देश में कोरोना वैक्सीन सभी को फ्री में उपलब्ध होगी। आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की। सिर्फ 25 फीसदी कोटा प्राइवेट सेक्टर्स को दिया गया हैा बाकी 75 फीसदी केंद्र सरकार खुद खरीदेगी और राज्यों को उपलब्ध कराएगी। कुछ दिन पहले तक ऐसा नहीं था। 18 वर्ष की उम्र से अधिक वाले लोगों को वैक्सीन लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों के पास थी, लेकिन फंड की कमी की वजह राज्य सरकारों ने अपने हाथ खड़े कर दिए और सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र के सामने वैक्सीनेशन का मुद्दा लेकर आ रहा था। अब सवाल ये है कि क्या वाकई सरकार ने इन वजहों से वैक्सीन की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली या बात कुछ और है। 29 मई को एक रिपोर्ट आई थी, जिसके बाद केंद्र की ओर से मंथन करने पर यह फैसला हुआ। आखिर क्या है वो रिपोर्ट आइए आपको भी बताते हैं…
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट की रिपोर्ट में एक सर्वे का जिक्र किया गया है। जिसकी रिपोर्ट 29 मई को सामने आई थी। वो सर्वे लोकल सर्किल की ओर किया गया था। जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार की 2019 में पॉपुलैरिटी रेटिंग 75 फीसदी से ज्यादा थी, जो इस साल कम होकर 51 फीसदी पर आ गई हैा ऐसा पहली बार देखने को मिला है जब देश के वोटर्स में नरेंद्र मोदी की पॉपुलैरिटी में कमी आई है। ब्लूमबर्ग के अनुसार बीते दो महीने में देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान लोगों की मौत में काफी इजाफा देखने को मिला। दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन प्रोग्राम अधर में है। इस दौरान आम लोगों ने अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी तक झेली है। जिसकी वजह से आम लोगों में केंद्र सरकार के प्रति विश्वसनीयता कम जरूर हुई है।
वहीं दूसरी ओर वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी है। जिसका असर इसमें देखने को मिल सकता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव देश के लोकसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ा चुनाव है और देश की राजनीति का केंद्र बिंदु भी। इसके अलावा हाल ही में ग्राम चुनावों में बीजेपी को बड़ा झटका भी लगा है। केंद्र के नए वैक्सीनेशन प्रोग्राम में यह सोच साफ झलक रही है। साथ ही केंद्र इस वैक्सीनेशन प्रोग्राम के जरिए यह भी बताने का प्रयास कर रहा है कि वो सिर्फ बीजेपी शासित एवं समर्थित राज्यों के साथ ही नहीं सभी गैर बीजेपी राज्यों के साथ भी है।
51 हजार करोड़ रुपए का भार : इस वैक्सीनेशन प्रोग्राम की घोषणा करने से पहले राज्यों को यह प्रोग्राम चलाना था, लेकिन राज्यों ने फंड की कमी के कारण हाथ खड़े कर दिए। एक अनुमान के अनुसार इस वैक्सीनेशन प्रोग्राम को चलाने के लिए राज्यों को 5 से 7 बिलियन डॉलर यानी 40 से 51 हजार करोड़ रुपए की जरुरत थी। अब जब केंद्र की ओर से घोषणा कर दी गई है तो यह सारा भार अब केंद्र सरकार ही वहन करेगा।
दुनिया के किसी देश में नहीं ऐसी फिलोसिफी : ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो पार्थ मुखोपाध्याय ने कहा कि यह एक अच्छा कदम है, हालांकि निजी अस्पतालों के माध्यम से भुगतान किए गए टीकों के लिए 25 फीसदी कोटा जारी रखना समानता नहीं है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन को प्राइवेट कमोडिटी के रूप में देखने की सरकार की फिलोसिफी ठीक नहीं है। ऐसा दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिला है।
दिसंबर तक 2 बिलियन से अधिक खुराक का दावा : सरकार ने कहा है कि दिसंबर तक 2 बिलियन से अधिक खुराक उपलब्ध हो जाएगी जो वयस्क आबादी का वैक्सीनेशन करने के लिए पर्याप्त होगी। वहीं सरकार की ओर से इस बात के संकेत नहीं मिले हैं कि भारत में मुख्य वैक्सीन निर्माता उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उत्पादन में तेजी लाने में सक्षम होंगे। या कमी को पूरा करने के लिए विदेशों से वैक्सीन खरीदने में कामयाब हो पाएंगे।
20 अप्रैल को आखिरी बार किया था देश को संबोधति : पीएम नरेंद्र मोदी ने आखिरी बार 20 अप्रैल को राष्ट्र को संबोधित किया था, जब उन्होंने राज्यों से लॉकडाउन से बचने का आग्रह किया था, जबकि देश 414,000 से अधिक के रिकॉर्ड दैनिक संक्रमण की ओर बढ़ रहा था। बढ़ते नए मामले और डेली मौतों की वजह से महाराष्ट्र और दिल्ली दोनों जगहों पर लॉकडाउन लगाना पड़ा। 7 मई को पीक पर पहुंचने के बाद से दूसरी लहर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। नई दिल्ली और मुंबई ने सोमवार को अपने लॉकडाउन को कम करना शुरू कर दिया है। मौजूदा समस में भारत में 100,636 नए संक्रमण और 2,427 मौतें देखने को मिली हैं।