दिवाली आई तो अयोध्या ने फिर छब्बीस लाख से अधिक तेल के दीपक एक साथ जला कर पिछले वर्ष का अपना ही कीर्तिमान तोड़ा, जिसे गिनीज बुक वालों ने ‘नए विश्व रिकार्ड’ के रूप में जोड़ा। इसके साथ ही एक चैनल ने खबर दी कि पिछले अठारह-उन्नीस महीने में श्री रामलला के मंदिर में दर्शन करने के लिए कोई अठारह करोड़ श्रद्धालु आए। इसकी तुलना में ताजमहल देखने वालों की संख्या इस संख्या से काफी कम रही और ‘वेटिकन सिटी’ आने वालों की संख्या और भी कम रही। एक बार फिर अपने हिंदी चैनल दिवाली संस्कृति में रमे दिखे और अदालत के आदेश के बाद दिल्ली में दिवाली की रात इतने पटाखे चलाए गए कि अगले दिन का प्रदूषण का स्तर भी रिकार्ड तोड़ गया।
फिर भी चैनलों में ‘बिहार का चुनाव’ छाया रहा। दो-दो ‘गठबंधन’। दोनों के ‘सहयोगी दल’ मांगें अपने-अपने हिस्से की सीटें। एक ‘गठबंधन’ का एक सहयोगी मांगे सत्तर-अस्सी सीटें, तो दूजा मांगे चालीस सीट के साथ उपयुक्त उपमुख्यमंत्री का पद। तीसरा मांगे बीस ‘सीटें’ तो चौथा मांगे दस सीट। किसी तरह लेन-देन हुआ, फिर भी तेरह सीट पर। फिर दो छोड़ ग्यारह सीट पर ‘दोस्ताना संघर्ष’ तय रही। एक दोस्ताना योद्धा कहे कि ऐसा तो होता ही रहता है, बाद में सब ठीक हो जाता है। दूसरे ‘गैरदोस्ताना’ भाई कहे कि ‘दोस्ताना लड़ाई से क्या मतलब? अगर ‘दोस्ताना’ है तो ‘टकराव’ कैसा? अगर ‘लड़ाई’ है तो, ‘दोस्ताना’ कैसे?
राजनीति में सब नाराज, मीडिया में सब उत्साहित — बिहार से दिल्ली तक ‘ठीक-ठाक’ गठबंधन की सियासी कहानी
दूसरे गठबंधन का भी यही हाल। दो दलों ने पहले लिया अपना-अपना हिस्सा। एक ने ली एक सौ एक सीट तो दूसरे ने ली एक सौ सीट। तीसरे ने मांगी चालीस। लंबी खींचतान के बाद उसे मिलीं उनतीस सीट। फिर दो दलों ने मांगी, दस-दस सीट, लेकिन दी गई छह-छह सीट। शुरू में कुछ ने किया ‘रूठ मटक्का’। अभी पटना अभी दिल्ली, लेकिन अंत में जैसे ही ‘बड़े भाई जी’ ने चुपचाप जो कह दिया, उससे ही सब सहमत कि हम नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ने और जीतने जा रहे हैं!
इस बीच एक गठबंधन की महिला पटना आकर रोई-धोई कि हम पंद्रह साल से उनके लिए काम करते रहे। वे कहे कि टिकट देंगे, लेकिन नहीं दिए। यह भी कहती जाती कि कोई बात नहीं, हम नाराज हैं, लेकिन काम उन्हीं का करते रहेंगे। इसी तरह, एक दिन पटना की राजनीतिक सड़क पर एक नेता दिखा। पहले उसने अपना कुर्ता फाड़ा, फिर रोते हुए सड़क पर लोटता रहा। यह बिहार का चुनाव है!
एक दिन महागठबंधन के नेताजी उवाचे कि वे महिलाओं को दस हजार रुपए दे रहे हैं… हम तीस हजार रुपए महीने देंगे। एक राजग प्रवक्ता ने कहा कि तीन लाख करोड़ का कुल बजट और ये सब देने को चाहिए बारह लाख करोड़। तो वे कहां से लाएंगे? एक ‘राष्ट्रवादी’ एंकर ‘मुफ्त की रेवड़ी संस्कृति’ पर इतना नाराज दिखे कि पूरे समय बहस करते रहे कि क्या ‘मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन’ की संस्कृति को देश की अर्थव्यवस्था झेल सकती है?
एक बहस में एक एंकर ने कहा कि यह खुली रिश्वतखोरी है। खुली ‘वोट खरीदी’ है… पैसे दो वोट लो’ हो रहा है। इस मामले में दोनों ‘गठबंधन’ एक से हैं। देने वाले कहते रहे कि यह ‘महिला सशक्तीकरण’ का मामला है। एक चैनल पर एक संवाददाता जरूर यह कहती दिखी कि आप चाहे कुछ कहें, गरीब तबकों की कुछ गरीबी इसी तरह से दूर हो जाती है। इसमें गलत क्या है..!
बिहार के चुनावों ने दोनों गठबंधनों के आगे एक सवाल और उछाला और वह यह था कि आपके गठबंधन का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है? राजग प्रवक्ता प्रमुदितमना ने कहा कि ‘हमारे पास नीतीशे कुमार है, जिनसे बिहार में बहार है… आपका चेहरा कौन है?’ फिर कुछ दिन बाद महागठबंधन वाले कहे कि हमारा मुख्यमंत्री चेहरा है ‘ये’ और ये ‘उपमुख्यमंत्री’। अब बताइए आपका चेहरा कौन? एक एंकर ‘नीतीशवादियों’ को कुरेदता रहा कि उन्होंने तो अपने मुख्यमंत्री का चेहरा बता दिया। अब आप बताएं कि आपका चेहरा क्या नीतीश कुमार ही हैं? जवाब में ‘नीतीशवादी’ प्रवक्ता देर तक यही कहते रहे हैं कि हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं। एंकर बार-बार पूछता रहा और जवाब देने वाले वही जुमला दुहराते रहे कि हम नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक दिन ‘हलालवाद’ बोलकर कई चैनलों को बहसों में व्यस्त कर दिया। कुछ लोगों ने कहा कि चुनाव के इन दिनों में यह अल्पसंख्यकों की संस्कृति को निशाना बनाना है। बिहार में एक तीसरा मोर्चा भी है, जिसके नायक कई बार कह चुके हैं कि इस बार बिहार की राजनीति बदल जानी है। यह ‘प्रयोगवादी राजनीति’ जरा हट कर है!
