अमिताभ चक्रवर्ती
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के बीच यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के कवाल गांव में 25 हिंदू पाकिस्तानी परिवार को बसाने की योजना बनाई जा रही है। यह गांव 2013 के दंगों में हिंसा का मुख्य केंद्र रहा है। गांव के लोगों का कहना है कि बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। गांव में रोजगार नहीं है, लेकिन सरकार शरणार्थियों को बसाने जा रही है। ऐसे में लोग कैसे जीविका चलाएंगे। शरणार्थियों को रोजगार कहां से मिलेगा?

गांव में शिक्षा मित्र पंकज सैनी का कहना है कि उम्मीद करता हूं कि “एक दिन” वह स्थायी सरकारी शिक्षक नियुक्त होंगे। वे कहते हैं कि गांव में सबसे अधिक चिंता का विषय रोजगार है। कहा, “सरकार ने शरणार्थियों को आजीविका प्रदान करने की योजना कैसे बनाई है? राज्य में अगली हिंसा बेरोजगारी और सरकार की दोषपूर्ण रोजगार सृजन नीतियों के कारण होगी।” बच्चों को स्कूल पहुंचने में कम से कम छह किमी तक चलना पड़ता है। हालांकि राज्य की कुल साक्षरता की तुलना में कवाल गांव की साक्षरता अधिक है।

आसपास के क्षेत्र में कोई कारखाना नहीं होने के कारण कवाल गांव के अधिकतर निवासी मुख्य रूप से गन्ने की खेती में लगे हुए हैं। कक्षा 8 तक एक सरकारी स्कूल है, जिसमें छह कमरे में 360 से अधिक छात्र पढ़ते हैं। 2013 से दो कमरे सुरक्षाकर्मियों के कब्जे में हैं, जो चौबीसों घंटे यहां तैनात हैं। स्कूल में कुल नौ शिक्षक हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 10,800 लोगों के गांव कवाल में ज्यादातर घर ईंट-और-टाइल की हैं।

हालांकि सीएए नियमों को अभी तक लागू नहीं किया गया है, लेकिन यूपी ने राज्य में शरणार्थियों की एक अस्थायी सूची तैयार करना शुरू कर दिया है, जो दस्तावेजों के सत्यापन के अधीन अधिनियम के तहत नागरिकता के हकदार होंगे। मुजफ्फरनगर सहित 21 जिलों में सरकार द्वारा कम से कम 32,000 शरणार्थियों की पहचान की गई है।

गांव के अश्विनी कुमार पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग में पीएचडी हैं। वह गांव वालों के लिए एक रोल मॉडल हैं। वे बताते हैं कि उन्हें सीएए से कोई दिक्कत नहीं है। कहा,”हमें देश में केवल वैध नागरिकों को ही अनुमति देनी चाहिए।” हालांकि “सरकार हमें रोजगार देने में भी सक्षम नहीं है, यह शरणार्थियों को रोजगार कैसे देगी? मैं धनबाद के एक विश्वविद्यालय में काम करता हूं। मैं वापस आना चाहता हूं। लेकिन मेरे पास क्या विकल्प है?”

2013 के मुजफ्फरपुर दंगों में हज़ारों लोग विस्थापित हुए थे। इनमें कवाल गांव के लोग भी थे। इनमें से ज्यादातर गांव के मुस्लिम बस्ती के लोग हैं। वे ज्यादातर खेत मजदूर के रूप में काम करते हैं या छोटी दुकानें चलाते हैं। सरकारी स्कूल के प्राथमिक अनुभाग की प्रभारी सविता रानी कहती हैं, “2013 को छोड़कर हमारे गांव में कभी भी हिंदू-मुस्लिम हिंसा नहीं देखी गई। अगर शरणार्थियों को यहाँ बसाया जाता है तो हमें कोई समस्या नहीं है।”