रामानुज पाठक
भारत में अपशिष्ट प्रबंधन मुख्य रूप से अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा किया जाता है, जिनमें अधिकांश शहरों में रहने वाले गरीब होते हैं। अनौपचारिक श्रमिक होने के कारण इन लोगों को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है। ‘वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट’ की नई रपट में कहा गया है कि बढ़ते शहरीकरण और उच्च खपत के कारण भारत अब सबसे अधिक मात्रा में ठोस कचरा पैदा करने वाले शीर्ष दस देशों में है। प्रतिदिन लगभग छह लाख इक्कीस हजार टन ऐसा कचरा पैदा करने में अमेरिका सबसे आगे है।
रपट में कहा गया है कि विश्व स्तर पर ठोस कचरा वर्तमान में 1.3 अरब टन से बढ़ कर 2.6 अरब टन होने का अनुमान है। इसमें कहा गया है कि विकासशील देशों की तुलना में अमीर देश अधिक ठोस कचरा पैदा कर रहे हैं। शीर्ष दस कचरा पैदा करने वाले देशों की सूची में केवल चार विकासशील देश हैं- ब्राजील, चीन, भारत और मैक्सिको। इसका मुख्य कारण उनकी शहरी आबादी का बड़ा आकार है और उनके शहरवासी उच्च उपभोग वाली जीवनशैली अपना रहे हैं। कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में जर्मनी और दक्षिण कोरिया ने मिसाल कायम की है।
दक्षिण कोरिया में मजबूत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली है
इस मामले में दक्षिण कोरिया से भी बहुत कुछ सीखने को है। वहां एक मजबूत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली है, और इसके जरिए वह आर्थिक विकास और अपशिष्ट उत्पादन के बीच संबंधों को तोड़ने में सफल रहा है। यह सिर्फ पांच करोड़ दस लाख आबादी वाला एक छोटा-सा देश है, लेकिन प्रति दिन लगभग तिरपन हजार टन ठोस कचरा उत्पन्न करता है, जो भारत में प्रति व्यक्ति उत्पादन का पांच गुना है। 1980 के दशक तक कोरिया ने अधिकांश अन्य विकासशील देशों की तरह, भस्मीकरण और ‘लैंडफिल’ के माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन करता था।
चुनौती अपशिष्ट उत्पादन को धीमा करने की थी
हालांकि यह ‘कम करें और पुनर्चक्रित करें’ के सार्वजनिक अभियानों की तुलना में अपेक्षाकृत आसान काम था, लेकिन 1990 के दशक में वहां कठिन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। चुनौती अपशिष्ट उत्पादन को धीमा करने की थी, और इसलिए दक्षिण कोरिया ने मात्रा-आधारित अपशिष्ट शुल्क प्रणाली लागू की। यह एक आदर्श बदलाव था जो अपशिष्ट उत्पादन को नियंत्रित करने और पुनर्चक्रित करने की अधिकतम दर प्राप्त करने पर केंद्रित था। परिणाम यह हुआ कि इसके बाद ठोस अपशिष्ट उत्पादन में भारी कमी देखी गई। 1990 के 3.06 करोड़ मीट्रिक टन से अपशिष्ट उत्पादन घट कर 2016 में 1.93 करोड़ मीट्रिक टन हो गया।
खाद्य अपशिष्ट का पुनर्चक्रण करने वाले कुछ देशों में साठ फीसद पुनर्चक्रण दर के साथ, दक्षिण कोरिया वर्तमान में जर्मनी के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इसके लिए वहां कई सहायक उपक्रम किए गए। ‘लैंडफिल रिकवरी’ जैसी परियोजनाएं चलाई गईं। आज वहां की नानजिडो परियोजना प्रति वर्ष एक करोड़ आगंतुकों का स्वागत करती है, और बायलर ईंधन के रूप में उपयोग की जाने वाली ‘लैंडफिल गैस’ प्रदान करके प्रति वर्ष लगभग छह लाख डालर बचाती है।
ये पहलें खतरनाक अपशिष्ट स्थलों को सफलतापूर्वक टिकाऊ पारिस्थितिकी आकर्षण में बदल रही हैं। इसके अलावा बिजली परियोजनाएं प्रारंभ हुईं, अपनी अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों के पूरक के रूप में दक्षिण कोरिया ने अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। दुनिया का पहला लैंडफिल संचालित हाइड्रोजन संयंत्र 2011 में दक्षिण कोरिया में बनाया गया था।
वहीं कचरा प्रबंधन में विश्व में प्रथम पायदान पर काबिज जर्मनी में अपशिष्ट प्रबंधन की शुरुआत 1970 में हुई थी और अब भी समाप्त नहीं हुई है। जर्मन विशेषज्ञों ने ‘फाइव फेज माडल’ (पांच चरण) विकसित किया है। इसका उद्देश्य किसी क्षेत्र में अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करना है। सर्वोत्तम स्थिति में, धातु और प्लास्टिक जैसी पुनर्चक्रण योग्य सामग्री को अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा एकत्र किया जाता है और कई चरणों के माध्यम से संसाधन चक्र में फिर से प्रवेश किया जाता है।
