गुजरात में 2009 और 2014 के बीच सरकारी मेडिकल कॉलेजों से उत्तीर्ण हुए 4,300 से अधिक एमबीबीएस छात्रों में से सिर्फ 530 ने ही अपने अनुबंध के मुताबिक तीन साल के लिए राज्य के ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी अस्पतालों में सेवा दी। गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेते वक्त मेडिकल छात्रों का इस तरह के अनुबंध पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य है। गुजरात विधानसभा में हाल में पेश आंकड़ों के मुताबिक, जिन मेडिकल छात्रों ने अपने अनुबंध का उल्लंघन किया है और गांवों में अनिवार्य सेवा से इनकार किया, उनसे सरकार ने 15.68 करोड़ रुपए से अधिक की राशि एकत्र की है।
कांग्रेस विधायक परेश धनानी ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल से पूछे एक सवाल में ऐसे डॉक्टरों की विस्तृत जानकारी मांगी थी। इसके लिखित जवाब में पटेल ने बताया राज्य के कुल छह मेडिकल कॉलेजों में 2009 और 2014 के बीच कुल 4,341 एमबीबीएस छात्र उत्तीर्ण हुए। इन योग्य डॉक्टरों में से केवल 530 ने ही पांच वर्ष के दौरान सरकारी ग्रामीण अस्पतालों में सेवा दी। गुजरात सरकार के नियमों के मुताबिक, दाखिले के वक्त किए अनुबंध का उल्लंघन करने पर पांच लाख रुपए का भुगतान करना होता है। सरकार ने बताया कि अनुबंध का उल्लंघन करने वालों ने भुगतान कर दिया और कहीं और चले गए।
अनुबंध का उल्लंघन करने वाले डॉक्टरों से अनुबंध राशि एकत्र करने के बारे में पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में सरकार ने बताया है कि ग्रामीण इलाकों में जाकर सेवा करने से इनकार करने वाले 1,412 डॉक्टरों से 15.68 करोड़ रुपए से अधिक की राशि एकत्र की गई है।
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर विपक्ष की आलोचना का सामना कर रही गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने हाल में यह स्वीकार किया कि डॉक्टरों की कमी वाकई में चिंता का विषय है। नडियाद शहर में दो दिन पहले एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए आनंदी बेन पटेल ने सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के रिक्त पदों पर चिंता जताई।
पटेल ने बताया कि हमारी सरकार ने नियमित रूप से मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों में सीटें बढ़ाई हैं। बहरहाल, गुजरात में कुछ ही डॉक्टर बचे हैं। अधिकतर डॉक्टर या तो अपनी प्रैक्टिस कर रहे हैं या विदेश में बस गए हैं और इस तरह के असंतुलन का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।