Bihar Election: बिहार में अभी विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन उससे पहले सभी राजनीतिक दल जमीनी समीकरण साधने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। बिहार विधान सभा में दमदार उपस्थिति रखने वाले दलों के साथ ही उत्तर प्रदेश के भी कुछ राजनीतिक दल बिहार में अपना विस्तार करने के लिए प्रयासरत दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ता चला चुकी बहुजन समाज पार्टी भी ऐसे दलों में शामिल है जो बिहार में पार्टी का विस्तार करना चाहती है।

बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को बिहार चुनाव का जिम्मा सौंपा है। यह वही, आकाश आनंद हैं, जिनको कुछ महीने पहले बसपा चीफ मायावती ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। हालांकि, अभी हाल ही में आकाश आनंद की बसपा में फिर से वापसी हुई है, लेकिन इस बार वो पहले से ज्यादा ताकतवर होकर लौटे हैं। आकाश आनंद के ससुर डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ की भी बसपा में वापसी हो चुकी है।

आकाश आनंद को पार्टी में शामिल करने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि आकाश आनंद की असल अग्निपरीक्षा बिहार विधानसभा में होगी। जिसको लेकर मायावती ने उनको पूरी छूट दे रखी है।

हालांकि, आकाश आनंद अभी तक मायावती के उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं। फिर चाहें वो यूपी विधानसभा का चुनाव हो या फिर 2024 का लोकसभा चुनाव। वो कोई करिश्मा नहीं कर पाए हैं। ऐसे में उम्मीद लगाई जा जा रही है कि शायद वो बसपा को कुछ संजीवनी दे पाएं। क्योंकि पिछले कुछ चुनाव से बसपा में करंट देखने को नहीं मिला है, जिसके लिए वो अतीत में पहचानी जाती थी, इसके पीछे एक मुख्य वजह मायावती की बढ़ती उम्र, स्वास्थ्य और दिग्गज नेताओं का पार्टी छोड़ कर जाना हो सकता है।

बिहार चुनाव से पहले बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ पर निकल चुके हैं। आकाश ने इस यात्रा की शुरुआत 10 सितंबर से की है। आकाश की यात्रा 11 दिन तक चलेगी और यह बिहार के 13 जिलों से होकर गुजरेगी। जिनमें बक्सर, रोहतास, छपरा, सीवान, गोपालगंज, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, जहानाबाद, मुजफ्फरपुर जिले शामिल हैं। आकाश ने अपनी यात्रा के पहले दिन हर जनसभा उत्तर प्रदेश का जिक्र किया। जहां बसपा ने चार बार सरकार बना चुकी है।

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अपनी जनसभाओं में आकाश यह बात बताना नहीं भूलते हैं कि उत्तर प्रदेश में मायावती की अगुवाई वाली बसपा सरकार की सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की नीति पर काम हुआ। ऐसे में आकाश बिहार में भी बसपा की सरकार बनाने का आह्वान कर रहे हैं। चुनाव मौसम चर्चा इस बात की भी है कि बिहार की यात्रा पॉलिटिक्स में बसपा ने आकाश आनंद को क्यों उतारा या उनके हाथों में बिहार की कमान क्यों सौंप दी। इसके पीछे कोई मजबूरी है या फिर उत्साह?

बिहार तय करेगा आकाश आनंद का भविष्य?

पार्टी के नवनियुक्त चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद के लिए भी बिहार चुनाव अग्निपरीक्षा है। उन्हें संगठन के स्तर पर साबित करना होगा कि वे मायावती की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की काबिलियत रखते हैं। बिहार में मिली सफलता ही उन्हें बसपा का भविष्य का नेता साबित करेगी।

सूत्र बताते हैं, बसपा को बिहार में तभी फायदा मिलेगा, जब वह अपनी आंतरिक कलह को समय रहते सुलझा लेगी। बिहार के केंद्रीय प्रभारी नेशनल को-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम और चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बने आकाश आनंद को आपसी तालमेल बेहतर करना होगा। बिहार में लंबे समय तक सक्रिय एक नेता को उन्होंने वहां से हटाकर बंगाल भेज दिया है। वहीं, वे अपने गृह जिले लखीमपुर खीरी से दो प्रभारी लेकर बिहार गए हैं। प्रत्याशियों के चयन से लेकर पार्टी की रणनीति को फाइनल करने का जिम्मा आकाश पर होगा। ऐसे में तालमेल की कमी में बसपा को बिहार में धक्का भी लग सकता है।

वहीं, बिहार में बसपा का मुख्य फोकस बिहार के पश्चिमी हिस्से, यानी यूपी बॉर्डर से सटे जिलों (बक्सर, कैमूर, रोहतास) पर है। जहां उनका परंपरागत दलित वोट बैंक पहले से मौजूद है। यहां की 25-30 सीटें बसपा के टारगेट पर हैं। बसपा वर्तमान में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यूपी जैसे राज्य, जहां से बसपा उभरी, वहां उसका अब सिर्फ एक विधायक है। लोकसभा में उसका कोई सांसद नहीं है। 2024 लोकसभा में पूरे देश में बसपा को सिर्फ दो फीसदी वोट मिले।

उत्तर प्रदेश में पार्टी का वोट शेयर गिरकर 9.35 फीसदी रह गया। लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा खाता नहीं खोल पाई। ऐसे में राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए भी बिहार का चुनाव बसपा के लिए अहम है।

बिहार की सीमाएं यूपी से सटी हैं। सीमावर्ती जिलों में बसपा का मजबूत कैडर है। बिहार में दलित 16 फीसदी के लगभग हैं। इसमें जाटव करीब 4.50 फीसदी हैं। बसपा की इस वोटबैंक पर मजबूत पकड़ है। बिहार विधानसभा चुनाव में 2010 और 2015 को छोड़ दें, तो बसपा अपना खाता खोलने में सफल रही है।

साल 2000 में तो उसके पांच विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। 2020 में भी बसपा के मो. जमा खान चैनपुर से जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। जबकि कैमूर जिले की रामगढ़ सीट से बसपा प्रत्याशी अंबिका प्रसाद त्रिकोणीय संघर्ष में आरजेडी प्रत्याशी से महज 189 वोट से हारे थे।

बसपा की बिहार से उम्मीद की वजह क्या है?

