भूमिगत जल के भंडार को लेकर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में गहरी चिंता जताई गई है। कैग ने कहा है कि देश के चार राज्यों- पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में बेतहाशा खपत हो रही है। ये राज्य सौ फीसद से ज्यादा की खपत कर रहे हैं। भारत में भूजल खपत का राष्ट्रीय औसत 63 फीसद है। जितना पानी एक साल में जमीन के भीतर जाता है, उसका 63 फीसद निकाल लिया जा रहा है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ये रिपोर्ट पेश की गई है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में भूजल खपत का राष्ट्रीय औसत 63 फीसद है। देश के 13 राज्यों में भूजल खपत राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। जिला स्तर पर देश के 267 जिलों में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा भूजल निकाला गया। कुछ हिस्सों में खपत 385 फीसद के बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। संसद में पेश ये आंकड़े वर्ष 2004 से 2017 तक के डाटा पर आधारित हैं।

कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि भूजल संरक्षण के इरादे से दिसंबर 2019 तक देश के 19 राज्यों में कानून बनाया गया था, लेकिन सिर्फ आज तक सिर्फ चार राज्यों में ये कानून आंशिक तौर पर लागू हो पाया है। बाकी राज्यों में या तो कानून बना नहीं या फिर लागू नहीं हो पाया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में भूजल की 89 फीसद खपत सिंचाई क्षेत्र में होती है। नौ फीसद भूजल घरेलू और दो फीसद व्यावसयिक उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाता है।

‘भूजल प्रबंधन और विनयमन’ योजना साल 2012 से 2017 के बीच 12वीं पंचवर्षीय योजना के वक्त चलाई गई थी। इसका अनुमानित खर्च 3,319 करोड़ रुपए था। मकसद था कि देश में मौजूद भूजल स्रोतों का सही तरीके से पता लगाना और प्रबंधन करना। वर्ष 2017-2020 तक भी ये योजना जारी रही। बजट में बाकायदा 2,349 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया, लेकिन संबंधित मंत्रालय इसमें से 1,109 करोड़ यानी करीब आधा बजट ही खर्च कर पाए। कैग की जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्थानीय समुदायों के जल प्रबंधन तरीकों को मजबूत करने के लिए कोई काम नहीं किया गया।

सिर्फ ढाई फीसद ताजा पानी : एक अनुमान के मुताबिक, कुल मिलाकर धरती पर एक अरब खरब लीटर पानी से भी अधिक है, लेकिन समस्या यह है कि इसका ज्यादातर हिस्सा नमकीन पानी का है और इंसान की प्यास बुझाने के काम नहीं आ सकता। धरती पर मौजूद कुल जल का केवल ढाई फीसद ही ताजा पानी है। इसमें से भी दो-तिहाई हिस्सा ग्लेशियर और बर्फीली चोटियों के रूप में कैद है। इसका मतलब हुआ कि इंसान के पीने, खाना पकाने, जानवरों को पिलाने या कृषि के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा बहुत ही कम है। दरअसल, प्रकृति में जल चक्र चलता रहता है जिससे हमारे पृथ्वी ग्रह पर जल की मात्रा हमेशा एक समान बनी रहती है। इसलिए पानी के पृथ्वी से खत्म होने का खतरा नहीं है। असल खतरा इस बात का है कि भविष्य में हमारे पास सबकी जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त साफ पानी होगा या नहीं।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान 2025 तक सूख जाएगा। विशेषज्ञ पानी की कमी को आर्थिक संकट भी बताते हैं। इसका मतलब हुआ कि इंसान उपलब्ध पानी का किस तरह से प्रबंधन करता है यह अहम है। जैसे कि भूजल का बहुत ज्यादा दोहन करना, नदियों और झीलों को सूखने देना और बचे खुचे साफ पानी के स्रोतों को इतना प्रदूषित कर देना कि उनका पानी इस्तेमाल के लायक ना रहे। जानकारों की राय में साफ पानी के आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकारों को पानी की आपूर्ति और संग्रह के ढांचे में और ज्यादा निवेश करना होगा। इसके अलावा खेती को ऐसा बनाना होगा जिसमें पानी की खपत कम हो। कुल ताजे पानी का करीब 70 फीसद फिलहाल खेतों में सिंचाई और पशु पालन में खर्च होता है।