Lok Janshakti Party (LJP) चीफ रामविलास पासवान का गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वो दिल की बीमारी से जूझ रहे थे। हाल ही में उनकी दिल की सर्जरी हुई थी। बिहार के खगड़िया में जन्मे रामविलास पासवान की राजनीतिक पैठ दिल्ली तक रही। यूं ही नहीं उन्हें चुनाव का मौसम वैज्ञानिक कहा गया।
2005 में मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे। ऐसा तब हुआ था, जब उनके पुराने दोस्त और Janata Dal-United(JD-U) नेता नीतीश कुमार खुद प्रस्ताव लेकर उनके पास पहुंचे थे। हालांकि, तब दोनों के बीच बात बनी और फिर उन दोनों ने मिलकर बिहार चुनाव नहीं लड़ा। ऐसा होने के पीछे एक बड़ी वजह थी। क्या? जानें:
2005 में बिहार विस चुनाव के वक्त नीतीश अपने दोस्त पासवान के पास गए थे। उन्होंने तब पासवान से लालू प्रसाद यादव के Rashtriya Janata Dal (RJD) के खिलाफ मिलकर मोर्चा खड़ा करने के लिए कहा था। नीतीश का इरादा तब अति पिछड़ा वर्ग और दलित वोट जुटाना था, जो कि बिहार की राजनीति में खासा मायने रखता है। सूबे की 45 फीसदी आबादी इन्हीं वर्गों से ताल्लुक रखती है। यहां तक कि नीतीश ने तब साथ देने की शर्त पर पासवान को सीएम पद भी ऑफर कर दिया था।
हालांकि, तब दोनों के बीच बात बन नहीं पाई थी। पासवान तब United Progressive Alliance (UPA) – 1 में केंद्रीय मंत्री थे। साथ ही वह ऐसे किसी दल के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते थे, जो Bharatiya Janata Party (BJP) के साथ हो। ये दोनों नेता तब से ही किसी विधानसभा चुनाव में साथ नहीं आए। अब तक, संभवतः।
जानकारों की मानें, तो नीतीश और पासवान के बीच हमेशा अच्छी केमिस्ट्री थी। इस बार भी वे चुनावी गणित सही बैठाने की कोशिश में थे। 2005 से वे एक दूसरे की पार्टी के खिलाफ लड़ रहे थे। पासवान की पार्टी ने 2009 के आम चुनाव के साथ अगले साल विधानसभा चुनाव लालू के साथ लड़ा, जबकि नीतीश का दल दोनों इलेक्शंस में एक के बाद एक जीत दर्ज करता गया।
यह साल 2014 था, जब बीजेपी के साथ आने के बाद पासवान को जीत का स्वाद चखने को मिला। हालांकि, इस चुनाव में नीतीश अकेले लड़े पर वह किसी तरह का प्रभाव छोड़ने के नाकाम रहे। हालांकि, एक साल बाद नीतीश RJD और Congress के साथ महागठबंधन में आए और 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। वहीं, पासवान और बीजेपी चुनावी मैदान में धूल खाते रहे।
2017 में नीतीश बीजेपी की ओर बढ़े और उसी साल अगस्त में National Democratic Alliance (NDA) का हिस्सा बने। एक ही पाले में होने पर नीतीश और पासवान को 2019 में जीत का स्वाद साथ चखने को मिला था।