सिलसिला-ए-संकट
लगता है कि कांग्रेस में आलाकमान का अब क्षत्रपों को कोई खौफ नहीं रह गया है। पंजाब में पार्टी का अंदरूनी संकट अभी पूरी तरह टला भी नहीं कि छत्तीसगढ़ में असंतोष और गुटबाजी अचानक सतह पर आ गई है। शुरुआत हालांकि पिछले साल मध्य प्रदेश से हुई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया को आलाकमान ने समय रहते तवज्जो दी होती और कमलनाथ को बाध्य किया होता कि वे सबको साथ लेकर चलें तो सरकार क्यों गिरती? राजस्थान में भी यही अध्याय दोहराया था सचिन पायलट और अशोक गहलोत की मूंछ की लड़ाई ने। गहलोत लाख डींग मारते रहें कि वे सियासत से पहले जादूगरी करते थे और अपनी सियासी जादूगरी से उन्होंने सचिन पायलट को चारों खाने चित कर दिया। पर हकीकत यह है कि भाजपा के अंतरविरोध व वसुंधरा राजे के रुख से बची है गहलोत सरकार।

पंजाब में चूंकि भाजपा के लिए खेल करने लायक मैदान था नहीं सो वहां प्रभारी महासचिव हरीश रावत ने गुटबाजी को कम से कम पार्टी के विभाजन की स्थिति तक पहुंचने से बचा लिया। लेकिन छत्तीसगढ़ में संकट बरकरार है। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने आलाकमान को उसका वादा याद दिलाकर उसकी नींद उड़ा दी है। सूबे में 2018 में कांग्रेस ने 90 में से 68 सीटें जीतकर भाजपा की हवा निकाल दी थी। पर मुख्यमंत्री की दौड़ में चार नेता थे। मुख्य दावेदारी सिंहदेव और भूपेश बघेल की थी। बकौल सिंहदेव आलाकमान ने तब उन्हें भरोसा दिया था कि ढाई साल भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे और ढाई साल उन्हें मौका मिलेगा। जून में हो जाना चाहिए था इस फार्मूले पर अमल। लेकिन आलाकमान अब पिछड़े तबके के बघेल को छेड़ने से बच रहा है। कभी दोनों की प्रगाढ़ दोस्ती की तुलना जय और वीरू की जोड़ी से की जाती थी।

दिल्ली में इसी मंगलवार को सिंहदेव और बघेल राहुल गांधी के दरबार में पेश हुए थे। प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया और महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल भी मौजूद थे। बैठक के बाद किसी ने कुछ नहीं कहा। जाहिर है, बीच का फार्मूला तलाश रहा है अब आलाकमान। यानी संकेत मिल रहे हैं कि सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री पद दिया जा सकता है और उनके समर्थक कुछ विधायकों को मंत्रिपद।

‘बाबा’ पर बवाल
हिमाचल के मंडी संसदीय हलके से भाजपा के पूर्व सांसद राम स्वरूप शर्मा की ओर से दिल्ली में अपने सरकारी आवास पर की गई आत्महत्या की घटना को लेकर लंबा समय हो गया है। लेकिन हिमाचल में आगामी उप-चुनावों को देखते हुए कांग्रेस ने इस मसले को भुनाने की रणनीति बना ली है। कांग्रेस सदन से लेकर सड़क तक लगातार इस मुद्दे पर राजनीति भी कर रही है और सांसद की ओर से की गई आत्महत्या के पीछे के कारणों को जानने के लिए सीबीआइ जांच की मांग उठा रही है। इससे जयराम सरकार, उनके मंत्री और भाजपा असहज हो गई है। इन्हें लगता है कि महरूम राम स्वरूप शर्मा भाजपा के नेता थे।

भाजपा को कोई तकलीफ नहीं है तो कांग्रेस को क्यों पीड़ा हो रही है। जयराम सरकार में वन मंत्री हैं राकेश पठानिया। पिछले दिनों वह कांगड़ा के फतेहपुर विधानसभा हलके में जनसभा में थे। वह वहां कांग्रेस पर निशाना साधते-साधते बोल पड़े कि कांग्रेस ने विधानसभा के मानसून सत्र के पहले ही दिन सदन से वाकआउट कर दिया। वाकआउट भी किया रामस्वरूप शर्मा के निधन पर। वह बोले कि क्या रामस्वरूप इनके ‘बाबा’ लगते थे। उनके इस तरह के बोल बोलने के बाद अब राजनीतिक फसाद हो गया है।

यहां से भाजपा के संभावित प्रत्याशी कृपाल परमार बोल रहे हैं कि मंत्री को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी पठानिया के इन बोलों से किनारा कर चुके हैं। कांगड़ा में अब इस मसले पर घमासान छिड़ा हुआ है और इधर मंडी में कांग्रेस के सहप्रभारी संजय दत चुपके से पूर्व भाजपा सांसद राम स्वरूप शर्मा के घर हो आए हैं और उनके परिजन को सांत्वना देकर आए हैं कि वह चिंता न करे कांग्रेस उनके साथ है।

सक्रिय कार्यकाल के तीन साल
उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने राज्यपाल के रूप में तीन साल पूरे कर लिए हैं। वे उत्तराखंड की दूसरी महिला राज्यपाल हैं। सूबे की पहली महिला राज्यपाल मार्गेट अल्वा थीं। बेबी रानी मौर्य उत्तराखंड की सबसे सक्रिय राज्यपाल मानी जाती हैं। उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कई फैसलों की फाइल बिना दस्तखत किए वापस लौटा दी थी तब से वे चर्चा में आई। कोरोना काल में बेबी रानी मौर्य ने सीधे जिलाधिकारियों से रिपोर्ट तलब की और राज्य के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिए कि जिन बच्चों के माता-पिता कोरोना के कारण नहीं रहे उन्हें विश्वविद्यालय मुफ्त शिक्षा दें।

कई सरकारी विश्वविद्यालयों ने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के निर्देश पर उत्तराखंड के दूरदराज के गांवों को गोद लिया और उनमें विकास कार्य करवाए। मौर्य ने कई महिला स्वयं सहायता समूह के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्र की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद की। अपने सरल स्वभाव और मिलनसार व्यवहार से बेबी रानी मौर्य ने लोकप्रियता बटोरी है। उनके राज्यपाल बनने से उत्तराखंड राजभवन के दरवाजे दलितों और महिलाओं तथा गरीबों के लिए खुले हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)