अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश जैसे अहम मंत्रालय संभाल चुके यशवंत सिन्हा ने लंबे समय तक भाजपा में बने रहने के बाद पार्टी छोड़ दी थी और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी में शामिल हो गए थे। 85 साल की उम्र में राजनीति में आने की उनको क्या जरूरत पड़ गई? वे आज की राजनीति में कितना फर्क डाल पाएंगे? इन सवालों के जवाब में एक न्यूज चैनल से बात करते हुए यशवंत सिन्हा ने कहा कि आदमी ये सोच कर नहीं करता है, परस्थितियां करवाती हैं।

यशवंत सिन्हा ने कहा, ”मैंने तीन साल पहले ये सोचा था कि पार्टी पॉलिटिक्स नहीं करेंगे लेकिन देश के जो मुद्दे हैं, उस पर अपनी टिप्पणी करते रहेंगे। उसी के लिए अपने जैसे विचार रखने वाले लोगों के साथ मिलकर हमने नई संस्था बनाई थी- राष्ट्र मंच। लेकिन हालात ऐसे बने कि हमने सोचा कि पार्टी पॉलिटिक्स में लौटना चाहिए और फिर से राजनीति में लौटना चाहिए।”

आज तक के कार्यक्रम सीधी बात में पत्रकार प्रभु चावला के सवाल का जवाब देते हुए यशवंत सिन्हा ने कहा, ”देश के सामने आज जो मुद्दे हैं, उसकी शायद कल्पना तीन साल पहले नहीं की थी। उन मुद्दों के खिलाफ लड़ना जरूरी था।”

इसके बाद पत्रकार ने पूछा कि राष्ट्र मंच नामक संस्था बनाकर क्षेत्रीय पार्टी टीएमसी में शामिल होने के पीछे क्या वजह रही? इसपर यशवंत सिन्हा ने कहा, ”आप याद कीजिए वो वक्त जब मैंने टीएमसी ज्वाइन करने का ऐलान किया था और किया भी, उस वक्त पश्चिम बंगाल में क्या हालात थे। बंगाल में चुनाव हो रहा था, अन्य राज्यों में भी चुनाव हो रहे थे लेकिन बंगाल चुनाव जैसी हाइप किसी अन्य विधानसभा चुनाव को लेकर नहीं थी। भारत के पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत तमाम नेताओं ने भाजपा की तरफ से पूरी ताकत झोंक दी थी।”

यशवंत सिन्हा ने आगे कहा, ”बंगाल में टीएमसी को हराने के लिए भाजपा पूरी ताकत से जुटी थी, ऐन-केन प्रकारेण टीएमसी के नेताओं को तोड़कर भाजपा में शामिल कराने का गेम चल रहा था, तो मैंने तय किया कि टीएमसी में शामिल होकर इस भगदड़ को रोकने की कोशिश करूंगा।” पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उनके टीएमसी में शामिल होने के बाद ये भगदड़ थम गई।