Mamata Banerjee Makes Tea: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को कूचबिहार से पंचायत चुनाव प्रचार की शुरुआत की। सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी पहली बार पंचायत चुनाव के लिए प्रचार कर रही हैं। कूचबिहार के चंदामारी में एक जनसभा को संबोधित करने के बाद बनर्जी जलपाईगुड़ी के मालबाजार में एक टी स्टॉल पहुंची। जहां उन्होंने खुद चाय बनाई। साथ ही मौजूद लोगों को सर्व की। यह देखकर दुकानदार भी हैरान रह गया। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
ममता की चाय पॉलिटिक्स
इस अवसर पर ममता बनर्जी ने कहा कि वह जलपाईगुड़ी के रास्ते से गुजर रही थीं। उन्होंने चाय की दुकान देखी। लोगों को उत्साहित करने के लिए वो चाय की दुकान में गईं और आम लोगों से बातचीत की।
अब सवाल यह उठ रहा है कि चाय बनाना, चाय बेचना यह भी सियासत में आ गया है क्या? क्या दिल्ली का रास्त यहीं से तय होकर जाता है। ममता के इस वायरल वीडियो के आखिर क्या मायने हैं। क्योंकि अक्सर प्रधानमंत्री भी अपने भाषण में चाय बेचने का जिक्र करते हैं।
जमीनी नेता, जनता से कनेक्ट करने की कोशिश
इससे पहले ममता बनर्जी जब उत्तर बंगाल गई थीं। उस वक्त भी वो एक चाय की दुकान में गईं थीं। उन्होंने वहां पर खुद अपने हाथों से पकौड़ा बनाया था और चाय भी बनाई थी। पिछले साल जुलाई में भी अपने दार्जिलिंग दौरे के दौरान बनर्जी को एक मोमोज की दुकान में जाकर मोमोज बनाते देखा गया था। यहां तक कि उनको स्थानीय बच्चों को खड़े होकर खाना भी खिलाते देखा गया था।
21 अगस्त, 2019 में भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य के दीघा के दौरे पर गई थीं। यहां भी उन्होंने एक चाय की दुकान में जाकर चाय बनाई थी और लोगों को सर्व की थी। ममता बनर्जी ने इस दौरान टी स्टॉल मालिक से भी बात की थी। जिसमें वो स्टॉल मालिक से पूछ रही हैं कि क्या आपने दूध डाला है? चाय लगभग तैयार है। बहुत अधिक दूध न डालें। नहीं तो इस चाय को पीने के बाद लोगों को वजन बढ़ जाएगा।
चाय का राजनीति से पुराना नाता, मोदी को बड़ा फायदा
अब कहने को ममता बनर्जी ने कुछ मौकों पर चाय की दुकान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, कहने को उन्होंने कुछ मौकों पर चाय लोगों के बीच भी बांटी है, लेकिन राजनीति में इस चाय की परिभाषा कुछ अलग है। हर टपरी पर लोग पीते हैं चाय, राजनीति की हर चर्चा के साथ होती है चाय, सुबह की शुरुआत चाय, सूरज ढलते वक्त चाय, यानी कि चाय वो कनेक्शन है जिससे लोगों के साथ आसानी से जुड़ा जा सकता है। अब इस फैक्टर को साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने बखूबी समझा था। वे बचपन में चाय बेचते थे, ये उनका असल बैकग्राउंड था, लेकिन चाय पर चर्चा 2014 का प्रचार हथियार था। कारण सिंपल था, लोगों से संवाद बनाना था, उनके बीच में आम आदमी की अपनी छवि को प्रखर करना था।
चाय की चुस्की दिखाएगी दिल्ली का रास्ता?
बीजेपी को इस रणनीति का भरपूर फायदा पहुंचा, मिडिल क्लास से लेकर गरीब तक, सभी ने नरेंद्र मोदी को पसंद किया और फिर उनके नाम पर वोट भी दिया गया। अब बंगाल में ममता बनर्जी भी उसी रणनीति पर लंबे समय से चल रही हैं। जमीन से जुड़ी नेता हैं, ये सब जानते हैं, आंदोलन कर लोगों के साथ ही कई बार संघर्ष किया है, ये भी देखा जा चुका है। अब अपनी उसी जमीन से जुड़ी राजनीति में ममता बनर्जी इस चाय वाली सियासत को जोड़ना चाहती हैं। बंगाल में ‘दीदी’ को इसका सीधा फायदा पहुंचता है, लेकिन क्या ये फायदा उन्हें दिल्ली की राह दिखा सकता है?
