भारत के संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में संशोधन करने की संवैधानिक शक्ति प्रदान करता है। अनुच्छेद 368 का उप-अनुच्छेद (2) अन्य बातों के साथ इस प्रकार है, (2) संविधान में संशोधन की प्रक्रिया केवल विधेयक प्रस्तुत करके ही शुरू की जा सकती है… और जब विधेयक प्रत्येक सदन में उसकी कुल सदस्यता के बहुमत से तथा उस सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तो फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जो विधेयक पर अपनी सहमति देंगे और उसके बाद संविधान संशोधन मान्य हो जाएगा।
राजग के पास किसी भी सदन में संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है। लोकसभा में राजग के सदस्यों की संख्या 293 (543 सदस्यों में से) और राज्यसभा में 133 (245 सदस्यों में से) है। यदि दोनों सदनों में सभी सदस्य उपस्थित हों और मतदान करें, तो भी यह संख्या दो-तिहाई के जादुई आंकड़े से कम है।
सभी विपक्षी दल राजग के विरोध में नहीं हैं
विपक्षी दलों के कुल मिलाकर लोकसभा में 250 और राज्यसभा में 112 सदस्य हैं। यदि सांसदों ने लोकसभा में 182 और राज्यसभा में 82 वोट विधेयक के खिलाफ डाले, तो वह पारित नहीं होगा। लेकिन, विडंबना यह है कि सभी विपक्षी दल राजग के विरोध में नहीं हैं! वाईएसआरसीपी, बीजद, बीआरएस और बसपा तथा कुछ छोटे दलों का रुख राजग सरकार के पक्ष में है। तृणमूल कांग्रेस और आप राजग के विरोध में हैं, लेकिन वे ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ खड़े रहेंगे या नहीं, यह मुद्दे पर निर्भर करता है।
एक हताश दांव
इस स्थिति में राजग सरकार ने दांव खेला है। यह संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक, 2025 है। इस विधेयक के पेश होने के तुरंत बाद, सरकार ने इसे विचारार्थ संयुक्त प्रवर समिति को भेज दिया। ऊपर से देखने पर यह एक साधारण विधेयक है, जिसका सीधा उद्देश्य है: किसी ऐसे मंत्री (प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित) को हटाना, जो किसी गंभीर आपराधिक आरोप में गिरफ्तार हो और जिसके लिए उन्हें पांच साल या उससे अधिक की कैद हो सकती है तथा जो तीस दिनों तक जेल में रहा हो। इन तीस दिनों में निश्चित रूप से जांच पूरी नहीं होगी और न ही कोई आरोपपत्र, न कोई आरोप, न कोई मुकदमा और न ही कोई दोषसिद्धि होगी। फिर भी, इकतीसवें दिन संबंधित मंत्री को ‘अपराधी’ बताकर पद से हटा दिया जाएगा।
भाजपा इस विधेयक को संवैधानिक और राजनीतिक नैतिकता का प्रतीक बताकर प्रचारित कर रही है। उसका तर्क है: क्या किसी ‘भ्रष्ट’ मंत्री को हटाने से ज्यादा बड़ा कोई लक्ष्य हो सकता है? क्या कोई मंत्री (या मुख्यमंत्री) जेल से शासन कर सकता है? जो लोग इस विधेयक पर ‘हां’ कहते हैं, वे सच्चे देशभक्त और राष्ट्रवादी हैं; जो ‘न’ कहते हैं, वे राष्ट्र-विरोधी, शहरी नक्सली या पाकिस्तानी एजंट हैं।
इसके विपरीत राजग सरकार के कार्यकाल में आज आपराधिक कानून कैसे काम करता है, इसका आम अनुभव भयावह है। वर्तमान में, – व्यावहारिक रूप से सभी कानूनों को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है- यहां तक कि जीएसटी कानून को भी;
- कोई भी पुलिस अधिकारी (कांस्टेबल सहित) किसी भी व्यक्ति को वारंट के साथ या उसके बिना गिरफ्तार कर सकता है, अगर उसके खिलाफ यह उचित संदेह हो कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है;
- न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर के इस कथन के बावजूद कि ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद है’, निचली अदालतें जमानत देने से अक्सर परहेज करती हैं;
- उच्च न्यायालयों में पहली सुनवाई में जमानत नहीं मिल पाती है और इससे अभियोजन पक्ष को किसी न किसी बहाने मामले को खींचने का मौका मिल जाता है, ऐसे में साठ से नब्बे दिनों के बाद ही जमानत मिल सकती है;
- इस दयनीय स्थिति के परिणामस्वरूप, हर दिन सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए बड़ी संख्या में आवेदन आते हैं और शीर्ष अदालत आजादी का दावा करने के लिए पहला सहारा बन गई है;
- विधेयक में प्रधानमंत्री को शामिल करना हास्यास्पद है: कोई भी पुलिस अधिकारी प्रधानमंत्री को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं करेगा।
अडिग रहें
‘इंडिया’ गठबंधन और तृणमूल कांग्रेस आसानी से संख्या बल जुटाकर इस विधेयक को विफल कर सकते हैं। हालांकि, राजग सरकार को भरोसा है कि वह विधेयक को पारित कराने का कोई रास्ता निकाल लेगी। हो सकता है कि उसके पास दोनों सदनों में कुछ विपक्षी दलों या सांसदों को अपने पक्ष में करने की कोई युक्ति हो। या हो सकता है कि उसके पास कुछ विपक्षी सांसदों को ‘गायब’ करने और विधेयक को पारित कराने में खुद को सक्षम बनाने की कोई धूर्त योजना हो। या फिर उसके पास कोई ऐसी रणनीति हो, जो मेरी समझ से परे है।
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने संघर्ष का आगाज कर दिया है और इसे जोर-शोर से प्रचारित किया गया है। प्रवर समिति इस मुद्दे को (एक राष्ट्र-एक चुनाव पर जेपीसी की तरह) बिहार (2025) तथा असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल (2026) में राज्य विधानसभाओं के चुनावों तक जीवित रख सकती है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने (22 अगस्त, 2025 को प्रकाशित) अपनी रपट में बताया है कि वर्ष 2014 से विपक्षी दलों के बारह मंत्रियों को बिना जमानत के हिरासत में रखा गया, और कई को महीनों तक। एक अन्य रपट के अनुसार, 2014 के बाद से गंभीर आरोपों का सामना कर रहे पच्चीस नेता भाजपा में शामिल हुए हैं, और उनमें से 23 को आरोपों से मुक्त कर दिया गया है! जहां तक मुझे याद है, वर्ष 2014 के बाद से भाजपा के किसी भी मंत्री को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो भारत भी बेलारूस, बांग्लादेश, कंबोडिया, कैमरून, कांगो(डीआरसी), म्यांमार, निकारागुआ, पाकिस्तान, रूस, रवांडा, युगांडा, वेनेजुएला, जाम्बिया और जिम्बाब्वे की कतार में शामिल हो जाएगा, जो अक्सर विपक्षी नेताओं को जेल में डाल देते हैं। यदि इस विधेयक का विरोध करने वाले राजनीतिक दल अडिग रहते हैं, तो संविधान (130वां संशोधन) विधेयक विफल हो जाएगा। जब यह विधेयक पुन: पेश किया जाएगा, तो आते ही बेजान हो जाएगा।