें।

लक्ष्मणानंद सरस्वती कौन थे?

एक हिंदू संत और वीएचपी नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती अपनी हत्या के समय 84 वर्ष के थे। वह 1960 के दशक के अंत में आदिवासी बहुल कंधमाल जिले में आए थे और चकापाड़ा में एक आश्रम स्थापित किया था। उन्होंने क्षेत्र में आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काम किया। उन्होंने आदिवासी लड़कियों को शिक्षित करने के लिए सुदूर इलाके जलेसपेटा में कन्याश्रम (आवासीय लड़कियों के स्कूल) की स्थापना की। उन्होंने इस संबंध में जिले के विभिन्न हिस्सों का दौरा करते हुए विभिन्न ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ एक अभियान का नेतृत्व किया। लक्ष्मणानंद ने गौहत्या के विरुद्ध अभियान का भी नेतृत्व किया।

23 अगस्त 2008 को अज्ञात बंदूकधारियों ने लक्ष्मणानंद के जलेस्पेटा आश्रम पर हमला किया और उनके चार शिष्यों के साथ उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। वहां के निवासी इस दौरान जन्माष्टमी उत्सव मना रहे थे। लक्ष्मणानंद को पहले कथित तौर पर कई धमकियां मिली थीं।

कंधमाल दंगे

लक्ष्मणानंद की हत्या से कंधमाल जिले में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, जिसमें कम से कम 38 लोगों की जान चली गई, जबकि 25,000 से अधिक लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा। हिंसा के दौरान कई चर्चों, प्रार्थना कक्षों और घरों को आग लगा दी गई या क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

दंगों के महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव भी थे। इसके बाद बीजेडी और भाजपा के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए। इससे पहले 2000 से दोनों दल एक साथ थे। 2009 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में नवीन पटनायक ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और अपना गठबंधन समाप्त कर दिया।

लक्ष्मणानंद की हत्या और कंधमाल दंगों से कुछ महीने पहले जिले में दिसंबर 2007 में क्रिसमस समारोह के दौरान भी हिंसा देखी गई थी, जिसमें कम से कम तीन लोग मारे गए थे और 700 घर जला दिए गए थे और तोड़फोड़ की गई थी।

8 सितंबर 2008 को पटनायक सरकार ने लक्ष्मणानंद की हत्या और उसके बाद हुए दंगों की घटनाओं और परिस्थितियों की जांच के लिए उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरत चंद्र महापात्र की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग नियुक्त किया। पैनल ने 2009 में राज्य सरकार को 28 पन्नों की अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी। न्यायमूर्ति महापात्र के निधन के बाद पटनायक सरकार ने एक और सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएस नायडू को आयोग का प्रमुख नियुक्त किया, जिसने दिसंबर 2015 में सरकार को 1,000 पन्नों से अधिक की रिपोर्ट सौंपी। दोनों पैनलों की रिपोर्ट सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं की गई है।

दिसंबर 2007 की हिंसा के मामले में भी राज्य सरकार ने पूर्व एचसी न्यायाधीश न्यायमूर्ति बासुदेब पाणिग्रही की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया था। इस पैनल ने दिसंबर 2015 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, जिसे भी अब तक दबा कर रखा गया है।

पुलिस जांच और अदालती मामले

पटनायक सरकार ने लक्ष्मणानंद हत्या मामले को जांच के लिए ओडिशा पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया था, जिसने हत्या के लिए माओवादियों को दोषी ठहराते हुए दो आरोपपत्र दायर किए थे। जांचकर्ताओं ने कहा कि माओवादियों ने वीएचपी नेता की हत्या की योजना को अंजाम देने के लिए एक मिलिशिया समूह का गठन किया था।

सितंबर 2013 में कंधमाल की एक अदालत ने लक्ष्मणानंद और उनके शिष्यों की हत्या के लिए आंध्र प्रदेश के एक माओवादी नेता सहित आठ लोगों को सजा सुनाई। अदालत ने उन्हें अन्य आरोपों के अलावा हत्या, आपराधिक साजिश, गैरकानूनी सभा और दंगा करने का दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से दो को जुलाई 2019 में और पांच अन्य दोषियों को नवंबर 2019 में 10 साल की सजा काटने के बाद जमानत दे दी थी।

जून 2010 में कंधमाल की एक अदालत ने दंगे से जुड़े एक मामले में तत्कालीन बीजेपी विधायक मनोज प्रधान को भी दोषी ठहराया था। उसी साल 7 जुलाई को हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2011 में उनकी जमानत को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में वापस भेज दिया, जिसके बाद हाई कोर्ट ने 18 मार्च 2011 को उन्हें जमानत दे दी।

मतदान से पहले सियासी घमासान

हाई कोर्ट के मंगलवार के आदेश के बाद बीजेडी सरकार पर निशाना साधते हुए विपक्ष की नेता जया नारायण मिश्रा ने आरोप लगाया कि दिसंबर 2007 में हमला होने के बाद भी पटनायक सरकार ने कथित तौर पर लक्ष्मणानंद को सुरक्षा प्रदान नहीं की थी। जया मिश्रा ने आरोप लगाया कि संत के सुरक्षाकर्मी छुट्टी पर थे जब 23 अगस्त 2008 की रात उनकी हत्या कर दी गई।

बता दें कि भाजपा इसे आगामी चुनावों में एक मुद्दा बनाने के लिए तैयार है। बरगढ़ के भाजपा सांसद और वकील सुरेश पुजारी (जिन्होंने न्यायिक आयोगों के समक्ष एक आदिवासी समूह, कुई समाज का प्रतिनिधित्व किया) ने आरोप लगाया कि जांच पैनल की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में भेज दी गई है। उन्होंने कहा, “अगर राज्य सरकार रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए तैयार नहीं थी, तो वे न्यायिक जांच के लिए क्यों गए। मुझे लगता है कि न्यायिक जांच के निष्कर्ष सरकार को पसंद नहीं आ रहे हैं, जिसके कारण वे इन्हें सार्वजनिक करने से झिझक रही हैं। मेरी समझ के अनुसार जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि धार्मिक रूपांतरण और आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन कंधमाल दंगों के पीछे प्रमुख कारण हैं।”