Rabri Devi, Ex CM of Bihar: राबड़ी देवी के बिहार के मुख्यमंत्री बनने के सियासी घटनाक्रम को देश की राजनीति के महत्वपूर्ण अध्यायों में शुमार किया जाता है। मुख्यमंत्री बनने से पहले राबड़ी देवी (Rabri Devi) के पास सिर्फ अपने परिवार की जिम्मेदारी हुआ करती थी। रसोईघर ही उनका दफ्तर हुआ करता था और उनकी जवाबदेही भी सिर्फ लालू यादव (Lalu Yadav) व अपने परिवार तक सीमित थी लेकिन अचानक ऐसा कुछ हुआ, जिसने राबड़ी (Rabri) को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा दिया। वह रातों-रात पूरे राज्य की मुखिया बन गईं।

साल 1996 में लालू यादव का नाम चारा घोटाले में आया तो राज्य में सियासी भूचाल पैदा हो गया। तमाम तरह की संभावनाओं के बीच लालू यादव ने दबाव में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। विरोधी मानने लगे थे कि अब लालू यादव की राजनीति का अंत हो गया लेकिन तभी लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब बिहारी ब्रदर्स में लिखा है कि लालू यादव द्वारा राबड़ी देवी को रसोईघर से बाहर निकालकर मुख्यमंत्री बनाना, सत्ता पर उनकी पकड़ की नुमाइश करता है। राबड़ी देवी की ताजपोशी सार्वजनिक थी, जिसका संदेश भी सार्वजनिक था। सत्ता से बाहर होने के बावजूद स्थितियों पर उन्हीं का नियंत्रण था। वह अपनी पार्टी और पत्नी के स्वामी तो थे ही, अब राज्य के स्वामी भी बन गए थे।

लालू के एक इशारे पर पार्टी के नेता राबड़ी देवी के फैसलों को ‘आखिरी’ मानने लगे। विपक्ष, तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ भी नहीं कर पा रहा था। जब लालू यादव ने पद छोड़ने का फैसला किया तो उन्होंने अपने विधायकों की एक मीटिंग बुलाई । इस मीटिंग में उन्होंने ऐलान किया कि अब वो पद छोड़ रहे हैं, आप लोग अपने नेता का चुनाव कर लें।

पार्टी के नेता इससे पहले कोई फैसला लेते, लालू ने दरवाजे पर खड़े अपने दो साथियों की तरफ इशारा किया। थोड़ी ही देर में वह कमरे में दाखिल हुए तो राबड़ी देवी उनके साथ थीं। राबड़ी को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी ऐसे बना दिया जैसे कोई राजा महाराजा अपने वारिस का चुनाव करता है।

राबड़ी देवी, लालू यादव को साहेब कह कर पुकारती थीं। 1973 में जब उनकी शादी  लालू प्रसाद यादव से हुई थी, तब वह मात्र 14 वर्ष की थीं और लालू यादव पटना के पशुचिकित्सा महाविद्यालय में एक निचले दरजे के कर्मचारी थी, उन दिनों वह लालू को ‘ईह’ कह कर बुलाती थीं लेकिन समय बदलने के साथ वह उन्हें ‘साहेब’ बुलाने लगीं। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सारे फैसले साहेब ही लिया करते थे। किताब का दावा है कि वह सिर्फ फैसलों पर दस्तखत किया करती थीं।

राबड़ी देवी कई मौकों पर यह कह चुकी हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनना कभी पसंद नहीं था लेकिन पति के जेल जाने की संभावनाओं को देखते हुए उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया था। उन्हें न तो सचिवालय पसंद था और न ही विधानसभा, उन्हें रसोईघर और उसका बगीचा भाता था। लेकिन बाद में परिस्थितियां उनके हाथ से निकल गईं। संकर्षण अपनी किताब में बताते हैं कि राबड़ी को घर के वह हिस्सा भी नापसंद हो गया था, जहां लालू दिन भर बैठकर मीटिंगें करते थे और जरूरी फैसले लिया करते थे।