सत्ता पक्ष का विरोध करने में विपक्ष का जवाब नहीं। लोग कहते हैं कि हर चीज का विरोध ठीक नहीं, लेकिन सत्ता के लिए संघर्ष करने वाले दलों के लिए छोटे-छोटे मुद्दों को पकड़ना और मौके पर उसका पलटवार कर देना ही विपक्ष की तेजी कहलाती है। दिल्ली में सत्ता के लिए संघर्ष करने वाली एक पार्टी में यही खूबी दिखी।

दरअसल, सरकार की ओर से सर्किल रेट की बढ़ोतरी की घोषणा किए बिना ही विपक्षी पार्टी ने संभावित बढ़ोतरी बताकर उसका विरोध कर दिया और आधिकारिक बयान भी जारी कर दिया। जब मामला चर्चा में आया तो प्रवक्ता कि किरकिरी होने लगी। लेकिन दिल्ली में सत्ता की राजनीति को करीब से देखने वाले कह बैठे, कहीं ऐसा न हो कि भाजपा प्रवक्ता के विरोध के बाद कहीं वे बढ़ोतरी की घोषणा ही न कर बैंठें! क्योकि पंगा लेने में ’आप’ से बेहतर कौन !

पुरस्कार और वेतन

दिल्ली नगर निगम तंगी के बीच कामकाज को आगे बढ़ा रहा है, लेकिन यहां कुछ ऐसा हो जाता है कि उसकी चर्चा शुरू हो जाती है। अभी तक कर्मचारियों के वेतन न मिलने की चर्चा थी। लेकिन इस चर्चा ने तब आग में घी डालने का काम किया जब कर्मचारियों को पता चला कि विभाग इस दुर्दिन में भी नकद पुरस्कार बांट रहा है। फिर क्या था पूरे निगम में दबी जुबान से इसका विरोध शुरू हो गया।

दरअसल, निगम की ओर से एक प्रतियोगिता कराई जा रही है जिसमें नकद राशि बांटी जाएगी। इस घोणषा से निगम के कर्मचारी ही नहीं बल्कि अधिकारी भी यह कहते सुने जा रहे हैं कि जब समय पर वेतन नहीं मिलता है तब हमें पुरस्कार का प्रलोभन क्यों दिया जा रहा है। बेदिल को इसी प्रकार के एक अधिकारी से पाला पड़ गया। वे कहने लगे कि अगर निगम प्रधान को हमारे कामों की इतनी चिंता है तो वे पहले वेतन की तरफ ध्यान दें।

पद का झुनझुना

दिल्ली पुलिस में एसीपी के पदों पर बस कुछ दिनों के लिए इंस्पेक्टरों को प्रतिष्ठित किया जाता है। बाद में उन्हें दोबारा इंस्पेक्टर के रूप में लौटना पड़ता है। पद पाने वाले लोग क्या सोचते हैं यह जानने के लिए बेदिल विभाग की ओर चल पड़ा। वहां बेदिल की इसी प्रकार की प्रोन्नति पाए इंस्पेक्टर से बात हो रही थी। उनका कहना था कि बधाई मत दीजिए।

यह एसीपी का ताज स्थायी नहीं है बल्कि एक मुसीबत का पद है। न काम एसीपी की तरह कर सकते हैं और न सम्मान पा सकते हैं। इसे एक तरह का झुनझुना भी कह सकते हैं, जिसका शोर लोगों को पसंद नहीं आता। वह बोले कि घर में भी हमलोग इंस्पेक्टर ही रहते हैं, कुछ दिनों के लिए इसे प्रचारित करना बाद में मुसीबत का सबब बन जाता है।

इधर न उधर

गौतमबुद्ध नगर के तीनों औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में हुए बड़े पैमाने पर इंजीनियरों समेत अन्य अधिकारियों के शासन स्तर से तबादला होने के करीब महीने भर बाद भी काफी अभी तक पुरानी जगहों पर तैनात हैं। उधर, औद्योगिक विकास मंत्री स्तर से नाराजगी जताने के बाद काफी को नई जगह पर भेज दिया गया है लेकिन कई अहम और महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे अधिकारी व इंजीनियरों को अभी तक कार्यमुक्त नहीं किया गया है।

इसकी वजह बताई जा रही है प्राधिकरण के मुखिया की दिलचस्पी में कमी। दरअसल, इंजीनियर नई जगह जाने को तैयार हैं लेकिन सीईओ स्तर से उन्हें कार्यमुक्त नहीं किया जा रहा है। चिंता की बात यह है कि कार्यभार ग्रहण करने वालों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की चेतावनी दी गई है। अब वे मजबूर हैं कि जाएं तो जाएं कहां। अपने मन से कार्यभार ग्रहण कर नहीं सकते और मुखिया से कार्यमुक्त कराने के लिए कह नहीं सकते।
-बेदिल