बिहार में नवंबर, 2024 के चार विधानसभा उपचुनावों का रिजल्ट भले ही एनडीए के पक्ष में गया हो। लेकिन, बसपा ने रामगढ़ सीट पर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। बसपा प्रत्याशी सतीश यादव इस सीट पर कई राउंड तक भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह पर बढ़त बनाए थे। फाइनल राउंड में वह सिर्फ 1362 वोटों से हारे थे। उन्हें 60, 895 वोट मिले थे। भाजपा के विजयी प्रत्याशी अशोक सिंह को 62, 257 मत मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे राजद के अजीत सिंह को 35, 825 वोट मिले थे। जबकि प्रशांत किशोर की जन-सुराज पार्टी के प्रत्याशी सुशील कुशवाहा 6, 513 वोट पाकर चौथे नंबर पर थे।

बसपा को लोकसभा 2024 में बिहार में कुल 7.44 लाख (1.75 फीसदी) वोट मिले थे। तब बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। 7 सीटों औरंगाबाद, भागलपुर, बक्सर, गया, जहानाबाद, कटिहार, सासाराम पर तीसरे स्थान पर रही थी। 6 सीटों अररिया, दरभंगा, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई, झंझारपुर, काराकाट, मधेपुरा, मधुबनी, महाराजगंज, पश्चिमी चंपारण, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, पूर्णिया, उजियारपुर और वैशाली में चौथे स्थान पर थी।

बक्सर में बसपा प्रत्याशी अनिल कुमार को 1 लाख 14 हजार 714, जहानाबाद में अरुण कुमार को 86 हजार 380, झंझारपुर में गुलाब यादव को 73 हजार 884 वोट मिले थे। इसके अलावा बसपा को सासाराम में 45 हजार 598, गोपालगंज में 29 हजार 272, काराकाट में 23 हजार 657 वैशाली में 21 हजार 436 औरंगाबाद में 20 हजार 309 और वाल्मीकि नगर में 18 हजार 816 वोट मिले थे।

बसपा के रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं कि पार्टी के जोर लगाने पर इन लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 10 से 15 सीटों को जीता जा सकता है। बिहार में एनडीए और इंडी गठबंधन में लोकसभा की तरह ही कांटे की टक्कर हुई, तो बसपा की ये सीटें तुरुप का इक्का साबित होंगी। बिहार में अच्छा प्रदर्शन करने का फायदा फिर 2027 में यूपी चुनाव में भी मिलेगा।

PDA की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी बसपा

बसपा बिहार में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है। बसपा ने बिहार का प्रदेश प्रभारी अनिल चौधरी को बनाया है, जो कुर्मी जाति से आते हैं। बिहार में कुर्मी चार फीसदी से ज्यादा हैं। इसके अलावा कोइरी और कुशवाह भी बसपा के कोर एजेंडे में शामिल हैं। अभी तक कुर्मी, कोइरी और कुशवाह जदयू के वोटर माने जाते रहे हैं। लेकिन, बसपा इस बार बिहार में बड़ी संख्या में कुर्मी सहित इन जातियों के प्रत्याशी उतारने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके अलावा मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं। मायावती मुस्लिमों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने जा रही हैं। ऐसे में बसपा की नजर बिहार में 30 फीसदी वोटरों को साधने पर है।

जानिए मायावती के भतीजे आकाश आनंद के बारे में?

मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने 2017 में 22 साल की उम्र में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। लंदन से एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक रैली में मायावती के साथ अखिलेश यादव और अजित सिंह के साथ मंच साझा करते हुए राजनीति में अपनी शुरुआत की।

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार , 16 अप्रैल 2019 को उन्होंने आगरा के कोठी मीना बाजार मैदान में अपनी पहली रैली को संबोधित किया। उस समय, बसपा समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और मायावती के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा थी, जिसमें अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल भी शामिल था। यह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बना एक कांग्रेस-विरोधी और भाजपा-विरोधी गठबंधन था।

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इसके तीन दिन बाद,आकाश आनंद को मैनपुरी के क्रिश्चियन कॉलेज ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम में देखा गया, जो मायावती और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के मंच पर पुनर्मिलन के समय हुआ था, जो जून 1995 में लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद एक महत्वपूर्ण क्षण था।

जून 2019 में, पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान,आनंद ने बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक का पद संभाला। कई मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि मायावती आनंद को लंबे समय तक पार्टी की कमान संभालने के लिए तैयार कर रही थीं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 15 जनवरी, 2022 को अपने 66वें जन्मदिन समारोह के दौरान भी यही भावना व्यक्त की गई थी, जहां उन्होंने आनंद के लिए एक “बड़ी भूमिका” का संकेत दिया था। 26 मार्च, 2023 को गुरुग्राम में आयोजित एक समारोह में पूर्व बसपा सांसद अशोक सिद्धार्थ की बेटी प्रज्ञा सिद्धार्थ से उनकी शादी के साथ उनका निजी जीवन भी सुर्खियों में रहा।

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