lockdown 2.0: देशभर में कोरोना वायरस के व्यापक प्रसार को देखते हुए केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन तीन मई तक लागू रहने की घोषणा की है। हालांकि लॉकडाउन बढ़ाए जाने से प्रवासी मजदूरों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। टीओआई में छपी खबर के मुताबिक बैग बनाने वाले यूनिट में काम करने वाले शहादत अंसारी उनमें से एक हैं। दक्षिणी दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन में चार लोगों के साथ एक छोटे से कमरे में तीन सप्ताह बिताने वाले अंसारी को उम्मीद थी कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन हटाने के बाद वो बिहार के मधुबनी जिले में स्थित अपने गांव लौट जाएंगे। मगर लॉकडाउन के विस्तार ने 37 वर्षीय मजदूर की अपने बूढ़ी माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों से जल्द मुलाकात को धराशायी कर दिया है।
अंसारी कहते हैं, ‘मैं कमरे में बंद रहकर थक गया हूं। मुझे भोजन नहीं चाहिए। मैं बस वापस अपने परिवार के पास गांव जाना चाहता हूं।’ शहादत अंसारी जहां रहते हैं वो छह आवासीय भवनों का एक छोटा सा परिसर है। यहां बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा से आए लगभग 2000 प्रवासी मजदूर किराए के कमरे में रहते हैं। अंसारी और वहां रहने वाले सभी मजदूरों ने 25 मार्च से लॉकडाउन अमल में लाए जाने के बाद एक रुपिया भी नहीं कमाया है। इनमें से कुछ लोगों ने मार्च के आखिरी सप्ताह गांव जाने के लिए बाहर निकले की कोशिश भी की थी, मगर पुलिस घर उन्हें घर में ही रहने को कहा। ये तभी से अपने कमरों में बंद हैं, सो रहे हैं या अपने मोबाइल में वीडियो देख रहे हैं। लोग एक दूसरों को भावनात्मक समर्थन दे रहे हैं।
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ऐसे ही चिल्लाते हुए माधव मंडल कहते हैं, ‘हमें केंद्र या राज्य सरकारों से कुछ नहीं चाहिए। देश को कोरोना वायरस से बचाने के लिए 9 महीने का लॉकडाउन लगा दो। मगर भगवान के लिए हमें अपने घर जाने दो।’ फैशन डिजाइनरों के लिए काम करने वाले 16 अन्य कामगारों में से एक मनिरुल कहते हैं, ‘हमारी बचत खत्म हो चुकी है और अब दो-तीन का ही भोजन बचा है। हमें कोई भी उधार राशन देने के लिए तैयार नहीं है। पैसे के बिना गांव में रहना आसान है, शहर में नहीं।’
इन लोगों ने जिन डिजाइनरों के लिए काम किया उन्होंने भी अपने हाथ खड़े कर दिए है। कहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद ही उनसे संपर्क करें। ऐसे ही निराश बिधान मांझी कहते हैं कि ‘हमारे नियोक्ताओं ने अपने फोन बंद कर लिए हैं।’