इसमें महत्त्वपूर्ण है कि संग्रहण कुशलतापूर्वक किया जाए, क्योंकि यह अपशिष्ट प्रबंधन का सबसे महंगा पक्ष है। हालांकि, छंटाई प्रक्रियाओं के साथ-साथ, यह रोजगार की सबसे बड़ी संभावना भी प्रदान करता है। प्रत्येक शहर या समुदाय और उसकी विशेष परिस्थितियों के लिए सही संग्रह प्रणाली की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है। मसलन, पुनर्चक्रण योग्य चीजों के अलग-अलग संग्रह और हाथ से छंटाई के बाद खाद बनाने की सुविधा, जैविक कचरे के पुनर्चक्रण की शुरुआत का प्रतीक है। उद्योग तेजी से अपनी प्रक्रियाओं को इन सामग्रियों के अनुरूप ढाल रहे हैं। अपशिष्ट प्रबंधन औद्योगिक नीति का हिस्सा है।
आधुनिक छंटाई सुविधाएं अलग किए गए कचरे से उच्च गुणवत्ता वाले पदार्थों का उत्पादन करती हैं। प्लास्टिक को अलग करने और रंग के आधार पर क्रमबद्ध करने की प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। खाद और बायोगैस का उत्पादन किण्वन संयंत्रों में जैविक कचरे से किया जाता है। अपशिष्ट को भस्मक से गुजारा या यांत्रिक जैविक उपचार सुविधाओं (एमबीटी) में उपचारित किया जाता है। एमबीटी पुनर्चक्रण योग्य सामग्री निकालता है। ऊर्जा उत्पादन के लिए उच्च-कैलोरी अंश प्रदान करता और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को नियंत्रित करता है, जो मुख्य रूप से लैंडफिल क्षेत्रों से उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आती है।
भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, अगर अपशिष्ट प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता में नहीं लिया गया तो इसे एक दुर्जेय अपशिष्ट संकट का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए सभी हितधारकों को आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ प्राकृतिक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आना होगा। यह सुखद है कि भारत और जर्मनी के मध्य जल और अपशिष्ट प्रबंधन पर द्विपक्षीय समझौता 2019 में हो चुका है। दोनों पक्षों ने कपड़ा क्षेत्र, वायु, जल प्रशासन, समुद्री कूड़े, अपशिष्ट से ऊर्जा (भस्मीकरण), जैव-मिथेन, कचरा ढलाव, जल गुणवत्ता प्रबंधन, स्थानीय निकायों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए हाथ बढ़ाया है। इससे निश्चित रूप से भारत को कचरा प्रबंधन में सहायता मिलेगी।
विकासशील देशों के कचरे में लगभग 40 से 60 फीसद कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जिनका पुनर्चक्रण किया जा सकता है। कचरे के उचित निस्तारण से खाद, बिजली तथा ईंधन प्राप्त किए जा सकते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कचरे की छंटाई है। सूखा कचरा, गीला कचरा, जैव अपघटनीय कचरा, अजैव अपघटनीय कचरा, बायोमेडिकल कचरा, ई-कचरा जैसा वर्गीकरण आम नागरिकों को आना ही चाहिए, जिसे जनजागरूकता से बढ़ाया जा सकता है।
भारत अपने कचरे के पहाड़ों का निस्तारण दक्षिण कोरिया और जर्मनी की कचरा प्रबंधन नीतियों और कार्य योजनाओं को लागू कर कर सकता है। वैसे भारत ने कचरे के उचित निस्तारण हेतु ‘वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल’ का शुभारंभ भी किया है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, वस्तुओं का पुनर्चक्रण करने और कचरे के उपचार हेतु प्रौद्योगिकियों की पहचान, विकास और तैनाती करना है। इसके अलावा अपशिष्ट प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय और स्कूल स्तर पर अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रौद्योगिकी संचालित पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित किया जा सकता है, जैसा कि दक्षिण कोरिया और जर्मनी करते हैं।
स्थितियां चिंताजनक हैं। भारत में विश्व की आबादी का लगभग अठारह फीसद आबादी है और भूभाग मात्र दो फीसद, मगर वैश्विक अपशिष्ट उत्पादन में इसका योगदान बारह फीसद है। अब समय आ गया है कि नगर नियोजक और नगर पालिकायें कचरा प्रबंधन तंत्र में समन्वय की जरूरत को समझें और उसके रास्ते तलाश करें। भारत में कुल 3842 स्थानीय नगर निकाय हैं। 247 नगर निगम, 1500 नगर पालिका, 2100 नगर पंचायत, 56 छावनी बोर्ड तथा 2,63,274 ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन कचरा प्रबंधन के लिए ‘स्वचालित अपशिष्ट पुनर्चक्रण मशीनें’ बहुत कम स्थानीय निकायों ने लगाई हैं।