Bihar Politics: दिल्ली की सत्ता में बीजेपी की वापसी के बाद अब सभी सियासी दलों का फोकस बिहार पर शिफ्ट होने लगा है। इस साल बिहार में भी विधानसभा चुनाव है। बिहार चुनाव में नीतीश कुमार रिकॉर्ड पांचवीं बार बहुमत हासिल करने का प्रयास करेंगे तो वहीं राजद तेजस्वी के नेतृत्व में दो दशक की एंटी इनकंबेंसी को भुनाने की कोशिश करती नजर आएगी।
बिहार में इस साल नवंबर में विधानसभा चुनाव हो सकता हैं। यहां एनडीए गठबंधन में बीजेपी अभी जदयू के मुकाबले बड़े दल की भूमिका में है। बात अगर महागठबंधन की करें तो यहां राजद सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि कांग्रेस और लेफ्ट सहयोगियों की भूमिका में हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी उत्साहित भी है, क्योंकि उसने हाल ही में महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के कठिन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है। बिहार के लिए एनडीए ने राज्य की 243 विधानसभाओं में से 225 का टारगेट रखा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, पीएम नरेंद्र मोदी भी 24 फरवरी को विकास कुछ योजनाओं का उद्घाटन और किसानों को संबोधित करने के लिए बिहार आ रहे हैं।
भले ही महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी की हैसियत छोटे दल की हो लेकिन उसने अभी से अपना फोकस बिहार पर कर लिया है। बीती फांच फरवरी को ही राहुल गांधी पटना के एक दिवसीय दौरे पर थे। यह 18 दिनों में बिहार का उनका दूसरा दौरा था।
बिहार चुनाव पर दिल्ली इलेक्शन रिजल्ट का पड़ेगा प्रभाव?
माना जा रहा है कि दिल्ली चुनाव परिणाम का असर बिहार में दिखाई देगा, खासकर दोनों गठबंधनों के बीच होने वाली सीट शेयरिंग में। एक के बाद एक लगातार तीन जीत के साथ बीजेपी एनडीए में अपने पास सबसे बड़ा हिस्सा रखने की पूरी कोशिश करेगी। जदयू ने पिछले विधानसभा चुनाव में में 115 सीटों में से 43 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि बीजेपी ने 110 में से 74 सीटों पर परचम फहराया था।
हालांकि जदयू नेताओं का कहना है कि उसने पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया। बिहार में बीजेपी और जदयू दोनों ही पार्टियों ने 12-12 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की लेकिन जदयू का स्ट्राइक रेट बेहतर था।
इसी तरह महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी के लिए ज्यादा सीटों का मोलभाव करना आसान नहीं होगा। कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में निराशा हासिल हुई है। राजद अब शायद ही कांग्रेस पार्टी को उतनी सीटें न दे, जितनी उसकी तरफ से डिमांड की जाएं। बिहार में साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी। राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़कर 80 सीटें जीती थीं और वो राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
इलेक्शन मोड में हैं जदयू और राजद
बिहार में जदयू और राजद दोनों ही पार्टियां इस समय इलेक्शन मोड में हैं। नीतीश कुमार ने पिछले साल 23 दिसंबर को प्रगति यात्रा की शुरू की थी। उनकी इस यात्रा का मकसद पूरे राज्य को कवर करना है। नीतीश कुमार की यह यात्रा विभिन्न ग्रुप्स को टारगेट कर रही है। जैसे ‘नारी शक्ति रथ यात्रा’ और ‘कर्पूरी रख यात्रा’ का मकसद क्रमश: महिलाओं और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को लुभाना है। ये दोनों ही नीतीश कुमार के कोर सपोर्टर माने जाते हैं।
विपक्ष द्वारा संविधान से जुड़े विषय उठाए जाने के बीच जदयू ‘अंबेडकर रथ यात्रा’ निकाल रही है, इसका मकसद सभी जिलों तक पहुंचकर वहां के दलितों से संवाद स्थापित करना है। इसके अलावा एक ‘अल्पसंख्यक रथ यात्रा’ भी निकाली जा रही है, जो मुस्लिमों को जोड़ रही है। ये सभी रथ यात्राएं इस महीने के अंत में समाप्त होने वाली हैं।
राजद भी इस समय सड़कों पर है। तेजस्वी यादव पिछले कुछ महीनों से लगातार विधानसभाओं में जा रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं और लोगों को अपनी पार्टी के वादे बता रहे हैं। तेजस्वी यादव के इस कार्यक्रम को ‘कार्यकर्ता दर्शन सह संवाद कार्यक्रम’ नाम दिया गया है। अन्य राज्यों में चुनावी कसौटी पर खरी उतरी योजनाओं की तर्ज पर, राजद ने ‘माई बहन मान योजना’ के तहत गरीब परिवारों की महिलाओं को 2,500 रुपये महीना देने का वादा किया है। इसके अलावा राजद दिल्ली की आम आदमी पार्टी की तरफ पर 200 यूनिट फ्री बिजली और बुजुर्गों की पेंशन बढ़ाने का वाद कर रही है। रोजगार और माइग्रेशन पर कंट्रोल भी राजद के मुद्दों में शामिल हैं।
बजट फैक्टर भी करेगा एनडीए की मदद?
