बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में सीट बंटवारा हो चुका है। बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। तो वहीं चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें मिली हैं। जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) को 6 और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6 सीट मिली है। सीट बंटवारे के बाद चिराग पासवान काफी चर्चा में हैं और माना जा रहा है कि उनका दबाव बनाना काम आ गया और उन्हें अच्छी सीटें मिल गई है। हालांकि चिराग पिछले 4 साल से मेहनत कर रहे हैं। जब 2021 में लोजपा में टूट हुई और चिराग अकेले हुए, उसके बाद से ही वह बिहार में दौरे करने लगे थे।

सूत्रों के अनुसार बीजेपी नेता भी मानते हैं कि चिराग ने अपनी क्षमता से कहीं ज़्यादा प्रदर्शन किया और भाजपा ने गठबंधन को एकजुट और मज़बूत बनाए रखने के लिए उन्हें जगह दी। उन्होंने कहा कि पार्टी का यह फ़ैसला दलितों के बीच कमज़ोर स्थिति को देखते हुए लिया गया।

दलितों का डर

उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए दलित वोटों के एक बड़े हिस्से का समाजवादी पार्टी (SP) की ओर जाना को जिम्मेदार ठहराते हुए एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “भाजपा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पतन से पैदा हुए शून्य का फायदा नहीं उठा सकी, और चुनावों से पहले संविधान पर विवाद से नुकसान हुआ। हमने बिहार में (उत्तर प्रदेश की तुलना में) बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन हमारी संख्या 2019 की तुलना में कम रही। अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई पर जूता फेंके जाने और हरियाणा में दलित आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की कथित आत्महत्या से जुड़े विवाद बिहार चुनावों से पहले गठबंधन के दिमाग पर भारी पड़ रहे हैं।”

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सूत्रों ने कहा कि चिराग पासवान के अडिग रुख को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने पिछले साल लोकसभा में लड़ी और जीती गई सीटों की संख्या के आधार पर छोटे सहयोगियों को सीटें आवंटित करने के फॉर्मूले को अंतिम रूप दिया। इस फॉर्मूले के अनुसार उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) को छह-छह सीटें दी गईं, जबकि लोजपा (RV) (जिसने अपने चुनाव लड़े सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की थी) को 29 सीटें दी गई।

दबाव की रणनीति

एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि लोजपा (RV) 20 से ज़्यादा सीटों की हक़दार नहीं थी। नेता ने आगे कहा, “यह मूल फॉर्मूला था, जिस पर चिराग को छोड़कर गठबंधन के सभी सहयोगियों के बीच व्यापक सहमति थी। सीट बंटवारे का समझौता लंबे समय तक अधर में लटका रहा क्योंकि चिराग़ 40 सीटों की अपनी अनुचित मांग पर अड़े रहे। दिल्ली में भाजपा नेतृत्व के निर्देश पर (जो और समय नहीं गंवाना चाहता था) लोजपा (RV) अंततः 29 सीटों पर सहमत हुई।”

सूत्रों ने कहा कि चिराग ने बिहार में भाजपा की कमज़ोरी का (खासकर 2019 के चुनावों की तुलना में लोकसभा में उसकी कमज़ोर सीटों के मद्देनज़र) चतुराई से फायदा उठाया। ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी हासिल करने की कोशिश में चिराग ने मई में बिहार की राजनीति में वापसी की घोषणा के बाद से ही इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। इस घोषणा के बाद उन्होंने नीतीश कुमार सरकार पर कानून-व्यवस्था के मुद्दों को लेकर निशाना साधा।

राज्य में अपराधों की बढ़ती घटनाओं के बाद जुलाई में गया की अपनी यात्रा के दौरान चिराग ने बिहार में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति पर गहरी पीड़ा व्यक्त की और कहा कि उन्हें ऐसी सरकार का समर्थन करने पर दुख हो रहा है जिसके शासन में अपराध नियंत्रण से बाहर हो गया है।

चिराग के इस हमले के तुरंत बाद सांसद और उनके समधी अरुण भारती ने नीतीश कुमार को बुज़ुर्ग नेताओं में गिना और सुझाव दिया कि राज्य को बहुजन राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए एक युवा नेता की जरूरत है।

