बीता साल कई लिहाज से विश्व राजनीति के लिए महत्त्वपूर्ण रहा। कोविड संकट से घिरी दुनिया ने राजनीतिक मंच पर कई उलटफेर और दांवपेंच देखे। यूं तो पूरे साल कोविड से उपजी चुनौतियों, चीन की विस्तारवादी नीति, जलवायु संकट से निपटने के लिए तेज होते प्रयास और फिर तालिबान के आतंकी साये में घिरे अफगानिस्तान पर विश्व राजनीति का ध्यान रहा। पर बीते साल ट्रंप के जाने और जो बाइडेन का अमेरिकी राष्ट्रपति पद संभालने की घटना कहीं ज्यादा बड़ी रही।
इस बात को लेकर कयास लगा जाते रहे कि वाम विचारधारा की ओर झुकाव रखने वाले बाइडेन अपने शासन में किन मुद्दों को प्रमुखता देंगे। आतंकवाद और चीन जैसे मुद्दों पर उनका क्या रुख रहेगा, अमेरिका के हर तरह से रहे सहयोगी भारत के साथ रिश्तों को लेकर वे गतिशीलता बनाए रखेंगे या फिर नीतियों को बदलेंगे?
कई विद्वानों का मानना रहा कि बाइडेन का शासन ओबामा कालीन शासन का विस्तार होगा, क्योंकि वे ओबामा की सरकार के दौरान उपराष्ट्रपति थे। किंतु कई विशेषज्ञों ने यह भी माना कि भले एक डेमोक्रेट होने के नाते बाइडेन ट्रंप से भिन्न हों, पर वे अमेरिका के रणनीतिक उद्देश्यों और प्राथमिकताओं को समझते हुए काम करेंगे।
राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद सीरिया को लेकर उन्होंने जिस तरह का कठोर रुख अपनाया था, उससे यह स्पष्ट हो गया था कि बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने राष्ट्र की नीतियों और उद्देश्यों को तरजीह देते हुए ही आगे बढ़ेंगे।
इस एक वर्ष में यह साफ दिखाई पड़ता है कि बाइडेन अमेरिका की विदेश नीति के निर्धारक तत्वों और उद्देश्यों को प्रमुखता दे रहे हैं। उन्होंने एक साल में न केवल जलवायु परिवर्तन की दिशा में हो रहे वैश्विक प्रयासों के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता को मजबूत किया है, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के मुद्दे पर भी उन्होंने कड़ा रुख अपनाया है। इस दिशा में भारत के साथ पहले से चले आ रहे संबंधों में भी सकारात्मक गतिशीलता दिखाई पड़ती है।
हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान के सामने घुटने टेकने और अमेरिकी फौज को बाहर निकाल लेने को लेकर बाइडेन की जम कर आलोचना भी हुई। लेकिन वहां चीन और पाकिस्तान की सीधी भूमिका को देखते हुए उनके इस फैसले को अमेरिका की मजबूरी माना जा सकता है।
अपने उपराष्ट्रपति काल में ओबामा शासनकाल के दौरान उन्होंने ‘आतंकवाद विरोधी प्लस’ नामक नीति बनाई थी, जो पारंपरिक सैन्य तैनाती के बजाय आक्रामक हवाई हमलों और विशेष अमेरिकी बलों के छोटे समूहों का उपयोग करते हुए आतंकवादियों के खात्मे पर केंद्रित थी। यह रणनीति पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, अफ्रीका और अन्य देशों में आतंकवादी समूहों के खिलाफ प्रमुखता से चलाए गए अभियानों में परिलक्षित हुई थी।
हालांकि बीते एक साल में राष्ट्रपति के रूप में बाइडेन के नेतृत्व में ऐसा सैन्य आक्रमण तो देखने को नहीं मिला, पर भविष्य में इसकी संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
आतंकवाद के मुद्दे पर बाइडेन सख्त नीति अपनाते हुए दिखते हैं। अमेरिका की आतंरिक सुरक्षा को अक्षुण्ण रखने और घरेलू आतंकवाद से निबटने के लिए उन्होंने 15 जून, 2021 को पहली राष्ट्रीय रणनीति जारी की थी, जो देश के भीतर आतंकवाद और हिंसा का जवाब देने के लिए उनके प्रयासों को दर्शाती है।
हाल में ऐसी खबरें भी पढ़ने को मिलीं कि बाइडेन का न्याय विभाग अमेरिका में सालों से मौजूद घरेलू आतंकवाद को विफल करने के लिए अपनी घरेलू आतंकवाद इकाई स्थापित कर रहा है। वहीं दूसरी ओर वे क्वाड, संयुक्त राष्ट्र और आकस जैसे बहुराष्ट्रीय रणनीतिक मंचों से वैश्विक आतंकवाद की लड़ाई के लिए स्पष्ट संदेश दे रहे हैं। भारत जैसे देशों के साथ इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने कई समझौतों और साझा अभ्यासों को अमली जामा पहनाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हुई वार्ता में दोनों नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध को लेकर खुल कर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी और कई समझौते किए थे। फिर ‘अमेरिका-इंडिया आतंकवाद विरोधी संयुक्त कार्य समूह’ की अठारहवीं बैठक और ‘अमेरिका-भारत संवाद’ का चौथा सत्र पिछले साल अक्तूबर में वाशिंगटन में आयोजित किया गया था।
