देश को अगर कोई राष्ट्रीय रजिस्टर चाहिए तो वह राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय बेरोजगारी रजिस्टर है। अगर सरकार इस प्रस्ताव को मान लेती है तो देश का हजारों करोड़ रुपए का खर्चा बचेगा, करोड़ों लोग भय और आशंका से मुक्त हो जाएंगे और देश बेरोजगारी की समस्या को सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाएगा।

हालांकि प्रधानमंत्री ने दिल्ली के अपने भाषण में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की योजना से पांव खींचने के संकेत दिए हैं, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर यह नहीं कहा कि सरकार आगे इस योजना पर अमल नहीं करेगी। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बारे में बोलते हुए असत्य का सहारा लिया, कहा कि इस पर तो चर्चा भी नहीं हुई है। सच यह है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की चर्चा एक नहीं अनेकों बार आधिकारिक रूप से हो चुकी है। इसकी घोषणा पिछले गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की थी। बीजेपी ने इसे अपने 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में शामिल किया। कैबिनेट द्वारा पारित राष्ट्रपति के अभिभाषण में बाकायदा इस योजना को लागू करने की घोषणा हुई है।

वर्तमान गृहमंत्री कई बार संसद समेत तमाम मंचों पर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की योजना को दोहरा चुके हैं, सन 2024 तक इस रजिस्टर को पूरा करने का आश्वासन भी दे चुके हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा मासूमियत दिखाना, मानो उन्हीं इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था, यह लोगों को आश्वस्त करने की बजाय उनकी आशंकाओं को और बढ़ाएगा।

नागरिकता रजिस्टर के पक्षधर यह कहते हैं कि किसी भी देश के पास अपने सभी नागरिकों की एक प्रमाणित सूची होनी चाहिए। सही बात है। देश के सभी नागरिकों की संपूर्ण और प्रमाणिक सूची बनाने मैं कोई एतराज नहीं होना चाहिए। इससे कई फायदे होंगे, कई योजनाओं को लागू करने में मदद मिलेगी।

सवाल यह है कि ऐसी सूची कैसे तैयार की जाए? क्या इसके लिए 130 करोड़ से अधिक भारतीयों की नए सिरे से गिनती की जाए? क्या भारत में रहने वाले हर व्यक्ति पर यह जिम्मेवारी डाली जाए कि वह इस सूची में शामिल होने के लिए अपनी नागरिकता का सबूत दे? विवाद इन दो सवालों पर है।

अगर सरकार की नियत देश के सभी नागरिकों की एक प्रामाणिक सूची बनाने की है तो नए सिरे से शुरुआत करने की कोई जरूरत नहीं है। पूरे देश में वोटर लिस्ट बनी हुई है। अगर बच्चों का नाम भी जोड़ना है तो राशन कार्ड की मदद ली जा सकती है। इसके अलावा अब अधिकांश हिस्सों में आधार कार्ड उपलब्ध है। इस सब के अलावा 2021 में होने वाली जनगणना भी है। इन सब सूचियों का कंप्यूटर से मिलान कर नागरिकता का रजिस्टर बन सकता है। इसके लिए करोड़ों लोगों को परेशान करने की कोई जरूरत नहीं है। इस सूची में जिन नामों पर कोई आपत्ति हो या शक हो सिर्फ उन्हीं लोगों से प्रमाण पत्र मांगे जा सकते हैं। करोड़ों गरीब लोगों के सर पर नागरिकता रजिस्टर की तलवार लटकाने की कोई जरूरत नहीं है।

देश को जिस रजिस्टर की सख्त जरूरत है वह है बेरोजगारी का रजिस्टर। बेरोजगारी के आंकड़े विश्वसनीय तरीके से इकट्ठे करने वाली संस्था सेंटर फॉर द मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी का अनुमान है कि इस समय देश में बेरोजगारी की दर 7.6% है। ये पंद्रह साल से ऊपर की उम्र के वो लोग हैं जो काम करना चाहते हैं और जो रोजगार ढूंढ रहे हैं लेकिन जिन्हें रोजगार नहीं मिल रहा। इस हिसाब से देश के 3.26 करोड लोग बेरोजगार हैं।

हैरानी की बात यह है कि इन बेरोजगारों की कोई सूची किसी भी सरकार के पास नहीं है। एक जमाने में सरकार ने एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज बनाए थे लेकिन वह सब ठप पड़े हैं। यूं भी एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज में सिर्फ उन्हीं का नाम दर्ज होता है जो जाकर वहां अपना नाम दर्ज करवाएं। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे 5 साल में बेरोजगारों का एक सर्वेक्षण करता है लेकिन देशभर में 1% से भी कम लोगों का सैंपल लिया जाता है। आज तक देश में सभी बेरोजगारों की कोई एक सूची तैयार ही नहीं हुई है।

अगर सरकार चाहे तो 2021 के जनगणना के साथ-साथ बेरोजगारों का रजिस्टर भी बनाया जा सकता है। जनगणना में परिवार के हर व्यक्ति की आयु शिक्षा और कामकाज के बारे में जानकारी ली जाती है । उसके साथ साथ इस बार यह भी पूछा जा सकता है कि क्या वह व्यक्ति काम करना चाहता है? क्या उसने अपने लिए कामकाज ढूंढने की कोशिश की है? क्या उसके बावजूद भी वह पिछले 1 महीने में बेरोजगार रहा है? बस इतने सवाल पूछने भर से देश के हर बेरोजगार की सूची बनाने का काम शुरू हो जाएगा। राष्ट्रीय बेरोजगार रजिस्टर का मतलब सिर्फ बेरोजगारों की सूची नहीं होगा। इसमें बेरोजगारी की किस्म की देखी जाएगी। कोई व्यक्ति पूरी तरह बेरोजगार है या आंशिक रूप से बेरोजगार? साथ में यह भी दर्ज होगा कि वह किस प्रकार का रोजगार कर सकता है? उसे कितनी शिक्षा या कौन सा हुनर हासिल है? यह सूचना हासिल करने से सरकार को बेरोजगारों के लिए नीति बनाने में मदद मिलेगी। लेकिन यह बेरोजगारी का रजिस्टर कवि पूरा हो पाएगा अगर उसे सरकार इसी रोजगार के अधिकार से जोड़ें। जिन लोगों का नाम इस रजिस्टर पर है और जिन्हें एक खास अवधि में सरकार रोजगार नहीं दिला पाती उनके लिए किसी तरह की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

यह काम आसान नहीं होगा। लेकिन नागरिकता का रजिस्टर बनाने और हर व्यक्ति की नागरिकता के सबूत जुटाने से आसान होगा। यह रजिस्टर नागरिकों में आशंका की बजाय आशा का संचार करेगा। देश को अतीत में ले जाने की बजाय भविष्य की ओर ले जाएगा। सवाल यह है कि क्या यह सरकार ऐसे किसी भविष्य मुखी कदम का संकल्प रखती है? या कि अतीत के झगड़ों में उलझा कर जनता की आंख में धूल झोंकना चाहती है?

(योगेंद्र यादव स्वराज इंडिया के अध्यक्ष और स्वराज अभियान व जय किसान आंदोलन के सदस्य हैं। यहां पेश उनके विचार निजी हैं।)