मनोज मिश्र

मीडिया पर लगाम लगाने वाले आप सरकार के फरमान ने खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की हालत अजीब कर दी है। केजरीवाल ने जिस कानून (आइपीसी की धारा 499 और 500) के तहत मीडिया पर मुकदमा दर्ज करवाने के आदेश दिए हैं, उसी कानून को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताकर उसे खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। वे अभिव्यक्ति की आजादी पर इस कानून को हमला मानते हैं।

यह भी अजीब है कि सुप्रीम कोर्ट में इसी के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी याचिका दायर कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने वाला है। मीडिया के भारी समर्थन से महज तीन साल में शून्य से शिखर तक पहुंचने वाले आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को अब मीडिया फूटी आंख नहीं सुहा रहा है।

केजरीवाल के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के खिलाफ टिप्पणी करने पर उनके पुत्र अमित सिब्बल, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विशेष कार्य अधिकारी पवन खेड़ा ने आइपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दिल्ली के पाटियाला हाउस कोर्ट में मामला दायर कर रखा है। इन मामलों में अदालत में सुनवाई चल रही है। इन धाराओं को ही गलत बताकर इन्हें रद्द करवाने के लिए केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है।

इसी तरह की याचिका आरएसएस पर टिप्पणी करने पर राहुल गांधी के खिलाफ महाराष्ट्र में और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के खिलाफ टिप्पणी करने पर भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी के खिलाफ मामला चल रहा है। उन दोनों ने भी इन धाराओं को अभिव्यक्ति की आजादी के संविधान में मिले अधिकार के खिलाफ बताकर इसे खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट इन सभी पर एक साथ सुनवाई करने वाला है।

हैरत की बात है कि जिस कानून को अरविंद केजरीवाल खत्म करवाने के लिए खुद सुप्रीम कोर्ट में याची बने हुए हैं, वही उसी कानून से मीडिया पर अंकुश लगाने की तैयारी में हैं। सत्ता में आने के बाद और सत्ता में आने से पहले उनका रवैया मीडिया से अलग रहा है। यह दोनों ही बार उनके राज में साफ हुआ है। इस बार तो वे मीडिया से पूरी तरह नाराज हैं। पिछली बार सरकार में आते ही उन्होंने दिल्ली सरकार के मुख्यालय दिल्ली सचिवालय में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन थोड़े ही दिनों में हटा दी गई।

इस बार तो 14 फरवरी को शपथ लेने के साथ ही मीडिया पर पाबंदी लगा दी गई। मान्यता प्राप्त पत्रकार दिल्ली सरकार के अलावा स्थानीय शासन के दफ्तरों, दिल्ली पुलिस मुख्यालय, नगर निगमों, डीडीए, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के मुख्यालय समेत अनेक दफ्तरों में उसी मान्यता कार्ड से बेरोकटोक दाखिला पा रहे हैं। सचिवालय में प्रवेश के मुद्दे पर कई प्रयासों के बाद आंशिक प्रवेश की सुविधा बहाल हो पाई है।

संयोग से मीडिया संगठनों ने इसे कोई मुद्दा नहीं बनाया, न ही इस पर आंदोलन हुए। लेकिन आप के आपसी कलह, सरकार की कमियां और जंतर मंतर पर आप की किसान रैली में एक किसान की खुदकुशी आदि मुद्दे पर पार्टी के खिलाफ खबरें छपती रहीं। इससे पहले से ही केजरीवाल ने पिछली बार से उलट मीडिया से बात करना बंद कर दिया। शुरू में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया बात करते रहे। लेकिन अब उन्होंने भी मीडिया से दूरी बना ली। सचिवालय में भले ही पत्रकारों का आंशिक प्रवेश शुरू हो गया है, लेकिन मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों के दरवाजे उनके लिए लगभग बंद ही हैं।

मीडिया से दूरी बनाने के बाद पिछले दिनों खबरों की निगरानी के लिए बाकायदा निगरानी सेल बनाकर मीडिया पर निगरानी रखी जाने लगी। उसके बाद सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ खबर छापने और दिखाने पर सीधे अवमानना का मामला दर्ज करके कार्रवाई करने के लिए परिपत्र जारी किया गया है। इस कानून के तहत अवमानना साबित होने पर दो साल की सजा का प्रावधान है। कांग्रेस, भाजपा समेत विपक्षी दल और मीडिया संगठन सरकार के इस फरमान के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं। लगता है, यह विवाद काफी बढ़ने वाला है।