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एनडीए के सहयोगियों में इन हमलों से बेचैनी बढ़ने के साथ, जेडीयू ने दिल्ली में भाजपा नेतृत्व के समक्ष अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। इसके बाद चिराग को नीतीश कुमार पर हमला ना करने को कहा गया।

जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा ये ज़्यादा सीटें पाने के लिए इस्तेमाल किए गए दबाव के हथकंडे थे और चिराग इसमें कामयाब रहे हैं। हालांकि उन्होंने राज्य की राजनीति में वापसी की इच्छा जताई है, लेकिन वे वास्तव में चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

2021 से मेहनत कर रहें चिराग

चार साल पहले अनिश्चित राजनीतिक भविष्य की ओर देख रहे एक नेता के लिए 29 सीटें हासिल करना चिराग की राजनीतिक चतुराई को दर्शाता है। 2021 में जब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने एलजेपी को तोड़ दिया, उसका चुनाव चिन्ह ले लिया और पार्टी के छह सांसदों में से चार के साथ एनडीए में शामिल हो गए, तो चिराग खुद राजनीतिक संकट में आ गए थे।

हालांकि चिराग पासवान ने एलजेपी में फूट के लिए सीधे तौर पर नीतीश और जेडीयू को ज़िम्मेदार ठहराया। लेकिन उस समय भाजपा उनके पक्ष में नहीं आई। बिहार भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हालांकि चिराग ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान घोषित कर दिया था, लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के चलते भाजपा को पशुपति पारस का साथ देना पड़ा। हालांकि पार्टी ने उनके लिए अपने दरवाजे कभी बंद नहीं किए। बिहार में चिराग की आशीर्वाद यात्रा ने दिखा दिया कि दलित मतदाता उन्हें रामविलास के असली उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं।”

भाजपा पर बढ़त बनाने और एक मजबूत सहयोगी के ख़िलाफ ज़्यादा सौदेबाज़ी की ताकत हासिल करने के लिए कुछ जेडीयू नेताओं ने पशुपति पारस को अपने साथ शामिल होने के लिए मनाने की भी कोशिश की। हालांकि भाजपा ने यह सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कार्रवाई की कि पशुपति पारस उसका मजबूत समर्थन करें। 14 जून 2021 को लोजपा के विभाजन के एक दिन बाद पार्टी के संसदीय बोर्ड के प्रमुख होने के पशुपति पारस के दावे को लोकसभा ने स्वीकार कर लिया।

2022 में बंगले से निकाल दिए गए थे चिराग

अप्रैल 2022 तक चिराग अपने पिता (पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान) के निधन के बाद उनके जनपथ बंगले से ‘जबरन’ निकाले जाने के बाद लगभग सड़क पर आ गए थे। हालांकि उन्होंने मीडिया को बार-बार बताया कि जब उनके सामान की तस्वीरें (जिन पर रामविलास पासवान की तस्वीर लगी थी) सड़क पर जमा होकर टीवी चैनलों पर दिखाई गईं, तो उन्हें ठगा हुआ और अपमानित महसूस हुआ। चिराग ने पीएम मोदी के प्रति अपनी वफ़ादारी दोहराई और राजनीतिक हवा का रुख़ भाँपने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया, जो उनके पिता में प्रचुर मात्रा में थी।

पीएम मोदी का वो पत्र…

चिराग पासवान की पहली पुण्यतिथि पर पीएम मोदी द्वारा चिराग को लिखे गए मार्मिक पत्र के बाद एनडीए के दरवाज़े उनके लिए फिर से खुल गए। वह औपचारिक रूप से 2023 में गठबंधन में वापस आ गए।

हालांकि लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान को अब भी केवल लगभग 5% वोट (मुख्य रूप से पासवान समुदाय के) ही मिल रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी का 100% स्ट्राइक रेट और आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें मिली 29 सीटें इस बात को इशारा करती हैं कि चिराग एक राजनेता के रूप में परिपक्व हो चुके हैं।