संसद से सड़क तक… सड़क से चैनलों तक ‘तू-तू मैं-मैं’ है। एक गरजता है, तो दूसरा बरसता है। बहस के नाम पर ‘चुप रहो’ या ‘मुंह बंद रखो’ है… तो कहीं अपशब्द भी है। एक एंकर कहने लगती है कि इतने नामी प्रवक्ता और ऐसी भाषा…! ऐसे तो बहस नहीं कराई जा सकती! इसी बीच फिल्म ‘धुरंधर’ सुपर हिट हो जाती है और चर्चा में एक ‘नया वीरगाथा काल’ शुरू हो जाता है। ‘धुरंधर’ आधुनिक ‘पृथ्वीराज रासो’ की तरह है और फिल्मकार ‘चंदबरदाई’ की तरह। मगर इसका खलनायक पाक के कुख्यात ‘रहमान डकैत’ (अक्षय खन्ना) सारी चर्चा ले जाता है। एक पक्ष फिल्म के सुपर हिट होने का कारण उसका ‘घोर यथार्थवादी’ होना बताता है, तो दूसरा पक्ष उसके ‘पाक विरोधी’ राष्ट्रवादी एजंडे को कारण बताता है।

इसी बीच चैनलों में दक्षिण भारत के एक राज्य की सत्ताधारी पार्टी की ओर से हाई कोर्ट के एक जज द्वारा मदुरै की पहाड़ी के पुराने मंदिर पर दीप जलाने के पक्ष में दिए गए आदेश के खिलाफ उन पर ‘महाभियोग’ चलाने की कार्यवाही शुरू करने की खबर चैनलों में आकर एक बड़ी बहस बन जाती है। एक पक्ष कहता रहा कि ये तो जज की कलम पर ‘हुकुम’ चलाना है, न्यायपालिका को ‘डराना’ है… दूसरे कहते रहे कि जज का फैसला ‘सांप्रदायिकता’ को बढ़ावा देता है।

जवाब में एक चर्चक कहता है कि इससे साफ है कि बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने ही देश में पूजा करने की आजादी नहीं है। जबकि पास की दरगाह वालों को पूजा पर कोई आपत्ति नहीं है। समूचा विपक्ष महाभियोग का हामी है, जबकि संसद में उसका बहुमत नहीं है। ‘महाभियोग’ के जवाब में सत्तावन जजों ने ‘महाभियोग’ को न्यायाधीशों को डराने वाला और जनतंत्र विरोधी बताया।

वंदे मातरम के डेढ़ सौ साल, गाया गया, रोका गया, बदला गया – संसद के शोर में राष्ट्र की आवाज

इसी बीच भाजपा ने पैंतालीस वर्ष के पंकज सिंह को अपना ‘राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष’ चुनकर विपक्ष को चौंका दिया। इतना युवा अध्यक्ष किसी दल के पास नहीं दिखता। एक प्रवक्ता ने कहा कि यह भाजपा का युवाओं को आमंत्रण है। साफ है, सत्ता दल जल्द पिंड छोड़ने वाला नहीं! एक दिन एक बड़े विपक्षी दल की ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ रैली में नेताओं के वक्तव्यों की अपेक्षा कुछ कार्यकताओं के ‘वोट चोर गद्दी छोड़… आज नहीं तो कल छोड़’… नारों ने चैनलों की बहसों में बड़ी जगह बनाई।

सत्ता प्रवक्ता कहे कि ये देश के प्रधानमंत्री का अपमान है। नेता माफी मांगें! यह ‘मुहब्बत की दुकान’ नहीं, हिंसा को उकसाना है। अराजकता को निमंत्रण है। एक चर्चक कहिन कि यह विपक्ष का ‘सेल्फ गोल’ है। जवाब में विपक्षी कहे कि ‘जर्सी गाय’ किसने कहा… ये किसने कहा… वो किसने कहा… पहले अपने गिरेबां में झाकों, फिर बात करो..!

हार, हंगामा और हड़बड़ाया विपक्ष, ‘इंडिया’ गठबंधन की राजनीति नाश्ते से जिहाद तक

इसी बीच, सिडनी में दो आतंकियों ने ‘हनुक्का’ उत्सव के दौरान गोलियां बरसाकर पंद्रह यहूदियों को मौत के घाट उतारने की खबर को चैनल-चर्चा में ला दिया। एक एंकर ने कहा कि यह आस्ट्रेलिया का ‘जागो आस्ट्रेलिया जागो’ का आह्वान है… कब तक ऐसों को ‘भटके लोग’ कहोगे… इस तरह कब तक बचाते रहोगे… इसकी आलोचना क्यों नहीं करते। एक इस्लामिक विद्वान ने कहा कि यह निंदनीय है..। सिडनी आतंकवादी हमले पर एक अन्य चर्चा में एक मुसलिम विद्वान ने कहा कि अगर यहां का हिंदू ‘सेकुलर’ न होता, तो हम जिंदा नहीं रह सकते थे। ऐसे में जो कोई अतिवादी बातें करते हैं, वे वातावरण बिगाड़ते हैं।

कोलकाता के एक स्टेडियम में ‘फुटबाल के भगवान’ मेस्सी के दर्शन के लिए उनके प्रशंसकों में ऐसी होड़ मची कि सारा स्टेडियम दर्शनार्थियों की तोड़फोड़ का शिकार हुआ। लोग घायल हुए। चैनलों पर खेल विशेषज्ञों ने आयोजकों को धिक्कारा। मेस्सी का आना, न आना बराबर हुआ। मेस्सी कभी अतिमहत्त्वपूर्ण लोगों के घेरे से बाहर न निकल सके, न ही फुटबाल खेल-खिला सके।

फिर एक दिन एक राज्य के विपक्षी नेता ने बोल दिया कि सेना को किसी और काम में लगाओ… और इसके फलस्वरूप वे दो दिन चर्चा में छाए रहे। फिर ‘राष्ट्रवादी’ चैनलों ने दिल्ली के प्रदूषण को लेकर दिल्ली और केंद्र सरकार को एक साथ निशाने पर लिया, तो कई ‘सत्ता प्रवक्ता’ अचानक हतप्रभ से रह गए और तब समझ में आया कि चैनलों की बंदूकें किसी वक्त सत्ता की ओर भी मुड़ सकती हैं।

एक दिन नीतीश कुमार ने नियुक्ति पत्र देते हुए एक मुसलिम युवती के हिजाब को खींचकर निश्चय ही निंदनीय हरकत की। पक्षधर उनकी इस हरकत का बचाव करते रहे और स्त्रीवादियों की ओर से कठघरे में खड़े किए जाते रहे। अपने सुशासन बाबू कहीं कुछ हिले हुए हैं क्या? और इसी संसद सत्र में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘मनरेगा’ का नाम बदलकर ‘विकसित भारत- जी राम जी’ करके और संसद में पास कराके सबसे ‘जी राम जी’ कहलवा दिया। सरकार ने ‘जी राम जी’ का ऐसा घेरा बनाया कि आप आलोचना करें तो ‘जी राम जी’ बोलें और न करें तो भी ‘जी राम जी’ बोलें!