नीतीश कुमार ने लगातार चुनावों में एंटी इनकंबेंसी को मात दी है लेकिन इस बार विरोधी उन्हें थका हुआ बताकर प्रहार कर रहे हैं। एनडीए और महागठबंधन के बीच लगातार पाला बदलने को लेकर उनकी क्रेडिबिलिटी पहले से ही सवालों के घेरे में है। हालांकि एनडीए को बीजेपी के मजबूत होने से ताकत मिली है। मोदी सरकार द्वारा हाल ही में बजट में बिहार के लिए सौगात देने भी उनके पक्ष में जाता है जबकि इंडिया गठबंधन के ‘मिस फायर’ करने से महागठबंधन को झटका लगा है।
पिछले साल के केंद्रीय बजट में केंद्र ने बिहार को विभिन्न योजनाओं और बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए 70,000 करोड़ रुपये अलॉट किए थे। इस बार मखाना बोर्ड और बाढ़ नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार की तरफ से बजट में घोषणा की गई है। माना जा रहा है कि इससे नीतीश सरकार की आलोचना कम होने की उम्मीद है। नीतीश के विरोधी कहते हैं कि वह बेहतर सड़कें और बिजली के अलावा अपने “विकास” के मुद्दे को आगे नहीं बढ़ा पाए हैं। उनकी सरकार रोजगार पैदा नहीं कर पाई है, यही राजद के मुख्य एजेंडों में से एक है।
माना ये भी जा रहा है कि नीतीश के पक्ष में लालू शासन की पुरानी यादें भी ‘काम’ कर सकती हैं।
2020 में कम अनुभव होने के बावजूद भी तेजस्वी यादव अपनी पार्टी को सफलता दिलाने में सफल रहे थे, जिससे उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में भी पूरे जोश में दिखाई दी। एनडीए ने बिहार में 40 में से 31 सीटें जीतीं, लेकिन पांच साल पहले की तुलना में सीटों की यह संख्या कम थी।। साथ ही आरजेडी फिर से सबसे ज्यादा वोट शेयर वाली पार्टी बनकर उभरी। उसने चुनाव में 22% वोट शेयर हासिल किया।
हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद है राजद का जोश कम हो गया क्योंकि नवंबर 2024 में चार सीटों के लिए हुए उपचुनावों में एनडीए ने राजद के दो गढ़ों सहित सभी सीटें जीत लीं।
जन सुराज पार्टी किसी करेगी नुकसान?
बिहार में एक बड़ा फैक्टर प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज बनकर उभर रही है। प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने उपचुनाव में करीब 10% वोट हासिल किए। यह उसका पहला चुनावी मुकाबला था। जन सुराज के उम्मीदवारों को बेलागंज और इमामगंज में आरजेडी उम्मीदवारों की हार के अंतर से भी ज़्यादा वोट हासिल किए।
तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी लॉन्च करने से पहले दो साल तक बिहार की पदयात्रा की थी। बिहार में बीपीएससी परीक्षा विवाद को लेकर उनकी भूख हड़ताल ने पार्टी को लेकर चर्चा बढ़ा दी है क्योंकि राज्य में बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दों में से एक है। एनडीए का कहना है कि जन सुराज से राजद को ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि इससे नीतीश विरोधी वोट बंट जाएगा। हालांकि पीके अपने अभियान में सीएम पर हमला करते रहे हैं।
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