कांटों का ताज
कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन से भी भाजपा का संकट टला नहीं है। मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई बेशक लिंगायत वर्ग के हैं और बीएस येदियुरप्पा की पसंद के बताए जा रहे हैं तो भी उनके लिए कार्यकाल के बचे 19 महीने सरकार बेफिक्री से चलाना आसान नहीं लगता। विवाद एक के बाद एक उनका पीछा कर रहे हैं। बोम्मई न तो आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले हैं और न ही शुरू से भाजपाई। सियासी करियर की शुरुआत तो उन्होंने अपने पिता एसआर बोम्मई की पार्टी जनता दल से की थी। भाजपा में तो बाद में आए। इस नाते उनका नेतृत्व पार्टी के ज्यादातर पुराने नेताओं के गले नहीं उतर रहा। खींचतान के कारण ही मंत्रिमंडल के गठन में उन्हें समय लगा। आलाकमान की सहमति के बिना वे अपने मंत्रियों को विभाग भी आबंटित नहीं कर पाए। मंत्रियों का चयन तो खैर आलाकमान ने किया ही। लिहाजा जो मंत्री नहीं बन पाए, उनके मुंह फूले हैं। एमटीबी नागराज और एमपी रेणुकाचार्य इसी श्रेणी में हैं।

रेणुकाचार्य ने तो दिल्ली दरबार में ही धरना दे रखा है। नितिन कुमार कतील पार्टी के सूबेदार हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि असंतोष न तो सतह पर आया है और न पार्टी की एकता को कोई खतरा है। उधर बोम्मई ने अपने आका येदियुरप्पा को खुश करने के चक्कर में उन्हें कैबिनेट मंत्री वाली सारी सुविधाएं देने का फरमान जारी कर दिया। जो कई बार मुख्यमंत्री रहा हो वह भला कैबिनेट मंत्री की श्रेणी में आना क्यों पसंद करता। येदियुरप्पा ने तपाक से बयान दे दिया कि उन्हें नहीं चाहिए कैबिनेट मंत्री वाली सुविधाएं। उन्हें बस पूर्व मुख्यमंत्री वाली सुविधाएं मिलती रहें, यही काफी है।

बागी तेवर मनमाफिक विभाग नहीं मिलने पर आनंद सिंह ने भी दिखाए थे। उन्हें बोम्मई ने उनकी अपेक्षा पूरी करने के लिए आलाकमान से बात करने का आश्वासन देकर फिलहाल बगावत से रोक दिया है। आनंद सिंह ठहरे दलबदलू। जद (सेकु) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को गिराने की पहल उन्हीं की तरफ से हुई थी। जिन 17 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ येदुरप्पा की सरकार बनवाई थी, उनमें आनंद सिंह अग्रणी थे। कांग्रेस से पहले वे 2008 में भाजपा सरकार में भी मंत्री थे। एक बगावत को काबू करते हैं बोम्मई तो दूसरी बगावत सामने आ जाती है। मुदिगेरे के विधायक एमपी कुमार स्वामी ने तो अपने क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी कर डाला। बेचारे बोम्मई ने कहीं सचमुच कांटों का ताज तो नहीं पहन लिया।

ओहदे की आह
हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अनिल खाची को प्रदेश के मुख्य सचिव के पद से हटा कर सबको हैरत में डाल दिया था। इसके साथ ही उन्होंने अतिरिक्त मुख्य सचिव राम सुभग सिंह को मुख्य सचिव का ओहदा दे दिया। बताते है कि राम सुभग सिंह ने इसके लिए जयराम सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का खासतौर पर उनके कमरे में जाकर आभार भी जताया। महेंद्र सिंह व खाची में मंत्रिमंडल की एक बैठक में झड़प हो गई थी। इसके बाद से ही खाची को हटाने का माहौल बनाया जाने लगा था।

अब सबकी निगाहें इस बात पर है कि राम सुभग सिंह नौकरशाही में किसे तरजीह देते है। अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना खाची के करीबी हुआ करते हैं। वह पूर्व मुख्य सचिव व अब रेरा के मुखिया श्रीकांत बाल्दी के भी करीबी हुआ करते थे। जिस दिन खाची ने प्रदेश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त का प्रभार संभाला उस दिन प्रबोध सक्सेना और बाल्दी दोनों ही खाची के पास काफी देर तक गपशप करते रहे। अंदेशा है कि राम सुभग सिंह प्रबोध सक्सेना से कुछ अहम ओहदे वापस लेकर उन्हें अपने करीबी नौकरशाह को देने की कोशिश करेंगे। उनकी पत्नी निशाा सिंह अब वरिष्ठता में उनके बाद नंबर दो पर है। उन्हें जयराम ने अब तक ज्यादा महत्व के महकमे नहीं दिए थे। बीच-बीच जरूर कुछ महकमे दिए थे। लेकिन अब तो पति ही मुख्य सचिव है तो उन्हें जरूर कुछ बड़े ओहदे मिलने की उम्मीद है।

विस्तार और चुप्पी अपार
पिछले दिनों हुए मंत्रिमंडल विस्तार में महिलाओं की मौजूदगी को लेकर राजनीतिक विश्लेषक उत्साहित दिखे थे। मंत्रिमंडल विस्तार में महिलाओं की संख्या बढ़ने के बाद लगा था कि महिला उत्पीड़न के मुद्दे पर स्त्री सांसदों की आवाज प्रखर होगी। लेकिन एक तरफ तो सांसद मीनाक्षी लेखी ने आते ही किसानों को मवाली बोल कर अपनी छवि खराब की तो संसद परिसर में हेमा मालिनी का व्यवहार चौंकाने वाला रहा। संसद की कार्यवाही से भाग लेकर निकलते वक्त जब पत्रकारों ने उनसे दिल्ली में दलित बच्ची के बलात्कार के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने सलाह दी कि इसके बारे में ओम बिरला जी से पूछें। महिला सांसद, जघन्य बलात्कार के मामलों की भी जानकारी नहीं रख रही हैं तो फिर क्या उम्मीद की जाए। यह तो पत्रकारों के पूछने पर दिया गया जवाब है, लेकिन मुश्किल यह है कि दिल्ली में हुई इस जघन्य वारदात के बाद महिला नेताओं के बीच चुप्पी पसरी रही। हां, सोशल मीडिया पर वो तस्वीर तैरी जिसमें स्वर्गीय सुषमा स्वराज निर्भया के परिजनों के साथ थीं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)