बिहार के सीमांचल इलाके में जहां मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है, वहां चुनाव आयोग की विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया (SIR) ने हजारों लोगों की जिंदगियां उथल-पुथल कर दी है। यह कहानी उन आम नागरिकों की है जो वर्षों से भारत के नागरिक हैं, लेकिन अचानक उनके नाम वोटर लिस्ट से कट गए हैं। कुछ को मृत घोषित कर दिया गया है, जबकि वे जीवित हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आइए इस मुद्दे की गहराई में उतरें और उन लोगों की जुबानी जानें जो इस प्रक्रिया से प्रभावित हुए हैं।

किशनगंज जिले के दिघलबैंक में धनतौला पंचायत के निवासी गयासुद्दीन, अपनी पत्नी जुलेखा खातून के साथ रहते हैं। गयासुद्दीन बताते हैं, “मेरा नाम 2003 की वोटर लिस्ट में है और मेरा जन्म 1977 में हुआ है। मेरी शादी 2000 में नेपाल में हुई थी और मेरी पत्नी के पास सभी प्रमाण-पत्र हैं। लेकिन हाल ही में उन्हें नोटिस मिला है। 2 तारीख को मैं किशनगंज के DRDA ऑफिस गया था। वहां मैंने अपनी पत्नी का आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक अकाउंट, निवास प्रमाण-पत्र और वोटर कार्ड जमा किया। मैंने अपना 2003 का वोटर लिस्ट का प्रमाण भी दिया। लेकिन साहब ने कहा कि आपकी पत्नी नेपाल से हैं, इसलिए उनका नाम वोटर लिस्ट से कट जाएगा।”

गयासुद्दीन आगे कहते हैं, “मेरी पत्नी का नाम 2007 से वोटर लिस्ट में है और हमारी शादी को 25 साल हो चुके हैं। यह सिर्फ नेपाल से जुड़े लोगों की समस्या नहीं है। हमारे धनतौला पंचायत के वार्ड नंबर 10 में, जहां मैं 2016 से 2021 तक पूर्व वार्ड सदस्य रहा हूं, कम से कम 100 लोगों को नोटिस मिले हैं।” ये वे लोग हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है, उनके पिपूर्वजों का जन्म भी हिंदुस्तान में हुआ और सभी प्रमाण देने के बाद भी उन्हें नोटिस मिल रहे हैं। निर्वाचन आयोग के नोटिस में लिखा है कि आपके जमा किए दस्तावेजों पर संदेह है, आकर साबित कीजिए।

तेजस्वी यादव को CM घोषित करने के सवाल को फिर टाल गई कांग्रेस, प्रभारी बोले- जनता चुनेगी बिहार का मुख्यमंत्री

वे आगे अपनी पत्नी के बारे में बताते हैं, “मैंने अपनी पत्नी के सभी दस्तावेज दिए, लेकिन फिर भी कहा गया कि नाम कट जाएगा। सबको मजदूरी करनी पड़ती है, लेकिन पिछले एक महीने से यह प्रक्रिया हमें परेशान कर रही है। बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) मनमानी कर रहे हैं। जिसका मन होता है, वह काम करता है, नहीं तो मना कर देता है। मैंने बीएलओ से कहा कि मेरी पत्नी का जन्म 1982 में हुआ है। सरकार का नियम है कि 1987 से पहले जन्मे लोगों को सिर्फ एक प्रमाण देना है। मैंने आधार कार्ड, निवास प्रमाण और बैंक अकाउंट दिया, मेरा 2003 का वोटर लिस्ट भी लगाया, लेकिन काम नहीं हो रहा। सरकार खुद नियम बनाती है और खुद ही फॉलो नहीं करती। हम सरकार से अपील करते हैं कि आम लोगों को इस तरह परेशान न करें। आखिर आधार कार्ड तो सरकार ने ही दिया है।”

