उत्तर प्रदेश की राजनीति में साल 2017 में सबसे बड़ा सियासी परिवर्तन आया था। जिस राज्य ने कई सालों तक सिर्फ सपा-बसपा का कार्यकाल देखा था, वहां पर प्रचंड बहुमत के साथ कमल खिला। बीजेपी की दो तिहाई वाली बहुमत ने सभी को हैरान कर दिया, सवाल उठने लगे कि जातियों के इस सबसे जटिल समीकरण को कैसे बीजेपी ने साध लिया, आखिर कैसे 300 से ज्यादा सीटें जीतने का कारनामा किया। उस समय मोदी लहर चल रही थी, जीत का एक बडा़ कारण भी रहा, लेकिन एक चेहरा और था जिसने खूब पसीना बहाया, सबसे ज्यादा रैलियां कीं, ओबीसी समाज में बीजेपी के प्रति आस्था जगाई, नाम था- केशव प्रसाद मौर्य।
योगी के सीएम बनने की कहानी
केशव प्रसाद मौर्य जमीन से उठे हुए नेता माने जाते हैं, संघ के साथ काम कर चुके हैं, संगठन को चलाना बखूबी जानते हैं। उनकी उसी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें 2016 में यूपी प्रदेश अध्यक्ष तक बनाया गया था। उम्मीद के मुताबिक उन्होंने संगठन को काफी मजबूत किया और असर चुनावी नतीजों में भी साफ दिख गया। अब ओबीसी चेहरा होना उनकी सबसे बड़ी ताकत रही। संगठन में सक्रियता और लोकप्रियता उनके पक्ष में बैठी, लेकिन सीएम चुनते वक्त बीजेपी ने गोरखपुर से आने वाले योगी आदित्यनाथ पर दांव लगा दिया। हर कोई हैरान रह गया, लेकिन सबसे ज्यादा चकित केशव प्रसाद मौर्य हुए। कहने को तो सीएम रेस में सबसे आगे सिन्हा थे, लेकिन केशव का नाम भी चल रहा था।
मौर्य को मिली डिप्टी सीएम वाली रेवड़ी
जब यह दोनों नेता मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे थे, वहां दिल्ली से योगी आदित्यनाथ फोन चला गया- तुरंत बुलाया गया और फरमान चला गया- आपको उत्तर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनना है, तुरंत लखनऊ पहुंच जाइए। उस एक ऐलान के बाद से ही केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच मनमुटाव की दीवान बनना शुरू हो गई थी। केशव प्रसाद को डिप्टी सीएम जरूर बनाया गया, कुछ अहम मंत्रालय भी खाते में गए, लेकिन मुख्यमंत्री ना बनने का मलाल तो साफ दिख गया।
जब पोस्टरों से गायब हुए मौर्य
इसके बाद साल बीतते गए लेकिन केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच में मनमुटाव वाली दीवार ज्यादा पिघली नहीं। कई बार ऐसा भी देखा गया कि सियासी पोस्टरों में योगी को जगह मिली, लेकिन मौर्य को आउट कर दिया गया। यह सबकुछ राजनीति से प्रेरित माना गया, लेकिन बढ़ती दूरियों का सबसे बड़ा गवाह भी बना।
मोदी का योगी पर भरोसा, मौर्य की टीस
इसके ऊपर योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी की बढ़ती गर्मजोशी ने भी यूपी की सियासत पर अपना जबरदस्त प्रभाव रखा। कौन भूल सकता है कि मोदी ने ही नारा दिया था- योगी+मोदी- उपयोगी। ऐसे में योगी की बढ़ती लोकप्रियता और पीएम मोदी का मिला समर्थन पूरी यूपी बीजेपी के लिए बड़ा संदेश रहा, संदेश था कि योगी की लीडरशिप को लेकर, उनके प्रति भरोसे को लेकर।
मौर्य कैसे होते गए कमजोर
दूसरी तरफ केशव प्रसाद मौर्य की पकड़ कुछ ढीली होती जा रही थी। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट से हार गए, कौशांबी जिले की जिन सीटों पर सबसे ज्यादा प्रचार किया, वहां भी पार्टी को ज्यादा सीटें नहीं दिला पाए। ऐसे में सियासी रुतबा कुछ कम हुआ, डिप्टी सीएम फिर बन गए, लेकिन कुछ अहम मंत्रालय हाथ से भी छिन भी गए। जानकार मानते हैं कि मौर्य के मन में इस बात की टीस तो रह गई थी।
2024 ने बदली फिजा, मौर्य को दिखा अवसर
लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव ने केशव प्रसाद मौर्य को ताकत दे दी है। यूपी के खराब प्रदर्शन ने सिर्फ बीजेपी को झटका नहीं दिया है बल्कि योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता को भी एक धक्का लगा है। इसी धक्के को केशव प्रसाद मौर्य अपनी वापसी का जरिया भी मानते हैं। चुनावी नतीजों पर जब बैठक हुई, योगी से लेकर हर बड़ा मंत्री मौजूद रहा, लेकिन मौर्य दिल्ली चले गए। साफ था कि खिचड़ी तो पक रही है, लेकिन किस प्रकार की यह समझने में देर लगी।
मौर्य मारेंगे चौका या योगी करेंगे खेल?
फिर कार्यसमिति की बैठक में स्थिति और साफ हुई जब मौर्य ने संगठन बनाम सरकार का राग छेड़ दिया। इसके बाद दिल्ली भी चले गए, नड्डा से मुलाकात कर ली। माना जा रहा है कि मौर्य बीजेपी को मिले यूपी झटके अपने लिए अवसर के रूप में देख रहे हैं, लेकिन क्या योगी इस आपदा को सही में अवसर में बदलने देंगे? कहीं फिर मौर्य ही खाली हाथ तो नहीं रह जाएंगे?