मनमोहक मुस्कान

हंसता हुआ नूरानी चेहरा…मेट्रो में इस गीत को सुनते ही कई चौंक गए। चौंकना स्वाभाविक भी था। दरअसल अपने जमाने के इस चर्चित गीत की पहली पंक्ति किसी के मोबाइल में नहीं बज रही थी। बल्कि एक सज्जन गुनगुना पड़े थे। वे मेट्रो में लगी दिल्ली सरकार के उस विज्ञापन को देख गुनगुना पड़े थे जिसमें केजरीवाल की मुस्कुराती हुई तस्वीर थी। ‘इंद्रधनुष कवच टीकाकरण अभियान’ नाम से दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग की ओर से दिए विज्ञापन में केजरीवाल की फोटो लगी थी, जिसमें वे रंगे बाल व मूंछों में मुस्कुराते हुए आमजन से बच्चों को टीका लगवाने की अपील कर रहे थे। इसके बाद मेट्रो के बाकी यात्री भी मुस्कुरा पड़े। लोगों ने एक-दूसरे को दिखाया भी। शायद ही किसी ने साहब को मुस्कुराता देखा हो! किसी ने ठीक ही कहा- विज्ञापन तो कई हैं लेकिन यह खास है, क्योंकि इसमें उनका हंसता हुआ चेहरा जो है।

मिले सुर मेरा तुम्हारा

डेंगू और चिकगुनिया से बेहाल दिल्ली को आरोप-प्रत्यारोपों के इंजेक्शन के हाल पर छोड़ कर सत्ता और विपक्ष के ज्यादातर नेता पिछले दिनों गायब रहे। चिकनगुनिया से हो रही मौतों के बाद जब मामला तूल पकड़ने लगा तो सत्ता पक्ष ने घबरा कर नया राग अलापना शुरू कर दिया, ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा’। इस आलाप के बाद थोड़ी देर तो सुर से सुर बंधा रहा, पर इसी बीच विपक्ष ने ‘भगोड़ा दिवस’ का राग अलापना शुरू कर दिया और राजधानी के प्रशासनिक प्रमुख की ओर से दिल्ली के मंत्रियों को वापस आने का फरमान जारी कर दिया गया। फिर क्या था, जो ‘हमारा सुर’ बना था वह जल्द ही बेसुरा हो गया और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला फिर शुरू हो गया, लेकिन अंतर यह रहा कि दोनों से तरफ किसने दवा की कितनी डोज दी इसकी होड़ ज्यादा रही, वहीं जनता अब इस उम्मीद में है कि उसे शायद इसी से कुछ फायदा हो जाए।

सरकार बनाम जंग

दिल्ली सरकार के मंत्री अब समझ गए हैं कि उपराज्यपाल के आगे उनकी ज्यादा चलने वाली नहीं है। दिल्ली की किसी भी समस्या को लेकर अब उन्होंने अपना पल्ला झाड़ना और सारा दोष उपराज्यपाल पर मढ़ना शुरू कर दिया है। दिल्ली में आए दिन नई समस्याएं सामने आ रही हैं। अब उन पर सीधे कुछ कहने के बजाए आम आदमी पार्टी की सरकार के मंत्री कह देते हैं कि उपराज्यपाल को पता होगा। दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार ने 15 साल तक राज किया, लेकिन कभी भी इस तरह की समस्याएं सामने नहीं आर्इं, लेकिन इस बार 67 विधायकों के भारी जनसमर्थन के बाद केजरीवाल सरकार के मंत्रियों ने खुद को दिल्ली का सर्वेसर्वा मानकर दिल्ली के संविधान का उल्लंघन करना शुरू कर दिया है। उसके बाद से उपराज्यपाल और दिल्ली के मंत्रियों के बीच रिश्ते बिगड़ने ही थे, जिसका खमियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ रहा है।

लंबी जुबान

मुख्यमंत्री जी की हर अदा निराली है। खबरों में कैसे बने रहना चाहिए, यह हमें उनसे ही सीखना चाहिए। पार्टी में बगावत और दिल्ली में डेंगू-चिकनगुनिया बुखार के भयंकर प्रकोप के बीच बंगलुरु में आॅपरेशन करवाने गए मुख्यमंत्री के बारे में विपक्षियों ने अफवाह उड़ा रखी थी कि उनकी जुबान बहुत लंबी है इसलिए उसे आॅपरेशन करके छोटा किया गया है। लंबी जुबान को विरोधी उनके ज्यादा बोलने से जोड़ रहे हैं। असल में उनके गले की सर्जरी हुई है। केजरीवाल रविवार को दिल्ली भी लौट आए। कहा जा रहा है कि डॉक्टर ने उन्हें महीने भर तक भाषण देने से मना किया है। मुमकिन है कि इससे उनकी पार्टी की पंजाब विधानसभा चुनाव की तैयारी पर कुछ असर पड़े, लेकिन कम बोलने के कारण वे पार्टी में चल रहे ताजा घमासान से कुछ समय के लिए अपनी जान जरूर बचा पाएंगे और चुनाव के ठीक पहले भले-चंगे होकर अपने अभियान को भी पूरा कर पाएंगे।

धूमिल होती गरिमा
दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद कई चीजें पहली बार हो रही हैं। अब तक दिल्ली के उपराज्यपाल का पद उसी तरह गरिमा का पद माना जाता था जैसे हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के जज या राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद। लेकिन आप के नेताओं ने उपराज्यपाल को किसी पार्टी का नेता बना दिया है और उन पर वैसे ही आरोप लगा रहे हैं जैसे राजनीतिक दल एक-दूसरे पर लगाते हैं। बदले में उपराज्यपाल भी वह सब करने लगे हैं जो पहले कोई उपराज्यपाल नहीं करता था। आप के हर आरोप का जवाब अब राजनिवास से आने लगा है। आप नेताओं ने आरोप लगाया कि राजनिवास में शनिवार और रविवार को छुट्टी रहती है इसीलिए बिना समय लिए आए सरकार के मंत्रियों से उपराज्यपाल नहीं मिले। जवाब में उपराज्यपाल ने रविवार को डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों का हालचाल जानने के लिए अस्पतालों को दौरा किया। जबकि सामान्य तौर पर राष्ट्रपति शासन में ही उपराज्यपाल इस तरह से सक्रिय होते हैं।
-बेदिल
मनमोहक मुस्कान