यह समस्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं है। किशनगंज और पूर्णिया में गैर-मौजूद वोटरों के नाम बिहार के अन्य इलाकों से ज्यादा काटे गए हैं। किशनगंज में 23.45% और पूर्णिया में 21.72% वोटरों के नाम गैर-मौजूदगी की वजह से हटाए गए, जबकि बिहार का औसत 14.82% है। कटिहार में 43.31% नाम उन वोटरों के काटे गए जो स्थायी रूप से शिफ्ट हो गए हैं, और यहां नाम हटाने की दर 40.47% से ज्यादा है।

एक और दिल दहला देने वाली कहानी है रिहाना खातून की, जो किशनगंज की निवासी हैं। उनके ही गांव के निवासी रहीम बताते हैं, “यह हमारी चाची रिहाना खातून हैं, जो जीवित हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने उनका नाम मृत श्रेणी में घोषित कर दिया। जब वोटर लिस्ट का पूरा डाटा निकाला, तब पता चला कि नाम क्यों नहीं आया। हम बीएलओ साहब से मिले, उन्होंने फॉर्म 6 भरने को कहा। बीएलओ ने फॉर्म लिया, लेकिन नाम अब तक प्रकाशित नहीं हुआ। दो महीने से इसी प्रक्रिया में थक चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। जब इनका (रुकसाना) का मृत्यु घोषित होने का पता चला, तो बीएलओ ने कहा कि किसी ने बताया होगा, इसलिए कर दिया। कोई प्रमाण नहीं था, फिर भी मृत घोषित कर दिया।”

रहीम आगे कहते हैं, ” दस्तावेज जमा किए, लेकिन मैसेज नहीं आया। बीएलओ ने कहा कि आपने जमा ही नहीं किया। रिसीविंग नहीं दी गई थी, इसलिए कुछ बोल नहीं सके। सूची में देखा तो मृत घोषित है। फिर हमने बताया अभी ये जीवित हैं, लेकिन इन्हें मृत घोषित कर दिया गया। वीडियो साहब ने कहा कि फॉर्म 6 भर दो, नाम चढ़ जाएगा।”

रिहाना खातून के पति कहते हैं, “वो यहीं की हैं। उन्होंने वोट दिया है, एक महीना पहले समिति का भी वोट दिया। 2003 की लिस्ट में नाम है। सभी दस्तावेज हैं, फिर भी मृत घोषित कर दिया।”

बिहार में एसआईआर का दौर खत्म हो गया है, लेकिन आंकड़े चौंकाने वाले हैं। सीमांचल के चार जिलों—किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया—में वोटर नाम काटने की रफ्तार बाकी बिहार से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, किशनगंज में 67.89%, कटिहार में 44.47%, अररिया में 42.95% और पूर्णिया में 38.46% मुस्लिम आबादी है। यह इलाका बिहार का सबसे पिछड़ा है, जहां ज्यादातर लोगों के पास आधार और राशन कार्ड के अलावा कोई दस्तावेज नहीं हैं। चुनाव आयोग ने एसआईआर के लिए 11 विशेष पहचान पत्रों की लिस्ट दी, जिसमें आधार और राशन कार्ड पहले शामिल नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आधार को अतिरिक्त दस्तावेज के रूप में माना गया और वेरीफाई करने को कहा गया।

पूरा बिहार हो या सीमांचल, महिलाओं के नाम पुरुषों से ज्यादा काटे गए। सीमांचल के चार जिलों में 56.71% डिलीशन महिलाओं के थे। किशनगंज में 61.22%, अररिया में 53.83%। महिलाओं में 44% डिलीशन शिफ्टिंग की वजह से हुई, जबकि पुरुषों में 37.47% मृत्यु की वजह से। अब सवाल यह है कि इतने पिछड़े इलाके में, जहां कागजात की कमी आम है, यह प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष है? यह गंभीर सवाल खड़े करता है और लोकतंत्र की नींव को हिलाता है। आम लोग अपील कर रहे हैं कि चुनाव आयोग इस पर ध्यान दे और सही लोगों को उनके अधिकार लौटाए।