अमेरिका और भारत दोनों ने ही व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के तहत एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में आतंकवाद विरोधी सहयोग की पुष्टि करते हुए, कानून प्रवर्तन, सूचनाएं साझा करने, तकनीक का आदान-प्रदान करने और आतंकवाद विरोधी चुनौतियों पर रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई थी।
बाइडेन ने भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ खड़े होने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी। दोनों पक्षों ने भारत में सीमा पार आतंकवाद और मुंबई हमले के अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई का आह्वान भी किया था। साथ ही, प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों जैसे अलकायदा, आइएस, दाएश, लश्कर-ए-तैयबा और जैश के खिलाफ ठोस कार्रवाई का भी संकल्प दोहराया था।
बाइडेन सशक्त साइबर सुरक्षा नीतियों के भी प्रवर्तक हैं। वे इसे अमेरिका और भारत दोनों के लिए जरूरी मानते हैं। इसीलिए दोनों देशों के बीच सिग्नल और इलेक्ट्रानिक खुफिया तंत्र विकसित करने को लेकर भी साझा काम शुरू हो गया है।
अमेरिका में पहले से ही ऐसा खुफिया निगरानी तंत्र विकसित कर लिया गया है जो अपने सरकारी अधिकारियों के साथ विदेशी संचार प्रणाली, रडार, और हथियार प्रणालियों से संबंधित जानकारी का पता लगा लेता है और उसे साझा भी करता है।
इसमें लगभग तेरह एजंसियां काम कर रही हैं जो खुफिया जानकारी एकत्र करती हैं और उनका विश्लेषण करती हैं। भारत में हालांकि खुफिया तंत्र के सुधारों के युग की शुरुआत होती दिख रही है। भारत और अमेरिका ने नवंबर 2019 में बेसिक एक्सचेंज एंड कोआपरेशन एग्रीमेंट (बेका) जैसे महत्त्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर कर तकनीक के माध्यम से आतंकवाद को चुनौती देने का संकल्प किया था।
बाइडेन भी इसे आगे ही ले जाते हुए नजर आते हैं। बाइडेन के नेतृव में अमेरिका भारत को संचार तकनीक, आधुनिक उपकरण और वास्तविक समय की खुफिया जानकारियां मुहैया कराएगा। दोनों देशों ने हाल में अरब सागर में हुए साझा मालाबार सैन्य अभ्यास से यह स्पष्ट भी कर दिया कि बाइडेन आतंकवाद के मुद्दे पर किसी तरह नरम पड़ने वाले नहीं।
बाइडेन के सामने अभी भी चुनौतियां कम नहीं हैं। अभी तो अमेरिका को कोरोना संकट से निकालना उनकी प्राथमिकता है। फिर, वैश्विक आतंकवाद का संकट पैदा करने वाले तालिबान, आइएस और अलकायदा जैसे जिहादी आतंकवादी संगठनों के अलावा पाकिस्तान और चीन जैसे देशों पर लगाम कसना भी जरूरी है।
बाइडेन इससे कैसे इनसे निबटते हैं, यह देखना होगा। इसके अलावा विभिन्न आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए तकनीक और संसाधनों के लिए आवश्यक पूंजी तथा आमजन का सहयोग भी बाइडेन के लिए महत्त्वपूर्ण दिखाई पड़ता है।
फिर भी आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध में इस एक वर्ष में उन्होंने बहुआयामी प्रयास किए हैं। वे एक ओर घरेलू आतंकवाद से अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए कदम उठा रहे हैं, तो दूसरी तरफ वैश्विक सुरक्षा के लिए भारत जैसे देशों के साथ सहयोग करने दिख रहे हैं।
बाइडेन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे आतंकवाद से लड़ने के लिए वैश्विक स्तर पर अन्य देशों का सहयोग करेंगे। ऐसे में यह कहना होगा कि बाइडेन के शासन में अमेरिका आतंकवाद की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाता रहेगा।
(लेखिका स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू में शिक्षक हैं)