Hathras Stampede: हाथरस की घटना को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने एक बार फिर से बाबा सूरजपाल के खिलाफ आवाज उठाई है। साथ ही एसआईटी द्वारा सरकार को पेश रिपोर्ट पर भी सवालिया निशान खड़ा किया। यह बात मायावती ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के माध्यम से कही है।

बसपा प्रमुख मायावती ने अपने पोस्ट में लिखा, ‘यूपी के ज़िला हाथरस में सत्संग भगदड़ काण्ड में हुई 121 निर्दोष महिलाओं व बच्चों आदि की दर्दनाक मौत सरकारी लापरवाही का जीता-जागता प्रमाण, किन्तु एसआईटी द्वारा सरकार को पेश रिपोर्ट घटना की गंभीरता के हिसाब से नहीं होकर राजनीति से प्रेरित ज्यादा लगती है, यह अति-दुःखद।’

मायावती ने आगे लिखा, ‘इस अति-जानलेवा घटना के मुख्य आयोजक भोले बाबा की भूमिका के सम्बंध में एसआईटी की खामोशी भी लोगों में चिन्ताओं का कारण। साथ ही, उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के बजाय उसे क्लीनचिट देने का प्रयास खासा चर्चा का विषय। सरकार जरूर ध्यान दे ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो।’

इससे पहले 6 जुलाई को भी मायावती ने बाबा के खिलाफ आवाज उठाई थी। साथ ही ऐसे बाबाओं से दूर रहने की सलाह दी थी। मायावती ने कहा था कि देश में गरीबाों, दलितों व पीड़ितों आदि को अपनी गरीबी व अन्य सभी दुःखों को दूर करने के लिए हाथरस के भोले बाबा जैसे अनेकों और बाबाओं के अन्धविश्वास व पाखण्डवाद के बहकावे में आकर अपने दुःख व पीड़ा को और नहीं बढ़ाना चाहिए, यही सलाह।

मायावती ने कहा था कि बल्कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के बताए हुए रास्तों पर चलकर इन्हें सत्ता खुद अपने हाथों में लेकर अपनी तकदीर खुद बदलनी होगी अर्थात् इन्हें अपनी पार्टी बीएसपी से ही जुड़ना होगा, तभी ये लोग हाथरस जैसे काण्डों से बच सकते हैं जिसमें 121 लोगों की हुई मृत्यु अति-चिन्ताजनक।

उन्होंने कहा था कि हाथरस काण्ड में, बाबा भोले सहित अन्य जो भी दोषी हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे अन्य और बाबाओं के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी जरूरी। इस मामले में सरकार को अपने राजनैतिक स्वार्थ में ढ़ीला नहीं पड़ना चाहिए ताकि आगे लोगों को अपनी जान ना गवांनी पडे़।

बता दें, मायावती पहली ऐसी नेता हैं, जिन्होंने बाबा के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई है। मायावती को छोड़कर वोटबैंक खिसकने की वजह से अभी तक किसी भी राजनेता ने बाबा के खिलाफ दो शब्द भी नहीं बोले हैं। जहां योगी सरकार ने इस पूरे मामले में जांच की बात कहकर पल्ला छाड़ लिया है तो वहीं राहुल-अखिलेश ने हाथरस हादसे के लिए सरकार पर सवाल खड़े किए हैं, लेकिन सूरजपाल बाबा के खिलाफ आवाज नहीं उठाई है। जानकार कहते हैं, नेताओं के बाबा के खिलाफ आवाज न उठाना एक वोटबैंक सबसे बड़ा कारण है। यही वजह है कि यूपी पुलिस की एफआईआर में बाबा का नाम भी शामिल नहीं है।