शरद पवार ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का एलान कर सबको चौंका दिया। ऐसा लगता है कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले को इसका अंदाज पहले से था। तभी तो उन्होंने एक हफ्ते पहले ही कह दिया था कि आने वाले पखवाड़े में दो बड़े सियासी धमाके होंगे। दरअसल उस दौरान अजित पवार की पार्टी से बगावत कर भाजपा के साथ जाने की अटकलें गरम थी। अटकलों के पीछे शिवसेना की टूट को लेकर आने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कारण बताया जा रहा था।
राजनीतिक उलटफेर की आशंका में कई दल सक्रिय
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित कर रखा है। अभी तक तारीख भी तय नहीं की है कि फैसला किस दिन आएगा। पर सुनवाई के दौरान हुई टीका टिप्पणियों के आधार पर कानूनी जानकार अपने-अपने हिसाब से अदालती फैसले को लेकर अनुमान जता रहे हैं। एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक शिवसेना विधायकों की सदस्यता जाने की भी आशंका जताई जा रही है। इसलिए अटकल तेज थी कि देवेंद्र फडणवीस एनसीपी के अजित पवार समर्थक विधायकों की मदद से नई सरकार बना सकते हैं।
पवार ने भी अपने एक इंटरव्यू में दो बातें कहकर विपक्ष को अचरज में डाल दिया था। एक यह कि कोई गारंटी नहीं कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक महाराष्ट्र विकास अघाड़ी बना रहेगा। दूसरा धमाका उन्होंने अडाणी मामले की जेपीसी जांच की मांग से असहमति जताकर किया था। एनसीपी में अभी तक न तो यह तय है कि शरद पवार अध्यक्ष बने रहेंगे और न ही यह कि हटेंगे तो उत्तराधिकारी कौन होगा।
पवार ने बेशक अगला चुनाव नहीं लड़ने का भी एलान किया है, पर उनकी सियासत को चार दशक से भी ज्यादा समय से देख और समझ रहे लोग इस्तीफे को उनका सोचा-समझा सियासी पैंतरा बता रहे हैं। यह कि अंतत: मराठा क्षत्रप की हसरत दिल्ली का ताज पहनने की है। अगले लोकसभा चुनाव में 1989 और 1996 जैसे हालात हुए तो पवार की हसरत परवान चढ़ भी सकती है।
सड़क पर किरकिरी
उत्तराखंड में वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा सार्वजनिक रूप से सड़क पर एक नौजवान की पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो खलबली मच गई। अग्रवाल संघी अतीत वाले पुराने भाजपाई ठहरे। ऋषिकेश से लगातार चौथी बार विधायक हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत जब 2017 में मुख्यमंत्री बने थे तो अग्रवाल विधानसभा अध्यक्ष हो गए थे। पिछले चुनाव के बाद पुष्कर सिंह धामी ने अपने मंत्रिमंडल में उन्हें वित्त और शहरी विकास जैसे कई महकमों का मंत्री बनाया। वीडियो वायरल हुआ तो धामी को भी घटना की जानकारी हुई। जो उस दिन दिल्ली में थे। वीडियो वायरल होने के बाद पिटाई के शिकार युवक सुरेंद्र सिंह नेगी ने मंत्री, उनके अंगरक्षक और पीआरओ के खिलाफ बेवजह मारपीट करने की पुलिस से शिकायत की। लेकिन उनसे पहले तो मंत्री के अंगरक्षक ने युवक और उसके साथी के खिलाफ मंत्री से बदसलूकी करने और कई दूसरे आरोपों के साथ शिकायत करा दी थी।
कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना प्रदर्शन किया तो मुख्यमंत्री को बयान देना पड़ा कि मामले की निष्पक्ष जांच होगी। युवक का कहना था कि वह यातायात जाम में फंसा था। वहीं मंत्री की गाड़ी भी जा रही थी। मंत्री ने गाड़ी से उतरकर उसे थप्पड़ लगाए। फिर उनके अंगरक्षक और पीआरओ ने भी पिटाई की। पुलिस आई तो उसे ही थाने ले गई। पर पूछताछ से यह युवक भी आरएसएस का ही कार्यकर्ता निकला। मंत्री ने अपने इस अमर्यादित आचरण के लिए सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त करने के बजाए युवक पर अनर्गल आरोप ही जड़ दिए। नेगी का नाता त्रिवेंद्र सिंह रावत से रहा है।
उत्तर प्रदेश में सवाल बसपा का
उत्तर प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 11 मई को होगा। भाजपा इस चुनाव को भी पूरी ताकत से लड़ रही है। संसाधनों और संगठन दोनों ही स्तर पर कोई दल उसके सामने टिकता नजर नहीं आ रहा। वैसे शहरी निकायों में भाजपा का प्रभाव जनसंघ के दौर से ही दूसरे दलों से ज्यादा रहा है। पिछली दफा मेरठ और अलीगढ़ में बसपा ने जीत दर्ज कर भाजपा को झटका दिया था। लेकिन, इस चुनाव में बसपा का वैसा कोई दमखम नजर नहीं आ रहा। जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव प्रचार में जुटे हैं वहीं मायावती नदारद हैं। वे जातीय समीकरणों के सहारे हैं। तभी तो उन्होंने 17 महानगरों में 11 जगह मुसलमान उम्मीदवार उतारे हैं। वे लाख कहेंं कि मुसलमान और दलित गठजोड़ के जरिए यह सफलता का फार्मूला है, पर अखिलेश यादव हर जगह मतदाताओं को यह आगाह करना नहीं भूलते कि बसपा ठहरी भाजपा की बी टीम। मायावती की भाजपा से साठगांठ है और उनका मकसद अपनी जीत न होकर सपा उम्मीदवारों को हरवाना और भाजपा को जिताना भर है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)