एक सौ पचासवीं वर्षगांठ मनाता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का वंदे मातरम्! बंगाल का वंदे मातरम्… अखिल भारत का राष्ट्रगीत वंदे मातरम्! वर्षगांठ मनाने को लेकर संसद में प्रधानमंत्री का संबोधन… कि जिस गीत ने देश के आजादी के आंदोलन को ऊर्जा दी, प्रेरणा दी, उस वंदे मारतम् का गायन करना सदन का सौभाग्य। राष्ट्रगीत की सुदीर्घ यात्रा का बखान… इतिहास में किस-किस ने गाया वंदे मातरम्… इसने गाया, उसने गाया, देशभर ने गाया, दुनिया के देशों ने भी गाया, गांधी ने गाया, नेताजी सुभाष बोस ने गाया, नेहरू ने गाया, पटेल ने गाया, टैगोर ने गाया वंदे मातरम्..! स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश को एकजुट करने वाला वंदे मातरम्… अंग्रेजों को डराने वाला वंदे मातरम्… ‘जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी’ से जुड़ता वंदे मातरम्!

किसने गाया, किसने खारिज किया वंदे मातरम्! जिन्ना ने खारिज किया! तुष्टीकरण के लिए संशोधित किया गया वंदे मातरम्। इस तरह दो ‘बंदों’ का हुआ वंदेमातरम्..! इस पर संसद में शोर और उस शोर में भी ‘वंदे मातरम्-वंदे मातरम्’। यहां कोई पक्ष या प्रतिपक्ष नहीं। 2047 में विकसित भारत बनाने का अवसर। हजारों वर्षाें का भारत बोलता है वंदे मातरम् में। वीर का अभिमान हैं ये शब्द! पहले रहा ‘सप्त कोटि’ वाले बंगाल का वंदे मारतम्, फिर हुआ तीस कोटि का वंदे मातरम्, अब है 140 कोटि का वंदे मातरम्..! कुछ कहे कि सभी गाते वंदे मातरम्। एक कहे कि राष्ट्रगीत सबका गीत। ग्यारह घंटे तक वंदे मातरम् होता रहा। सत्ता पक्ष और विपक्ष का ‘वंदे मातरम्’। गृहमंत्री का वंदे मातरम् कि ‘राष्ट्रगान’ और ‘राष्ट्रगीत’ भारत माता की दो आखें हैं।
एक चर्चक बोले कि ये हिंदू गीत कैसे है… ये तो भारत का ‘राष्ट्रगीत’ है जो राष्ट्र को नमन करता, कराता है। इससे किसी को क्या एतराज हो सकता है? पहले भी कई मुसलिम नेताओं ने गाया है, तब हम क्यों न गाएं?

ऐसी ही एक बहस में सुनाई पड़ी एक एंकर की मजेदार तुकबंदी कि: ‘हम राष्ट्रभक्तों के लिए वंदे मातरम् ‘एनर्जी’ है, जबकि कुछ के लिए ‘एलर्जी’ है! बहुतों ने मांग की कि हम जिस वंदे मारतम् को गाते हैं, वह अधूरा है। उसे उसके पूरे मूल रूप में बहाल किया जाना चाहिए और संविधान में जरूरी संशोधन किए जाने चाहिए। एक चर्चक ने फरमाया कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का ‘आनंदमठ’ एक ‘हिंदू लेखन’ है जो ‘संन्यासी विद्रोह’ पर आधारित है… जो अपने मूल में मुसलिम शासकों की ज्यादतियों के खिलाफ था। बाद में वह अंग्रेजों के शासन की ज्यादतियों के खिलाफ सारे देश को एकजुट करने वाला बन गया। कइयों ने कहा कि यह गीत तो राष्ट्रगान से बेहतर नजर आता है। कुछ वक्ताओं ने वंदे मातरम् को भी चुनावी राजनीति में लपेट दिया कि सत्तापक्ष वंदे मारतम् की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ इसलिए मना रहा कि अगले वर्ष बंगाल का चुनाव है और बंगाली का वोट लेना है।

वंदे मातरम् पर अच्छे संबोधन प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री के रहे। इसी क्रम में एक बेहतरीन वक्तव्य भाजपा के रविशंकर का रहा और विपक्ष में बेहतरीन बोलने वालों में पहला नंबर प्रियंका गांधी का रहा, जबकि दूसरा गौरव गोगोई का रहा। इसके बाद की सबसे चर्चित कहानी ‘एसआइआर’ यानी मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर ‘सिरफुटौव्वल’ की रही। विपक्ष के नेता ने एक बार फिर संसद में ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया और चुनाव आयोग को लेकर धमकी दोहराई कि हम आए तो ऐसा कानून लाएंगे जो तुम्हारा हिसाब करेगा… हम छोड़ने वाले नहीं।

इसी बीच उत्तर प्रदेश में हो रही एसआइआर की इस खबर ने कइयों को झटका दिया कि उत्तर प्रदेश में दो करोड़ से अधिक इससे संबंधित फार्म लौट कर नहीं आए हैं। तब क्या उत्तर प्रदेश में दो करोड़ से अधिक मतदाता ‘अनुपस्थित’, फर्जी, मृत या प्रवासित हैं? वंदे मातरम् और एसआइआर को लेकर एक चैनल में सत्ता प्रवक्ता और एक विपक्षी प्रवक्ता के बीच ऐसी भिड़ंत हुई, जो देखते-देखते गाली-गलौज तक आ गई।

एक ओर ‘इंडिगो’ के एकाधिकार का ‘मनमानापन’और दूसरी ओर मंत्रालय और डीजीसीए के बीच एक अजानी चुप्पी। हजारों उड़ानें रद्द। हवाईअड्डों पर लावारिस छोड़ दिए गए तमाम यात्रियों की तकलीफें। गनीमत कि चैनलों के रिपोर्ताजों और आलोचना ने अधिकारियों पर कुछ असर डाला। आखिर मंत्री और डीजीसीए सबको सक्रिय होना पड़ा। फिर भी ‘एअरलाइन’ वालों ने अपने किराए कई-कई गुना बढ़ा दिए… और कहीं कोई विरोध नहीं।
चलते-चलते: अब तमिलनाडु में भी एक ‘बाबरी’ क्षण बनता दिखता है।

मदुरई में दो पहाड़ी। एक पहाड़ी पर दीप जले… दूसरी पर मजार। दूसरी पहाड़ी पर ‘दीपम उत्सव’ के लिए मजार वालों को कोई ‘आपत्ति नहीं’, लेकिन सरकार को एतराज। फिर अदालत और उसका फैसला कि दीप जले तो जले, लेकिन सत्ता को फिर एतराज। फिर अदालत, सत्ता, अदालत अ‍ैर ‘दीपम’ के पक्ष में फैसला देने वाले जज के खिलाफ एक सौ सात सांसदों का महाभियोग का प्रस्ताव!