मनोज कुमार मिश्र

आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति करने के तरीके से लगने लगा है कि उनकी पार्टी की विपक्षी दलों के साथ तालमेल का सवाल लोकसभा चुनाव तक चलता रहेगा। नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार केंद्र की सरकार में आने से रोकने के लिए बने विपक्षी दलों के गठबंधन (इंडिया) में मचे घमासान में यह अभी कहा नहीं जा सकता है कि कितनी सीटों पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा हो पाएगा। इस गठबंधन के सबसे बड़े दल के नाते कांग्रेस पर सभी विपक्षी दलों को साथ ले चलने की जिम्मेदारी है।

तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से हुए नुकसान को कम करने के लिए कांग्रेस के नेता सक्रिय हो गए हैं। एक समस्या यही है कि पश्चिम बंगाल ही नहीं उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब आदि राज्यों में कांग्रेस से ही सीटों के तालमेल में समस्या हो रही है।

बड़ी समस्या यह भी है कि इस गठबंधन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक-बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना रास्ता फिर बदल लिया। अब उन्होंने भाजपा के साथ बिहार में सरकार बना ली है। आप नेता केजरीवाल की दुविधा खत्म ही नहीं हो रही है। वे शुरू से ही विपक्षी गठबंधन में हैं और शुरू से ही धमकी की राजनीति कर रहे हैं।

दिल्ली के बाद पंजाब में आप की सरकार बनने और गुजरात में विधायक जीतने के बाद आप को अखिल भारतीय पार्टी का दर्जा मिल गया है। जिन राज्यों में आप का असर है उनमें भाजपा के अलावा कांग्रेस ही मुख्य दल है। माना यही जाता है कि आप का वजूद ही कांग्रेस के समर्थक माने जाने वाले मतों पर है। इसी के चलते जब दिल्ली में अफरशाही पर नियंत्रण पर केंद्र सरकार के अधिकार वाला बिल संसद में पेश किया गया तो आप ने इसका विरोध करने में कांग्रेस का समर्थन मांगा और धमकी दी कि अगर कांग्रेस ने समर्थन नहीं दिया को वह सीटों का तालमेल नहीं करेगी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो हर मंगलवार को रामचरित मानस के सुंदर कांड का सामूहिक पाठ शुरू करा दिया है। इतना ही नहीं वे अपने को भाजपा से ज्यादा धार्मिक बताने के लिए हर काम में भगवान का नाम लेने और राम राज्य लाने का भी दावा करते नहीं थकते हैं।

अब बिहार में नीतीश कुमार के साथ भाजपा के सरकार बनाने के बाद केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि भाजपा उनकी दिल्ली की सरकार को गिराने के लिए 25-25 करोड़ रुपए का पेशकश उनके विधायकों को दे रही है। भाजपा ने उनके दावे को गलत बताया। आबकारी (शराब) घोटाले में प्रचंड बहुमत से दिल्ली पर शासन करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) आला नेताओं के जेल जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।

अब जो हालात लग रहे हैं, उसमें तो लग नहीं रहा है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी तब होगी जब केंद्रीय जांच एजंसियां ठोस सबूत जुटा ले। उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की सिफारिश पर दिल्ली के दवा घोटाले की जांच सीबीआइ से कराने की मंजूरी मिल गई है। केजरीवाल अपनी संभावित गिरफ्तारी से बचने के लिए वे हर तरकीब अपना रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन पर चौथी बार भी वे पेश नहीं हुए।

इस दबाव में उनकी राजनीतिक भाषा भी बदल जा रही है। दबाव बढने पर उन्होंने आप शासित राज्यों-दिल्ली और पंजाब में भी अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के बजाए विपक्षी गठबंधन (इंडिया) के साथ तालमेल करके चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसके उलट ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने के बयान आते ही पंजाब के आप सरकार के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी प्रदेश की सभी 13 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। इससे एक बार फिर भ्रम की स्थिति बन गई है।

वैसे भी आप अपने अनेक नेताओं के जेल जाने के बाद सावधानी बरत रही है। पिछली बार से उलट इस बार राज्यसभा के लिए किसी अनजान चेहरे को उम्मीदवार बनाने के बजाए पार्टी की पुरानी नेता स्वाति मालीवाल के साथ जेल में बंद संजय सिंह और पार्टी के चार्टर एकाऊंटेंट नारायण दास गुप्ता को दिल्ली से राज्यसभा में भेजा है।

दिल्ली और पंजाब में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा करने वाले अरविंद केजरीवाल की भाषा बदली है। आने वाले दिनों में यह और साफ हो जाएगा। अब तो सीटों के तालमेल में विपक्षी दल जितनी देरी कर रहे हैं, भाजपा को उतना ही फायदा मिलने के आसार हैं। अगर कांग्रेस और आप में दिल्ली और पंजाब में सीटों का तालमेल हुआ तो पूरी तरह इन राज्यों की राजनीति बदल जाएगी।