2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी का रास्ता रोकने के लिए यूपी में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है, जब सपा-बसपा साथ आए हों। करीब 25 साल पहले 1993 में दोनों राजनीतिक दल एक साथ मैदान में उतरे थे। उस वक्त भी बीजेपी की लहर को रोकने के लिए गठबंधन किया गया था। तब मुलायम सिंह यादव और कांशीराम की जोड़ी ने करिश्मा किया था, जिसे दोहराना अखिलेश-मायावती के लिए चुनौती की तरह है। बता दें कि 1993 के दौरान यूपी में राम मंदिर की लहर थी। बीजेपी की जीत पक्की मानी जा रही थी। विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी (177 सीट) बनकर उभरी भी, लेकिन मुलायम सिंह यादव (109 सीटें) और कांशीराम (67 सीटें) के गठबंधन ने बीजेपी का गणित बिगाड़ दिया था।

1993 में विधानसभा चुनाव के लिए ऐसे बंटी थीं सीटें : यूपी में 1993 के विधानसभा के चुनाव में कांशीराम और मुलायम सिंह बीजेपी की राम लहर की काट ढूंढ रहे थे। ऐसे में दोनों नेताओं ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। उस वक्त यूपी में विधानसभा की कुल 422 सीटें थीं। सपा ने 256 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और बसपा ने 164 सीटों पर दांव खेला। सपा को 109 सीटों पर जीत मिली, जबकि 67 सीटों पर बसपा के प्रत्याशी जीते। बात वोट शेयर की करें तो सपा और बसपा का वोट शेयर 29.06% रहा था। वहीं, बीजेपी को 33.3 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, सपा-बसपा ने जनता दल जैसी राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और 177 सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी को विपक्ष में बैठना पड़ा था।

2014 में ऐसा था वोटिंग पैटर्न : राजनीतिक जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि पार्टियां किन मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरती हैं। 2014 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा था। उन्होंने यूपीए के खिलाफ वोट करते हुए स्थायी सरकार के लिए बीजेपी को चुना था। अगर 2019 में भी वोटिंग पैटर्न 2014 के लोकसभा चुनाव जैसा रहता है तो सपा-बसपा गठबंधन की वजह से बीजेपी को आधी से ज्यादा सीटों से हाथ धोना पड़ सकता है। 2014 के आम चुनाव में यूपी में बीजेपी 71 सीटों पर जीती थी। वहीं, अपना दल को 2, सपा को 5, कांग्रेस को 2 सीटों पर जीत मिली थी। इसके अलावा बसपा खाता भी नहीं खोल सकी थी। 2014 में बीजेपी और अपना दल का वोट शेयर 43.63 प्रतिशत था, जो सपा और बसपा के संयुक्त वोट शेयर 42.12 प्रतिशत से ज्यादा है। हालांकि सीट दर सीट विश्लेषण किया जाए तो 41 सीटें ऐसी थीं, जहां सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के वोट शेयर को मात दे सकता था। यदि आरएलडी का वोट शेयर भी इसमें जोड़ दें तो 42 सीटों पर बीजेपी पिछड़ सकती है।

2017 के विधानसभा चुनाव में ऐसा था गणित : 2014 के आम चुनाव के बाद यूपी विधानसभा का चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम था। इस चुनाव में बीजेपी ने 384 सीटों पर दावेदारी पेश की और 312 पर जीत दर्ज की। बीजेपी के सहयोगी अपना दल और एसबीएसपी 19 सीटों पर लड़े और 13 पर जीते। बसपा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीटें ही जीत सकी। सपा 311 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद 47 पर जीत पाई। आरएलडी ने 277 सीटों पर चुनाव लड़ा था और एक सीट ही अपने खाते में दर्ज करा पाई थी। इसके अलावा कांग्रेस ने 114 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 7 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। 2019 में वोट इसी पैटर्न पर पड़ते हैं तो बीजेपी, अपना दल और एसबीएसपी का वोट शेयर 41.35 प्रतिशत हो सकता है। वहीं, सपा-बसपा का संयुक्त वोट शेयर 44.05 प्रतिशत रह सकता है। वहीं, आरएलडी को शामिल करने पर यह 45.83 प्रतिशत पहुंच जाएगा।