भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान (एफटीआइआइ) के अध्यक्ष पद पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति रद्द करने की मांग को लेकर पिछले 36 दिनों से हड़ताल कर रहे छात्रों को संस्थान प्राधिकार अल्टीमेटम दे चुका है। संस्थान के निवर्तमान निदेशक डीजे नारायण उन्हें नोटिस दे चुके हैं कि हड़ताल खत्म करें या फिर उन्हें निष्कासित कर दिया जाएगा। लेकिन निष्कासन का खौफ भी आंदोलनकारी छात्रों के हौसले को तोड़ नहीं सका है। आंदोलनकारी छात्रों के समर्थन में एफटीआइआइ के पूर्व छात्र भी पूरी तरह उनके साथ हैं।
एफटीआइआइ से 2010 में सिनेमा निर्देशन में ग्रेजुएट और अपनी डिप्लोमा फिल्म ‘श्याम रात सहर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशन की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अरुणिमा शर्मा का कहना है कि संस्थान के वर्तमान छात्र सिर्फ आज के लिए नहीं बल्कि भविष्य के लिए भी लड़ रहे हैं। संस्थान के पूर्व ग्रेजुएट के 50 लोगों का समूह छात्रों को अपना समर्थन देने के लिए पुणे गया था। हमारे प्रतिनिधिमंडल ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय से भी बात की थी। लेकिन हमें वहां से भी नाउम्मीदी ही हाथ लगी है। हम प्राधिकार के निलंबन के नोटिस की कड़ी निंदा करते हैं। मांग पूरी होने तक यह आंदोलन चलना चाहिए।
एफटीआइआइ से 2009 में ग्रेजुएट हुए अभिनेता संतोष ओझा का कहना है कि इस संस्थान के जरिए नेहरू जी ने कला को एक ऐसा मंच देने की कोशिश की थी जहां हर संस्कृति, जाति, धर्म, लिंग, नस्ल के लोग आएं। यह एशिया का सबसे बड़ा संस्थान है। अब सरकार इसके खर्चे और निजीकरण की बात कर रही है। ऐसे संस्थान न हों तो गरीब इलाकों के बच्चे कहां जाएंगे? उनके लिए महंगे संस्थान के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। इस जगह से निकले लोग कितने सम्मानित हैं, उनका योगदान देखिए। भारतीय फिल्म उद्योग में सिर्फ बालीवुड नहीं है।
संतोष कहते हैं कि यह सही है कि जो भी सरकार बनती है वह अपने नुमाइंदे रखती है। लेकिन मोदी जी से ऐसे नुमाइंदे की आशा नहीं थी। मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अच्छा काम किया था, इसलिए लोगों ने उन्हें देश का प्रधानमंत्री चुना। लेकिन उनकी सरकार ने गजेंद्र चौहान को किस आधार पर चुना? अब आरोप लगाए जा रहे हैं कि एफटीआइआइ के ज्यादातर छात्र कम्युनिस्ट हैं, नक्सली हैं। यानी अब आपकी सरकार है तो आप इन्हें बोलने नहीं देंगे। तो क्या अब एनएसडी के निदेशक पद पर कृष्ण के रूप में लोकप्रिय नीतीश भारद्वाज को बिठाएंगे?
और लोग बॉलीवुड को अंतिम विकल्प क्यों देखते हैं? केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा भी है। इन गरीब इलाकों के बच्चे कहां जाएंगे। ओझा ने आरोप लगाया कि एफटीआइआइ के जेनरल कौंसिल में 5 लोग ऐसे हैं जिनका फिल्म निर्माण से कोई संबंध नहीं है। बस मोदी और संघ की विचारधारा पर फिल्में बनाना ही उनका काम है। एफटीआइआइ में पोलैंड, कजाखिस्तान, रूस, अफगानिस्तान, फ्रांस से भी विद्यार्थी आते हैं। तो क्या आप इन्हें एक खास विचारधारा में बांध देंगे? सरकार के लिए सबसे बेहतर यह है कि वह इस संस्थान के लिए यहां के एलुमनाई को ले। वही यहां की संस्कृति को बेहतर तरीके से समझ सकता है। छात्रों का आंदोलन पूरी तरह जायज है और उन्हें टिके रहना चाहिए। अगर आज चुप रहे तो फिर कभी बोल नहीं पाएंगे।
वहीं रंगकर्मी और फिल्मकार चंद्रभूषण का कहना है कि हमें जनभावना को देखना है। डीन संस्थान को चला रहे हैं। मुझे लगता है कि बच्चों को धैर्य रखना चाहिए था। किसी भी संस्थान का नीति निर्धारण व्यवस्था करती है, न कि एक आदमी। दो महीने देख लेना चाहिए था कि वे कैसा काम करते हैं। लेकिन ऐसे विरोध के बाद गजेंद्र चौहान को स्वाभाविक तौर से ही अलग रास्ता चुन लेना चाहिए था। छात्रों की भावनाएं भी गलत नहीं हैं। वे ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जो मार्गदर्शन कर सके। उनका पक्ष ज्यादा मजबूत दिख रहा है। इतने कड़े विरोध के बाद चौहान को खुद पद छोड़ देना चाहिए था।
वहीं एफटीआइआइ छात्र संगठन के अध्यक्ष हरिशंकर नचिमुथु का कहना है कि पिछली बार कांग्रेस की सरकार थी, तब भी हमने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल की थी। इसलिए ऐसा नहीं है कि हम केवल भाजपा सरकार के फैसले के खिलाफ हैं। माना कि चौहान सरकार के आदमी हैं। अगर उनके स्थान पर किसी और की भी नियुक्ति होगी तब भी वह व्यक्ति सरकार का होगा। यहां मुद्दा क्षमताओं का है। इस तरह की उच्च शिक्षा वाली संस्था में राजनीति से जुड़े व्यक्ति की नियुक्ति होनी ही नहीं चाहिए। सरकार के सामने इतने सारे नाम थे तो सिर्फ गजेंद्र चौहान का ही नाम क्यों चुना? इस संस्था की एक संस्कृति है और उसकी समझ रखनेवाला व्यक्ति चाहिए।
(मृणाल वल्लरी)