सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी कर उत्तर प्रदेश से 71 सांसद जिताने वाली भाजपा की नजर अब भी मायावती के वोट बैंक पर है। डा भीमराव आंबेडकर के सहारे दलितों के दिल में जगह बनाने की कोशिश में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने इस काम को साधने के लिए नरेंद्र मोदी को आगे किया है। 22 जनवरी को चार घंटे के लिए लखनऊ आ रहे प्रधानमंत्री अपनी यात्रा का अधिकांश समय डा आंबेडकर से जुड़े कार्यक्रमों पर खर्च करने जा रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के दलितों को अपने पाले में करने की हर संभव कोशिश बीते दो सालों से लगातार कर रही है। इसकी शुरुआत 2014 में अमित शाह ने की थी। उस समय वह उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। उन्होंने डा भीमराव आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर प्रदेश भर के भाजपाइयों को दलितों की बस्ती में जाकर पूरा दिन उनके साथ रहने के निर्देश दिए थे।

पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से अमित शाह का पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश के दलित वोट बैंक पर केंद्रित है। वह हर हाल में बहुजन समाज पार्टी की थाती कहे जाने वाले इस वोट बैंक को हथियाने की हर कोशिश में जुटे हैं। बीती छह दिसंबर को भी भाजपा ने प्रदेश भर की दलित बस्तियों में जाकर दलितों का सुख-दुख बांटने का दृश्य समाज के समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश की। उनकी इसी कोशिश को प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा और बल प्रदान करने जा रही है।

प्रधानमंत्री 22 जनवरी को चार घंटे के लिए लखनऊ आ रहे हैं। इस दौरान वे डा. भीमराव केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शिरकत करेंगे। इसके बाद काल्विन ताल्लुकेदार कालेज में ई-रिक्शा के वितरण का कार्यक्रम है जिसमें खुद प्रधानमंत्री की मौजूदगी रहेगी। इस कार्यक्रम के बाद मोदी आंबेडकर महासभा परिसर पहुंचेंगे। यहां वे आंबेडकर के अस्थिकलश पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे।

लखनऊ में जिन तीन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री को शिरकत करनी है उनमें से दो डा. आंबेडकर से जुड़े हैं। ऐसा कर प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के दलितों को यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि दलितों का उनके लिए क्या महत्त्व है? बाबा आंबेडकर का आशीर्वाद, चलो चलें मोदी के साथ, का नारा देकर दलितों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटी भाजपा को इस बात का बखूबी इल्म है कि यदि उत्तर प्रदेश के 22 प्रतिशत दलितों तक पहुंच बना पाने में उन्हें कामयाबी मिली तो विधानसभा चुनाव में इसका बड़ा लाभ उन्हें मिल सकता है।

प्रदेश की अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं के दिलों तक पहुंच बना चुकीं मायावती के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी कर पाना भारतीय जनता पार्टी के लिए आासान नहीं है। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में भले ही बसपा शून्य पर आउट हो गई हो लेकिन इसी चुनाव में 33 लोकसभा सीटें ऐसी थीं जहां बसपा के उम्मीदवारों ने दूसरा स्थान हासिल किया। एक लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटों के गणित पर यदि गौर करें तो दूसरी पायदान पर आये 33 उम्मीदवारों का यह आंकड़ा विधानसभा सीटों के हिसाब से 165 के आंकड़े पर रुकता है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी को आसान प्रतिस्पर्र्धी समझने की भूल भाजपा के लिए दूर की कौड़ी साबित हो सकती है।